भारत की समस्त दार्शनिक विचारधाराओं का स्रोत है वेदांत : आचार्य प्रशान्त
प्रदीप फुटेला
ऋषिकेश (महानाद) : महाभारत में जो है, वही सर्वत्र है। मनुष्य के मन में ऐसा कुछ भी नहीं है जो महाभारत में मौजूद न हो। चेतना के सभी तल महाभारत में उभरकर सामने आते हैं।
विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल ने प्रशान्त अद्वैत संस्था के संस्थापक आचार्य प्रशान्त द्वारा लिखित पुस्तक महाभारत का विमोचन करते हुए यह बात कही। उन्होंने कहा कि हम जो कुछ हैं, वो सब महाभारत में मौजूद है। हमारी सारी मलिनताएँ भी और उन मालिनताओं के केंद्र में बैठी मलिनताओं से अस्पर्शित आत्मा भी। ठीक उसी तरीके से महाभारत में काम, क्रोध, छल, कपट, सब पाते हैं। उन्होंने कहा कि आचार्य प्रशान्त ने सनातन समाज को उनके ग्रन्थों का ज्ञान हो सके, इसके लिए ‘घर घर उपनिषद’ नामक विशाल कार्यक्रम की शुरुआत की है। इस मुहिम के तहत 20 करोड़ घरों में वेदांत-उपनिषद की प्रतियां संस्था द्वारा निःशुल्क पहुंचाई जा रही हैं।
आचार्य प्रशान्त ने आईआईटी, आईआईएम की डिग्री लेने के बाद जनमानस में आध्यात्मिक पुनरुत्थान का बीड़ा उठाया है। अंग्रेजी में उनकी पुस्तक ‘कर्म’ देश की शीर्ष बेस्टसेलिंग पुस्तक है। देश के जाने-माने विश्वविद्यालयों में 500 से अधिक उनके सत्र हो चुके हैं। आचार्य प्रशान्त ने अज्ञानता, हीनभावना, आंतरिक गरीबी, उपभोक्तावाद, मनुष्यों की जानवरों के प्रति हिंसा सहित तमाम मुद्दों पर बेबाकी से अपनी राय रखी है।
आचार्य ने आईआईएम से परास्नातक होने के बाद 5 वर्षाे तक अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय कंपनियों में भी कार्य किया लेकिन उनका मन नही लगा तथा वह नौकरी छोड़कर अध्यात्म की ओर चले गए तथा लोगों को जाग्रत करने का बीड़ा उठाया है। आचार्य प्रशान्त ने कहा कि भारत की समस्त दार्शनिक विचारधाराओं का स्रोत वेदांत ही है। वैदिक काल के पश्चात जब धर्म का केंद्र वेदान्त से हटकर मात्र कर्मकांड रह गया था, तब वेदान्त को गुरु आदि शंकराचार्य ने पुनर्जागृत किया।
आदि शंकराचार्य ने वेदान्त के सभी ग्रथों पर टीकाएँ लिखीं और कई ग्रथों की रचना भी की। ‘आत्मबोध’ आदि शंकराचार्य द्वारा रचित उन ग्रथों में से है जो एक शुरुआती साधक को आत्म-साक्षात्कार के पथ पर आगे बढ़ने में मदद करता है।
आत्मबोध का शाब्दिक अर्थ होता है ‘स्वयं को जानना’। हमारे सारे कष्टों और दुःखों के मूल में यही कारण है कि हम स्वयं से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं। हम अपने-आपको वही मान बैठे होते हैं जो पहचान हमें समाज और परिस्थिति से मिली होती है। उन्होंने कहा कि वेदांत सत्य के अन्वेषण हेतु अभी तक की सर्वश्रेष्ठ रचना है, पर वह हमारे लिए उपयोगी हो सके इसके लिए आवश्यक है कि उसकी व्याख्या भी हमारे काल और स्थिति अनुसार हो।
इस दौरान रोहित राजदान, अनमोल फुटेला, शुभंकर गोयल, अंशु शर्मा, अनुष्का जैन, अनु बत्रा, संजय रावत, परिणय शर्मा, डॉ. अनुपम चटर्जी, कमलेश बालचंदानी, प्रदीप फुटेला, परविंदर सिंह, सीमा फुटेला, जय तिवारी आदि मौजूद रहे।