वेश्यावृत्ति है एक प्रोफेशन, पुलिस न करे हस्तक्षेप : सुप्रीम कोर्ट

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नई दिल्ली (महानाद) : सुप्रीम कोर्ट ने आज बृहस्पतिवार को एक निर्णय सुनाते हुए कहा कि वेश्यावृत्ति एक प्रोफेशन है। देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की पुलिस को सेक्स वर्कर्स के काम में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। बालिग और सहमति से सेक्स वर्क करने वाली महिलाओं पर कोई आपराधिक कार्रवाई नहीं करनी चाहिए।

कोरोना के दौरान सेक्स वर्कर्स को आई पर परेशानियों को लेकर दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के एल नागेश्वर राव, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एएस बोपन्ना की बेंच ने कहा कि कि सेक्स वर्कर्स भी कानून के तहत गरिमा और समान सुरक्षा के हकदार हैं। उन्होंने सेक्स वर्कर्स के अधिकारों को सुरक्षित करने की दिशा में 6 निर्देश भी जारी करते हुएए कहा कि सेक्स वर्कर्स भी देश के नागरिक हैं। वे भी कानून में समान संरक्षण के हकदार हैं।

बेंच ने कहा, इस देश के हर नागरिक को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार मिला है। अगर पुलिस को किसी वजह से उनके घर पर छापेमारी करनी भी पड़ती है तो सेक्स वर्कर्स को गिरफ्तार या परेशान न करे। अपनी मर्जी से प्रॉस्टीट्यूट बनना अवैध नहीं है, केवल वेश्यालय चलाना गैरकानूनी है।

कोर्ट ने कहा कि यदि सेक्स वर्कर के साथ कोई भी अपराध होता है तो तुरंत उसे मदद उपलब्ध कराएं, उसके साथ यौन उत्पीड़न होता है, तो उसे कानून के तहत तुरंत मेडिकल सहायता सहित वो सभी सुविधाएं मिलें जो यौन पीड़ित किसी भी महिला को मिलती है। कई मामलों में यह देखा गया है कि पुलिस सेक्स वर्कर्स के प्रति क्रूर और हिंसक रवैया अपनाती है। ऐसे में पुलिस और एजेंसियों को भी सेक्स वर्कर के अधिकारों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। पुलिस को प्रॉस्टिट्यूट के साथ सम्मान के साथ व्यवहार करना चाहिए, पुलिस को उनके साथ मौखिक या शारीरिक रूप से बुरा व्यवहार नहीं करना चाहिए। कोई भी सेक्स वर्कर को यौन गतिविधि के लिए मजबूर नहीं कर सकता।

वहीं, कोर्ट ने प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया से सेक्स वर्कर्स से जुड़े मामले की कवरेज के लिए दिशा-निर्देश जारी करने की अपील की है। जिससे गिरफ्तारी, छापे या किसी अन्य अभियान के दौरान सेक्स वर्कर्स की पहचान उजागर न हो। कोर्ट ने ये आदेश सेक्स वर्कर्स के पुनर्वास को लेकर बनाए गए पैनल की सिफारिश पर दिए हैं।