77वें निरंकारी संत समागम की सेवाओं का विधिवत शुभारंभ

1
228

सेवा को भेदभाव की दृष्टि से न देखकर निष्काम भाव से करें – सतगुरु माता सुदीक्षा महाराज

काशीपुर (महानाद): इस संसार में अनेक प्रकार के लोग रहते हैं जिनकी अलग-अलग भाषा, वेश-भूषा, खान-पान, जाति, धर्म और संस्कृति आदि हैं। पर इतनी विभिन्नताओं के रहते भी, हम सब में एक बात सामान्य है कि हम सब इंसान हैं। कैसा भी हमारा रंग हो, वेश हो, देश हो या खान-पान, सबकी रगों में एक सा रक्त बहता है और सब एक जैसी सांस लेते हैं। हम सब परमात्मा की संतान हैं। इसी भाव को अनेक संतों ने अलग-अलग समय और स्थानों पर अपनी भाषा और शैली में ‘समस्त संसार, एक परिवार’ के सन्देश के रूप में व्यक्त किया।

पिछले लगभग 95 वर्षों से संत निरंकारी मिशन भी इसी सन्देश को न केवल प्रेषित कर रहा है, बल्कि अनेक सत्संग और समागम का नियमित रूप से आयोजन कर, इस सन्देश का जीवंत उदाहरण भी पेश कर रहा है। मिशन के लाखों भक्त इस वर्ष भी 16, 17 और 18 नवंबर 2024 को संत निरंकारी आध्यात्मिक स्थल, समालखा, हरियाणा में होने वाले 77वें वार्षिक निरंकारी संत समागम में पहुँचकर मानवता के महाकुम्भ का एक बार फिर से नजारा सजाने जा रहे हैं। देश-विदेश से आने वाले ये भक्त जहाँ सतगुरु माता सुदीक्षा महाराज और सत्कारयोग निरंकारी राजपिता रमित के पावन दर्शन करके स्वयं को कृतार्थ अनुभव करेंगे, वहीं मिलजुलकर संत-समागम की शिक्षाओं से अपने मन को उज्जवल बनाने का प्रयास भी करेंगे।

इस संत समागम की भूमि को समागम के लिए तैयार करने की सेवा का शुभारम्भ आज इस बार 6 अक्टूबर को हर वर्ष की भांति सतगुरु माता सुदीक्षा महाराज और निरंकारी राजपिता के कर-कमलों द्वारा किया गया। इस अवसर पर मिशन की कार्यकारिणी के सभी सदस्य, केंद्रीय सेवादल के अधिकारी और सत्संग के अन्य हज़ारों अनुयायी मौजूद रहे। उल्लेखनीय है कि 600 एकड़ में फैले इस विशाल समागम स्थल पर लाखों संतों के रहने, खाने-पीने, स्वास्थ्य और आने-जाने के साथ-साथ अन्य कई प्रकार की व्यवस्थाएं की जाती है, जिसके लिए पूरा महीना अनेक स्थानों से आकर भक्त निष्काम भाव से सेवारत्त रहते हैं। इस पावन संत समागम में हर वर्ग के संत एवं सेवादार महात्मा अपने प्रियजनों संग सम्मिलित होकर एकत्व के इस दिव्य रूप का आनंद प्राप्त करेंगे। इस वर्ष के समागम का विषय है -विस्तार, असीम की ओर।

समागम सेवा के शुभ अवसर पर विशाल सत्संग को संबोधित करते हुए सतगुरु माता ने फरमाया कि सेवा करते समय सेवा को भेदभाव की दृष्टि से नहीं देखना चाहिए अपितु सदैव निरिच्छत, निष्काम भाव से ही की जानी चाहिए। सेवा तभी वरदान साबित होती है जब उसमें कोई किंतु, परंतु नहीं होता, उसकी कोई समय सीमा नहीं होनी चाहिए कि समागम के दौरान तथा समागम के समाप्त होने तक ही सेवा करनी है, बल्कि अगले समागम तक भी सेवा का यही जज्बा बरकरार रहना चाहिए। यह तो निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। सेवा सदैव सेवा भाव से युक्त होकर ही करनी चाहिए फिर चाहे हम शारीरिक रूप से अक्षम हो या असमर्थ हो सेवा परवान होती है क्योंकि वह सेवा भावना से युक्त होती है।

निरंकारी संत समागम, जिसकी प्रतीक्षा हर भक्त वर्ष भर करते हैं एक ऐसा दिव्य उत्सव है जहाँ मानवता, असीम प्रेम, असीम करुणा, असीम विश्वास और असीम समर्पण के भाव को असीम परमात्मा के ज्ञान का आधार देते हुए सुशोभित करती है। मानवता के इस उत्सव में हर धर्म-प्रेमी का स्वागत है। यह समस्त जानकारी काशीपुर मीडिया प्रभारी प्रकाश खेड़ा द्वारा दी गई।

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here