पंत ने टम्टा बनकर हासिल की सरकारी नौकरी, रिटायर होने के 3 दिन पहले हुई बर्खास्त

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जसपुर/देहरादून (महानाद) : 7 साल तक चली लंबी जांच के बाद आखिरकार शासन ने जसपुर में तैनात बाल विकास परियोजना अधिकारी (सीडीपीओ) लक्ष्मी टम्टा/पंत को उनके रिटायर होने से महज 3 दिन पहले सेवा से बर्खास्त कर दिया।

मिली जानकारी के अनुसार जसपुर में तैनात सीडीपीओ लक्ष्मी टम्टा का शादी से पहले नाम लक्ष्मी पंत था। 1982 में उन्होंने अल्मोड़ा निवासी मुकेश टम्टा से शादी करने के बाद अपने नाम से पंत हटाकर टम्टा लगा लिया। उनकी हाईसकूल और इंटर की मार्क्सशीट में उनका नाम लक्ष्मी पंत लिखा है। जबकि उन्होंने गलत दस्तावेज लगातार स्नातक की मार्क्सशीट में अपना नाम लक्ष्मी टम्टा कर लिया और फिर अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र बनवाकर 8 अप्रैल 1988 में तत्कालीन उत्तर प्रदेश के समय बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार निदेशालय से मुख्य सेविका (सुपरवाइजर) की नौकरी हासिल कर ली। फिर उत्तराखंड बनने के 3 वर्ष बाद सन 2003 में उनका प्रमोशन बाल विकास परियोजना अधिकारी (सीडीपीओ) के पद पर हो गया।

आपको बता दें कि 6 जनवरी 2016 को की गई शिकायत के आधार पर महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास के निदेशक ने ऊधम सिंह नगर के सीडीओ से मामले की जांच के लिए कहा था। जांच के बाद सितंबर 2019 में तत्कालीन निदेशक झरना कमठान ने सीडीपीओ लक्ष्मी पंत/टम्टा को सस्पेंड कर दिया लेकिन इसे कोर्ट में चैलेंज करते हुए फरवरी 2023 में लक्ष्मी टम्टा ने फिर से नौकरी ज्वाइन कर ली।

आपको बता दें कि अप्रैल 2023 तक वे अपनी नौकरी के 31 वर्ष पूर्ण कर चुकी हैं। इसी 31 जुलाई को उनका रिटायरमेंट भी था। सीडीपीओ का मूूल निवास अल्मोड़ा के दन्यां गांव में होने से सीडीओ ऊधम सिंह नगर द्वारा कई पत्र भेजने के बाद भी जांच में सहयोग नहीं मिला। तब निदेशक ने सीधे जिलाधिकारी अल्मोड़ा को निर्देशित कर मामले की जांच करने को कहा। और फिर अल्मोड़ा के जिलाधिकारी की जांच में मामला पूरी तरह उजागर हो गया। लेकिन अधिकारियों की इस पत्राचार कार्रवाई में 7 साल लग गए।

अब देखना है कि प्रशासन इस मामले में आगे क्या कार्रवाई करता है। क्या प्रशासन पिछले 31 वर्षों में लक्ष्मी पंत/टम्टा को दी गई सेलरी व अन्य भत्तों की वसूली कर कोई सजा दिला पायेगा या अपनी नौकरी के बचे महज 3 दिन पहले बर्खास्त करने की कार्रवाई करके ही इतिश्री कर लेगा, यह तो भविष्य के गर्भ में है।

विदित हो कि उत्तर प्रदेश के शासनादेश संख्या 22-39, 1984 में स्पष्ट लिखा है कि यदि कोई सवर्ण स्त्री किसी अनुसूचित जाति/जनजाति के पुरुष से विवाह करती है, तो उस स्त्री को आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा।

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