महानाद डेस्क : उत्तराखंड जैसे ग्रामीण भारत में, डिसोसिएटिव कन्वर्जन डिसऑर्डर, स्यूडोसेज़र (गैर-मिर्गी दौरा) और पजेशन सिंड्रोम को अक्सर गलत समझा जाता है। लोग इन्हें देवी-देवता का प्रकोप, ऊपरी हवा या भूत-प्रेत का साया मानते हैं। यह विश्वास विशेष रूप से उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलित है, जहां शिक्षा और मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता की कमी है। इस लेख में, हम इन स्थितियों के वैज्ञानिक कारणों को समझाएंगे, मिथकों का खंडन करेंगे और यह बताएंगे कि कैसे तथाकथित झाड़-फूंक करने वाले लोग इन गलतफहमियों का फायदा उठाकर पैसे कमाते हैं।
डिसोसिएटिव कन्वर्जन डिसऑर्डर क्या है?
डिसोसिएटिव कन्वर्जन डिसऑर्डर एक मानसिक स्वास्थ्य स्थिति है, जिसमें व्यक्ति तनाव, आघात या भावनात्मक दबाव के कारण शारीरिक लक्षण अनुभव करता है, जैसे कि लकवा, अंधापन, या शरीर का कांपना। ये लक्षण वास्तविक लगते हैं, लेकिन इनका कोई शारीरिक कारण नहीं होता। उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति अचानक बोलने की क्षमता खो सकता है या उसे लग सकता है कि उसका शरीर उसका नियंत्रण नहीं मान रहा।
उत्तराखंड में गलतफहमियां :
उत्तराखंड में, ऐसे लक्षणों को अक्सर देवी का प्रकोप या ऊपरी हवा से जोड़ा जाता है। लोग मानते हैं कि यह किसी अलौकिक शक्ति का प्रभाव है। यह विश्वास सामाजिक और सांस्कृतिक कारकों से उपजा है, जहां मानसिक स्वास्थ्य को समझने के बजाय, लोग इसे धार्मिक या रहस्यमय घटना मान लेते हैं।
स्यूडोसेज़र (गैर-मिर्गी दौरा) :
स्यूडोसेज़र ऐसे दौरे हैं जो मिर्गी जैसे दिखते हैं, लेकिन इनका कारण मस्तिष्क में विद्युतीय गड़बड़ी नहीं होता। ये दौरे आमतौर पर मनोवैज्ञानिक तनाव, अवसाद, या दर्दनाक अनुभवों से संबंधित होते हैं। व्यक्ति को शरीर में झटके, बेहोशी, या अनियंत्रित हिलना-डुलना महसूस हो सकता है।
मिथक और वास्तविकता :
ग्रामीण उत्तराखंड में, स्यूडोसेज़र को भूत-प्रेत का प्रभाव या देवता का क्रोध माना जाता है। परिवार वाले इसे ठीक करने के लिए झाड़-फूंक करने वालों या तांत्रिकों के पास जाते हैं। वैज्ञानिक रूप से, ये दौरे मनोवैज्ञानिक कारणों से होते हैं और इन्हें मनोचिकित्सक या न्यूरोलॉजिस्ट की मदद से ठीक किया जा सकता है।
पजेशन सिंड्रोम :
पजेशन सिंड्रोम एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति को लगता है कि उसका शरीर किसी बाहरी शक्ति, जैसे भूत, प्रेत, या देवता ने कब्जा कर लिया है। यह आमतौर पर डिसोसिएटिव डिसऑर्डर का एक रूप है, जहां व्यक्ति तनाव या दबाव के कारण अपनी चेतना से संपर्क खो देता है। उत्तराखंड में, इसे माता का चढ़ना या देवता का आना कहा जाता है।
सांस्कृतिक प्रभाव :
उत्तराखंड की संस्कृति में, देवी-देवताओं में गहरी आस्था है। जब कोई व्यक्ति असामान्य व्यवहार करता है, जैसे कि चिल्लाना, अजीब हरकतें करना, या बेहोश होना, तो इसे धार्मिक अनुभव से जोड़ दिया जाता है। यह विश्वास ग्रामीण समुदायों में इतना गहरा है कि लोग वैज्ञानिक उपचार की बजाय तांत्रिकों या ओझाओं पर भरोसा करते हैं।
वैज्ञानिक कारण :
इन सभी स्थितियों के पीछे मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कारण होते हैं :
1. तनाव और आघात : बचपन का दुरुपयोग, पारिवारिक समस्याएं, या सामाजिक दबाव इन लक्षणों को ट्रिगर कर सकते हैं।
2. शिक्षा की कमी: मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता न होने से लोग इन्हें अलौकिक घटनाएं मान लेते हैं।
3. सांस्कृतिक विश्वास : उत्तराखंड में देवी-देवताओं और आत्माओं में विश्वास इन गलतफहमियों को बढ़ावा देता है।
4. अवसाद और चिंता : ये मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं शारीरिक लक्षणों के रूप में प्रकट हो सकती हैं।
झाड़-फूंक करने वालों का शोषण :
उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में, तथाकथित बाबा, ओझा या तांत्रिक इन गलतफहमियों का फायदा उठाते हैं। वे दावा करते हैं कि वे ऊपरी हवा या भूत-प्रेत को भगा सकते हैं। इसके लिए वे मोटी रकम वसूलते हैं और कभी-कभी परिवारों को अनुष्ठान, पूजा, या बलि देने के लिए मजबूर करते हैं।
कैसे करते हैं शोषण?
