सिम्पल छाबड़ा
चंडीगढ़ (महानाद) : जिस प्रकार से दुनिया पिछले डेढ़ साल से कोरोना वायरस से जूझती आ रही है और वैज्ञानिक या बड़े-बड़े डॉक्टर भी आज तक यह बात स्पष्ट नहीं कर पा रहे कि कोरोना बीमारी है या महामारी। पर इस वायरस ने अपने पराये की पहचान बखूबी दुनिया को दिखा दी। इस वायरस से जान माल का जो नुकसान हुआ वो तो हुआ पर रिश्तों का मौल दुनिया के सामने आ गया। ना जाने कितने रिश्ते इस वायरस की भेंट चढ़ गये।
विषय कोरोना वायरस का नहीं, विषय समाज सेवा के भाव का ज्यादा है। कितनी समाज सेवी संस्थायंे कोरोना वायरस के दौरान लगे लाॅकडाउन में उभर कर सामने आई। इस वायरस के पहले चरण में किस प्रकार से दुनिया में हाहाकार मचा। यह हम सब भली भांति जानते हैं। हमारे भारत देश मे जब इस वायरस ने अपना जाल फैलाना शुरू किया तो हमारी सत्ताधारी सरकार ने लोगांे को जागरूक करने की बजाय या कह लो इस वायरस का इलाज घर से बाहर निकल थाली बजा, घर की लाईट बन्द कर, मोबाईल की बैटरी जला आदि बातें कर इस वायरस को भगाने में देशवासियों का सहयोग मांगा। पर जब कोई हल नहीं निकला तो एकदम लाॅकडाउन लगाकर देश की आवाम को आत्मनिर्भर का स्लोगन दे मरने को छोड़ दिया। इतने बड़े भारत देश को चलाने वाली ये सत्ताधारी सरकार ने देश की आवाम के विषय मे क्या सोचा। एकदम लाॅकडाउन लगा आत्मनिर्भर बोल अपना पल्ला झाड़ना क्या इस सत्ताधारी सरकार का निर्णय सही था? एक सच्चा भारतीय नागरिक होने के नाते इसका फैंसला आप लोग कर जवाब दें?
कोरोना वायरस के पहले चरण में किस प्रकार से प्रवासी लोगों को अपने देश मे ही एक राज्य से दूसरे राज्य की सीमा को भारत पाकिस्तान की सरहद बना मरने के लिए छोड़ दिया। प्रदेश में रहते हैं तो भूख से मरने की नौबत, अपने घर में जाते हैं तो पुलिस व प्रशासनिक डंडों के कहर से मरने की नौबत। इंसान अपनी भूख व पीड़ा तो सहन कर सकता है पर परिवार को भूखा व पीड़ा में नहीं देख सकता। बात बहुत गम्भीर है पर सच है। जब हर तरफ मौत नजर आने लगी तो प्रवासी मजदूर अपने बीवी बच्चो के साथ पैदल ही निकल पड़े। जब उस दृश्य को याद करने मात्र से ही हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
लिख रही हूं उस दर्द को, लेकिन लिखते-लिखते आंसुओं की बूंदे झलकने से ना रुक पा रही हैं और ना कोई लिखते वक्त कपड़ा है जो आंसू पोंछ लें। मेरे लिखने मात्र से मेरा ये हाल है तो आप अंदाजा लगाये की वो प्रवासी लोग कड़कती धूप में अपने बीबी बच्चों के साथ नंगे पांव ही हजारों किलोमीटर के सफर पर मौत को सर पर बांध चल रहे हैं। सब के पाव खून से लथपथ, पर रुकने का नाम नहीं। सत्ताधारी सरकार तमाशबीन बन देख रही और पुलिस के डंडों का कहर शर्मसार करता भारत को। वाह रे मेरे आजाद भारत के गुलाम बाशिंदों, ये है हमारा लोकतंत्र।