इलाहाबाद (महानाद) : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले में दिये अपने आदेश में कहा है कि अदालतों का उपयोग दूसरों को तंग करने के हथियार के रूप में किया जा रहा है। तुच्छ और दूसरों को तंग करने वाले मुकदमे न्यायिक व्यवस्था पर अनावश्यक बोझ बढ़ाते हैं। अदालतें पहले से ही इस तरह के मुकदमों से भारी दबाव में हैं, खासकर एससी/एसटी एक्ट के मुकदमों से।
हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसे फर्जी मुकदमों के कारण अदालतों का मूल्यवान समय बर्बाद होता है और समय की कमी के कारण महत्वपूर्ण मुकदमों की सुनवाई नहीं हो पाती। कोर्ट ने कहा कि ऐसे तुच्छ और दूसरों को तंग करने वाले मुकदमों की जांच होनी चाहिए। विधिक जागरूकता का मतलब तुच्छ और दूसरों को तंग करने वाली मुकदमेबाजी नहीं हो सकता है। मुकदमा वास्तविक कारणों के लिए होना चाहिए। हाईकोर्ट ने उक्त टिप्पणी करते हुए एससी/एसटी एक्ट का फर्जी मुकदमा दर्ज कराने वाली ललितपुर की सरस्वती पर 20 हजार रुपये का हर्जाना लगाया है।
उक्त आदेश न्यायमूर्ति ओम प्रकाश त्रिपाठी ने परसु व दो अन्य की आपराधिक अपील पर सुनवाई करते हुए दिया है। अपील में याची के खिलाफ दर्ज मारपीट और एससी/एसटी एक्ट के मुकदमे में ट्रायल कोर्ट द्वारा जारी सम्मन आदेश को चुनौती दी गई थी। कहा गया कि याची को परेशान करने के इरादे से फर्जी मुकदमा दर्ज कराया गया है जबकि वह पूरी तरीके से निर्दाेष है। वादी मुकदमा ने इससे पूर्व भी याची और उसके दो बेटों के खिलाफ छेड़खानी, रेप, मारपीट और एससी/एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कराया था। उसकी जांच के बाद पुलिस ने फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी। रिपोर्ट के खिलाफ दाखिल प्रोटेस्ट पिटिशन भी अदालत ने खारिज कर दी है। इसके बाद वादी ने दूसरा मुकदमा मारपीट और एससी/एसटी एक्ट के तहत दर्ज करा दिया, जिसमें कोर्ट ने उसे ट्रायल के लिए सम्मन जारी किया है। अपील लंबित रहने के दौरान दोनों पक्षों के बीच समझौता हो गया। इस समझौते की ट्रायल कोर्ट ने पुष्टि भी कर दी।
सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा वादी सरस्वती ने दोनों मुकदमे सिर्फ याची का उत्पीड़न करने के लिए किए। उसके इस कार्य से न्यायिक प्रक्रिया पर अनावश्यक बोझ पड़ा। कोर्ट ने मुकदमे की कार्रवाई को रद्द करते हुए सरस्वती देवी पर याची को फर्जी मुकदमे में फंसाने के लिए 20 हजार रुपये का हर्जाना लगाया है। हर्जाने की राशि जिला विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा करने का निर्देश दिया गया है।