उत्तराखंड : 15 नवंबर को रहेगी इगास (बूढ़ी दीवाली) की छुट्टी घोषित

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देहरादून (महानाद) : मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 14 नवंबर को इगास (बूढ़ी दिवाली) पर छुट्टी घोषित कर दी है। छुट्टी का आदेश शुक्रवार को जारी कर दिया गया। हालांकि इस आदेश में इगास पर्व पर आगामी 15 नवंबर को राजकीय अवकाश घोषित किया गया है। दरअसल 14 नवंबर को रविवार का दिन पड़ रहा है इसिलए इसे देखते हुए 15 नवंबर को अवकाश घोषित किया गया है।

आपको बता दें कि दीपावली के 11 दिन बाद पहाड़ में एक और दिवाली मनाई जाती है, जिसे इगास (बूढ़ी दिवाली) कहा जाता है। इस दिन सुबह मीठे पकवान बनाए जाते हैं और शाम को भैलो जलाकर देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। पूजा-अर्चना के बाद ढोल-दमाऊं की थाप पर भैलो (भीमल या चीड़ की लकड़ी का गट्ठर) जलाकर घुमाया जाता है और नृत्य किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान राम के लंका विजय कर अयोध्या पहुंचने की सूचना पहाड़ में 11 दिन बाद मिली थी। इसीलिए दिवाली के 11 दिन बाद इगास (बूढ़ी दिवाली) मनाया जाता है।

वहीं, एक मान्यता ये भी है कि दीपावली के समय गढ़वाल के वीर माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में गढ़वाल की सेना ने दापाघाट और तिब्बत का युद्ध जीतकर विजय प्राप्त की थी और दिवाली के ठीक 11वें दिन गढ़वाल सेना अपने घर पहुंची थी। युद्ध जीतने और सैनिकों के घर पहुंचने की खुशी में उस समय दिवाली मनाई गई थी।

उधर इगा सकी एक कथा और भी प्रचलित है कि चंबा का रहने वाला एक व्यक्ति भैलो बनाने के लिए लकड़ी लेने जंगल गया था और ग्यारह दिन तक वापस नहीं आया। उसके दुख में वहां के लोगों ने दीपावली नहीं मनाई। जब वो व्यक्ति वापस लौटा तभी ये पर्व मनाया गया और लोक खेल भैलो खेला। तब से इगास बग्वाल के दिन दिवाली मनाने और भैलो खेलने की परंपरा शुरू हुई।

आपको बता दें कि उत्तराखंड के गढ़वाल में 4 बग्वाल होती हैं। पहली बग्वाल कर्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को होती है। दूसरी अमावस्या को पूरे देश की तरह गढ़वाल में भी अपनी लोक परंपराओं के साथ मनाई जाती है। तीसरी बग्वाल बड़ी बग्वाल (दिवाली) के ठीक 11 दिन बाद आने वाली, कर्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। गढ़वाली में एकादशी को इगास कहते हैं। इसलिए इसे इगास बग्वाल के नाम से जाना जाता है। चौथी बग्वाल आती है दूसरी बग्वाल या बड़ी बग्वाल के ठीक एक महीने बाद मार्गशीष माह की अमावस्या तिथि को। इसे रिख बग्वाल कहते हैं। यह गढ़वाल के जौनपुर, थौलधार, प्रतापनगर, रंवाई, चमियाला आदि क्षेत्रों में मनाई जाती है।

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