1. डर का माहौल बनाना : वे परिवार को डराते हैं कि अगर अनुष्ठान नहीं किया गया तो स्थिति और खराब हो जाएगी।
2. आर्थिक शोषण : गरीब परिवारों से हजारों रुपये वसूले जाते हैं, जो उनकी आर्थिक स्थिति को और खराब करता है।
3. गलत उपचार : ये लोग वैज्ञानिक उपचार की बजाय झाड़-फूंक पर जोर देते हैं, जिससे स्थिति और बिगड़ सकती है।
4. सामाजिक दबाव : समाज में उनकी बात को सच मान लिया जाता है, जिससे परिवार वैज्ञानिक उपचार की ओर नहीं जाते।
मिथकों का खंडन :
1. मिथक : डिसोसिएटिव डिसऑर्डर और स्यूडोसेज़र देवी-देवता का प्रकोप हैं।
वास्तविकता : ये मनोवैज्ञानिक समस्याएं हैं, जिनका इलाज मनोचिकित्सक और दवाओं से संभव है।
2. मिथक : पजेशन सिंड्रोम में व्यक्ति पर वास्तव में कोई आत्मा सवार होती है।
वास्तविकता : यह एक मानसिक स्थिति है, जो तनाव या आघात के कारण होती है।
3. मिथक : झाड़-फूंक से ये समस्याएं ठीक हो सकती हैं।
वास्तविकता : झाड़-फूंक का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। सही उपचार के लिए डॉक्टर की सलाह जरूरी है।
समाधान और जागरूकता :
1. शिक्षा और जागरूकता : ग्रामीण क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए।
2. वैज्ञानिक उपचार : मनोचिकित्सकों और न्यूरोलॉजिस्ट की मदद से इन स्थितियों का इलाज संभव है।
3. सामुदायिक सहायता : स्थानीय नेताओं और शिक्षकों को चाहिए कि वे लोगों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रोत्साहित करें।
4. कानूनी कार्रवाई : झाड़-फूंक के नाम पर शोषण करने वालों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।
निष्कर्ष :
डिसोसिएटिव कन्वर्जन डिसऑर्डर, स्यूडोसेज़र और पजेशन सिंड्रोम कोई अलौकिक घटनाएं नहीं हैं, बल्कि ये मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित समस्याएं हैं। उत्तराखंड जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां देवी-देवता और ऊपरी हवा जैसे मिथक गहरे बसे हैं, लोगों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। झाड़-फूंक करने वालों के शोषण से बचने के लिए जागरूकता, शिक्षा और सही उपचार ही एकमात्र रास्ता है। आइए, हम सब मिलकर इन मिथकों को तोड़ें और एक स्वस्थ समाज का निर्माण करें।
लेखक काशीपुर के जाने माने मनोरोग विशेषज्ञ हैं।
सम्पर्क –
डॉ. सिद्धान्त माथुर (M.B.B.S., M.D.)
हाइटेक अस्पताल, गिरीताल मन्दिर रोड, गिरीताल, काशीपुर (उधम सिंह नगर) उत्तराखंड
मो.: 9568483045