विकास अग्रवाल की विशेष रिपोर्ट
महानाद डेस्क: 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए विपक्ष द्वारा 26 दलों के अपने गठबंधन का नाम इंडिया (I.N.D.I.A. – The Indian National Developmental Inclusive Alliance) रखकर मास्टर स्ट्रोक खेला गया। लेकिन जी-20 के निमंत्रण में प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया की जगह प्रेसिडेंट ऑफ भारत के छपते ही विपक्षी खेमे में हलचल मच गई।
नरेन्द्र मोदी नीत भाजपा सरकार ने जैसे ही ‘भारत’ नाम का प्रचार करना शुरु किया विपक्षियों ने भी प्रचार करना शुरु कर दिया कि अब मोदी इंडिया का नाम बदलकर भारत करना चाहते हैं। आइये जानते हैं कि इंडिया और भारत के इतिहास के बारे में।
आपको बता दें कि भारतीय संविधान की शुरुआत होती है – ‘हम भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथ निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को…..
आपको बता दें कि देश को आजादी दिलाने का दावा करने वाली भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना 72 प्रतिनिधियों की उपस्थिति के साथ 28 दिसम्बर 1885 को मुंबई के गोकुल दास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय में हुई थी। इसके संस्थापक महासचिव (जनरल सेक्रेटरी) एक अंग्रेज एओ ह्यूम थे। जिन्होंने कलकत्ता के व्योमेश चन्द्र बनर्जी को अध्यक्ष नियुक्त किया था। लगभग 55 वर्षों तक भारत में अपना राज चलाने वाली कांग्रेस ने यह नहीं बताया कि अंग्रेजों की गुलामी से आजादी दिलाने के लिए एक अंग्रेज ने ही क्यों कांग्रेस की स्थापना की थी।
देश के क्रांतिकारियों की शहादत व कांग्रेस के आंदोलनों के कारण 15 अगस्त 1947 को मिली आजादी के बाद लागू किये संविधान में क्यों यह कहा गया कि India, That is Bharat.
तो क्या आजादी के बाद जिस कांग्रेस को सत्ता मिली, उस पर ईस्ट इंडिया का पूरा प्रभाव था। इसलिए उसने संविधान में भारत को अंग्रेजी में इंडिया कहा। जहां दुनिया के अधिकतर देशों का नाम हिंदी/अंग्रेजी या अन्य किसी भी भाषा में एक ही है, वहीं भारत को अंग्रेजी में इंडिया कहा गया जिसका शाब्दिक अर्थ भारत नहीं होता था, इसलिए संविधान में स्पेशल तौर पर कहा गया कि India, That is Bharat.
अब बात करते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भारत के नाम को भारत के रूप में प्रमोट करने की-
प्रधानमंत्री द्वारा भारत नाम प्रमोट करते ही विपक्षी हल्ला करने लगे कि मोदी देश का नाम बदल रहे हैं। जबकि इस देश का नाम भारत तो खुद कांग्रेस ने भी संविधान में माना है लेकिन अंग्रेजियत को श्रेष्ठ मानने वाली कांग्रेस ने भारत का नाम BHARAT न कर ईस्ट इंडिया कंपनी की गुलामी से आजाद होने पर इंडिया रख दिया।
अब विपक्षी दलों के नेताओं सहित कांग्रेस नेता और समर्थक सोशल मीडिया पर कह रहे हैं कि कहां-कहां से इंडिया हटाओगे। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से भारतीय मुद्रा से, इसरो से, आईआईएम, आईआईटी और न जाने कितनी संस्थाओं का उदाहरण देने में लगे हैं। तो यदि गुलामी का प्रतीक इंडिया हट भी जाता है तो इसमें अफसोस की बात क्या है। क्योंकि अंग्रेजों से भी हजारों साल पहले से हमारा यह भारत देश है। इसलिए हिंदी में भारत, अंग्रेजी में भी भारत, उर्दू में भी भारत, हर देशी-विदेशी भाषा में भारत, सिर्फ भारत।
