साहसिक कारनामा : केवल 3 पुलिसकर्मियों के साथ हत्यारे को नूंह से पकड़कर लाये थे इंस्पेक्टर आरके सकलानी

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विकास अग्रवाल की विशेष रिपोर्ट
महानाद डेस्क: हरियाणा के मेवात का नूंह आजकल चर्चाओं में है। नूंह में 31 जुलाई को एक शोभायात्रा निकाली गई। यात्रा के कुछ ही दूर पहुंचने पर पथराव और फायरिंग होने के बाद मामले ने सांप्रदायिक रंग ले लिया जिसमें दो होम गार्ड सहित 6 लोगों की जान चली गई। ऐसे में काशीपुर आईटीआई चौकी के पूर्व इंचार्ज और अब हरिद्वार में तैनात इंस्पेक्टर आरके सकलानी ने नूंह को लेकर अपना एक संस्मरण ‘महानाद’ के साथ साझा किया है। उन्होंने नूंह में उनके द्वारा अंजाम दिये गये ऐसे साहसिक कारनामे के बारे में बताया है जिसे आप भी पढ़कर दंग रह जायेंगे। तो पढ़ते हैं इंस्पेक्टर आरके सकलानी द्वारा साझा किया संस्मरण

मेवात का नूंह आजकल चर्चाओं में है। इतना ही नहीं हिंसा के बीच आगजनी और तोड़-फोड़ भी हुई। जब कुछ घंटों बाद स्थिति थोड़ी शांत हुई तो सिर्फ बर्बादी की निशानी देखने को मिली। हालांकि, ये कोई नई बात नहीं है. ये कहानी सदियों पुरानी है और सदियों पुरानी इस कहानी ने ही मेवात को सांप्रदायिक राजनीति की ऐसी प्रयोगशाला में तब्दील कर दिया है कि उस पर हर राजनीतिक दल अपनी सियासी रोटियां सेंकते आए हैं। मैं 2011 में हरिद्वार में सिडकुल प्रभारी था, मेरे यहाँ एक ट्रक चालक की हत्या हुई थी, जो उसी के क्लिनर ने की थी। आरोपी नूंह का रहने वाला था, लिहाज़ा मैं 3 सिपाही लेकर नूंह थाने पहुँचा। जब मैंने आरोपी को पकड़ने के लिये वहाँ के एसएचओ को फ़ोर्स देने के लिए कहा तो उन्होंने हाथ खड़े कर दिए और कहा की उस गांव में घुसने के लिए कम से कम 500 पुलिस वाले चाहिए। आप अपने यहाँ से अतिरिक्त फ़ोर्स मंगाइये तब मैं साथ में अपने थाने का फोर्स दूँगा।

अब मैं भी कहाँ पीछे हटने वाला था। वहाँ थाने में हमने उस गांव के एक उसी समुदाय के होम गार्ड की मदद से आरोपी के घर की लोकेशन और पहचान ले ली। उस होम गार्ड ने वास्तव में गांव और धर्म से ऊपर उठाकर अपने राष्ट्र धर्म को निभाया। मात्र 3 सिपाही साथ लेकर गांव में घुस गये। गांव की आबादी करीब 10 हजार रही होगी। अंदर घुस कर वास्तव में नयी दुनिया लग रही थी। हम होमगार्ड के बताये अनुसार उस घर में घुस गये। मजे की बात है की बेखबर आरोपी अपने घर के आँगन में ही बैठा था। उसकी नजर हम पर पड़ते ही उसने भागने की कोशिश की पर हमने दबोच लिया। गाड़ी के ड्राइवर को हमने पहले ही गाड़ी बैक करने के लिए कह दिया था। आरोपी को बिना किसी देरी के गाड़ी में ठूँसा। तब तक आस पास के लोगो और उसके घर वालों ने हमे घेरने का प्रयास किया पर सफल नहीं हो पाये। उसे लेकर जब हम नूंह थाने पहुँचे और वहाँ के एसएचओ को हमने सीना ठोककर बताया कि हम आरोपी को ख़ुद ही उठा ले आये हैं। एसएचओ साहब की आँखें फटी की फटी रह गई उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था।

पुलिस चाहे मेवात में हो या उत्तराखंड में या कहीं भी, जनसंख्या की तुलना में वह अपने क्षेत्र के आबादी का 0.01 प्रतिशत होती होगी। परंतु हमारी ट्रेनिंग और आत्मविश्वास हमे ये हिम्मत देती है कि अपराधी को उसके बिल से खींच कर ले आयें। इस घटना से मुझे लगा कि वहाँ पर पुलिस को अवधारणा के बजाय आत्मविश्वास की जरूरत है।

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