साहित्य दर्पण काव्य संध्या : मिल जाएगा सपनों का संसार इच्छाएं कम करके देखो…

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विकास अग्रवाल
काशीपुर (महानाद) : साहित्य दर्पण की मासिक काव्य संध्या का आयोजन बीपी कोटनाला के सौजन्य से उनके आवास के कम्युनिटी हॉल, वीरभूमि, मानपुर रोड, काशीपुर में आयोजित की गई, जिसकी अध्यक्षता वीरभूमि समिति के अध्यक्ष राजीव गुप्ता ने की। संचालन ओम शरण आर्य चंचल ने किया।

मौके पर बीपी कोटनाला द्वारा रचित श्री कृष्ण भक्ति पुष्पांजलि एवं कैलाश चंद्र यादव द्वारा रचित गीत माला संग्रह, आंखें तेरी जानम पैमाने दो, का विमोचन भी किया गया।

कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती के चित्र का अनावरण माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ सरस्वती वंदना भोला दत्त पांडे ने मधुर स्वर में प्रस्तुत की। कवियों ने अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना प्रस्तुत कर सभी का मन मोह लिया।

कवि जितेंद्र कुमार कटियार- मिल जाएगा सपनों का संसार इच्छाएं कम करके देखो, छंट जाएगा गम जीवन से यार सबको हंसा करके देखो।
कवि डॉ. मनोज आर्य- अल्फाज जिन्हें साफ सुनाई नहीं देते, हम उनको कोई अपनी सफाई नहीं देते।
कवि कैलाश चंद्र यादव- ऐसे-ऐसे गम देता है अपना ही खून दगा देता है, दिल से लिखे अफसाने पल में झूठ बता देता है।
कवि विवेक प्रजापति- वक्त थोड़ा बिता के जाना तुम फर्ज अपना निभा के जाना तुम, राह में यदि मिले शहीद का घर अपने सर को झुका के जाना तुम।
कवि ओम शरण आर्य चंचल- वाटिका में चलो घूम आये प्रिये, क्या पता यों समय फिर मिले ना मिले, गीत हर प्यार का आओ गायें प्रिये क्या पता यों समय फिर मिले ना मिले।
कवि कुमार विवेक मानस- जख्म छुपाना भी यहां हुनर बहुत है खास, यूं मुट्ठी में है नमक धर लो तुम विश्वास।
कवि डॉ. प्रतोष मिश्रा-राम ही साध्य हैं राम आराध्या हैं, राम है सारे जग में समाए हुए।
कवि शेष कुमार सितारा- आंगन में दीवारें खिंचना कैसा लगता है, मां के आंचल का बट जाना कैसा लगता है।
कवि कैलाश चंद्र जोशी- भर ली है ऊंची उड़ान हमने, बना लिया है मंगलयान हमने, करली तरक्की मशीनों में बहुत, बहुत पीछे छोड़ दिया इंसान हमने।
कवि वीके मिश्रा- संगीत का मेला है तुम गीत बन के आना, आकर के फिर ना जा बस दिल में समा जाना।
कवियित्री डॉ. सुनीता कुशवाहा- खनन माफिया को जब से पता चला चांद पर धरती से अधिक लोहा है, वे चांद से लोहा लेने चले गए।
कवि सुरेंद्र भारद्वाज- खामोशी की भी जुबान होती है बदनामी भी एक पहचान होती है।
कवि डॉ. यशपाल रावत- नशा सा है यूं क्या सच कह दूं, नगमें बिछा दूं या धुन बना दूं, एक खुशी जो मचल रही है दिल में, दिल खोल कर आज सबको बता दूं।
कवि विजय प्रकाश कुशवाहा कुश- द्वार दिल के खुले हैं चले आइये, आपका ही घर है चले आइये।
कवि पद्मादत्त देवलाल- मांग के भांग बहुत पिए हर, नांदि तो भार की मार सहे।
कवि नवीन सिंह नवीन- देख के सूर्य का कैच, बदल गया टी20 वर्ल्ड मैच।
कवि अनुराज चौधरी- मत जाहिर करो प्यार को जाहिर भले तुम, हमें एहसास है तुम्हारा।
कवि बीपी कोटनाला- मत करो परवाह जमाने की तुमको तो प्राण प्रतिष्ठा करनी है, अनिल सारस्वत अमर रहे।

काव्य संध्या में निर्मला कोटनाला, जितेंद्र दत्त, तेजस्वी कोटनाला, आदित्य चौहान, धर्मेंद्र चौहान, सोनाक्षी शर्मा आदि उपस्थित रहे।

काव्य संध्या में बीपी कोटनाला ने नई परंपरा के साथ उन विद्यार्थियों को सम्मानित किया जिन्होंने 95 प्रतिशत से अधिक अंक प्राप्त कर अपने माता-पिता तथा वीरभूमि समिति को गौरव प्रदान किया।

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