अब हम आते हैं कि भारत का नाम भारत कैसे पड़ा –
सबसे प्रचलित मान्यता है कि महाराजा दुष्यंत और महारानी शकुंतला के पुत्र भरत के नाम पर भारत देश का नाम पड़ा। भरत एक चक्रवर्ती सम्राट थे, जिन्हें चारों दिशाओं की भूमि का स्वामी कहा जाता था।
इस हिसाब से जब इस देश में अंग्रेजी अपने अस्तित्व में नहीं थी तबसे इस देश का नाम भारत है। वहीं ईस्ट इंडिया कंपनी जिसने भारत को अपना गुलाम बनाया, कि स्थापना 31 दिसंबर 1600 में हुई थी। इस कंपनी को बनाने के पीछे एकमात्र उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्यवाद और औनपिवेशीकरण को बढ़ावा देना था। वर्ष 1608 में कैप्टन विलियम हॉकिंस ने भारत के सूरत बंदरगाह पर अपने जहाज हेक्टर को लाने के साथ ही ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत में आने का एलान कर दिया था।
हिंद महासागर में ब्रिटेन के व्यापारिक प्रतिद्वंदी डच और पुर्तगाली पहले से ही मौजूद थे। तब किसी ने अनुमान भी नहीं लगाया होगा कि ये कंपनी अपने देश से बीस गुना बड़े, दुनिया के सबसे धनी देशों में से एक और उसकी लगभग एक चौथाई आबादी पर सीधे तौर पर शासन करने वाली थी। तब तक बादशाह अकबर की मृत्यु हो चुकी थी।
हॉकिंस एक वर्ष के भीतर मुगल राजधानी आगरा पहुँचा। कम पढ़े-लिखे हॉकिंस को जहाँगीर से व्यापार की अनुमति प्राप्त करने में सफलता नहीं मिली। उसके बाद संसद सदस्य और राजदूत सर थॉमस रो को शाही दूत के रूप में भेजा गया। सर थॉमस रो 1615 में मुगल राजधानी आगरा पहुँचे। उन्होंने राजा को बहुमूल्य उपहार भेंट किया, जिसमें शिकारी कुत्ते और उनकी पसंदीदा शराब भी शामिल थी.
तीन साल तक लगातार अनुनय-विनय के बाद सर थॉमस रो को इसमें सफलता मिली। जहाँगीर ने ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ एक व्यापारिक समझौते पर हस्ताक्षर किये। समझौते के तहत, कंपनी और ब्रिटेन के सभी व्यापारियों को उपमहाद्वीप के प्रत्येक बंदरगाह और ख़रीदने तथा बेचने के लिए जगहों के इस्तेमाल की इजाजत दी गई। बदले में यूरोपीय उत्पादों को भारत को देने का वादा किया गया था, लेकिन तब वहाँ बनता ही क्या था? वर्ष 1759 में और फिर वर्ष 1764 में विजय के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल का प्रशासन अपने हाथ में ले लिया।
एक अंग्रेज़ के शब्दों में, ‘आम अंग्रेज़ों को समझाना मुश्किल है कि हमारे शासन से पहले भारतीय लोग काफ़ी सुखद जीवन व्यतीत कर रहे थे। व्यापारी और साहसी लोगों के लिए विभिन्न प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध थीं। मुझे पूरा विश्वास है कि अंग्रेज़ों के आने से पहले भारतीय व्यापारी बहुत ही आरामदायक जीवन जी रहे थे।’
ईस्ट इंडिया कंपनी एक व्यापारिक कंपनी थी लेकिन उसके पास ढाई लाख सैनिकों की एक फौज थी। जहाँ व्यापार से लाभ की संभावना नहीं होती, तो वहाँ सेना उसे संभव बना देती। कंपनी की सेना ने अगले पचास वर्षों में भारत के अधिकांश हिस्से पर कब्जा कर लिया। जिसके बाद अंग्रेज भारत को इंडिया कहने लगे।