उत्तराखंड में बड़ी चुनौती बन कर उभर रहा है ब्लैक फंगस

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सी एम पपनैं
नई दिल्ली (महानाद) : उत्तराखंड में जहां कोरोना संक्रमण के मामले घट रहे हैं। वहीं ब्लैक फंगस (म्यूकोरमायकोसिस) के मामले चुनौती बन कर उभर रहे हैं। जिन्हें कोरोना नहीं है, उन्हे भी ब्लैक फंगस ने चपेट में लेना शुरू किया है। डाक्टरों द्वारा कमजोर इम्युनिटी और स्टेरायड के साथ-साथ, गन्दे मास्क का लगातार प्रयोग, साफ-सफाई न रखना तथा कुछ मामलों में औद्योगिक आक्सीजन इत्यादि को इसका जिम्मेदार बताया जा रहा है। लोगों के बीच डर फैल रहा है, जो एक बड़ी चुनौती बन कर खड़ी हो रही है।
प्रदेश में प्राप्त जानकारी के मुताबिक 244 ब्लैक फंगस के मामले सामने आ चुके हैं। 27 मौतें हो चुकी हैं। 13 पीड़ित ठीक होकर घर जा चुके हैं। अकेले देहरादून जिले में सबसे अधिक 203 मामले सामने आए हैं। 15 पीड़ितों की मौत की सूचना है।
ब्लैक फंगस को महामारी घोषित किए जाने के बाद से, सभी सरकारी एवं प्राईवेट अस्पताल इस बीमारी के मरीजों के बारे में प्रदेश के मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय को बराबर जानकारी उपलब्ध करा रहे हैं। ब्लैक फंगस इलाज के लिए उत्तराखंड मे एम्स ऋषिकेष को सबसे बड़ा केन्द्र बनाया गया है। इसके अतिरिक्त हल्द्वानी व श्रीनगर सहित देहरादून के नो अस्पतालों को चयनित किया गया है। सरकारी अस्पताल दून मेडिकल कालेज में, विशेष रूप से तैयारी की गई है। आपरेशन थियेटर बनाया गया है। विशेषज्ञ ईएनटी सर्जन तैनात किए गए हैं। जरूरत के मुताबिक आपरेशन शुरू हो गए हैं।
कोरोना संक्रमण की पहली लहर के मुकाबले, दूसरी लहर में, दुर्लभ फंगल संक्रमण की गंभीरता और मामले देखकर, देश के बडे मेडिकल संस्थानों के डाक्टर हैरान हैं। विश्व के किसी अन्य देश मे यह फंगल संक्रमण नहीं देखा जा रहा है।
भयावह रूप धारण कर रहे, ब्लैक फंगस पर देश के विभिन्न संस्थानों के जाने माने डाक्टर, अपनी अलग-अलग राय रख कर चल रहे हैं। डाक्टरों का मानना है, ब्लैक फंगस संक्रमण अक्सर कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली, गम्भीर बीमारियों से ग्रस्त लोग, लम्बे समय तक आईसीयू मे रहे लोग, कैंसर, कीमोथरेपी वाले मरीज, स्टेरायड का उपयोग करने वाले मरीज, अनियंत्रित मधुमेह पीड़ित मरीजों तथा एंटी बायोटिक व जिंक टेबलेट का अधिक प्रयोग तथा अत्यधिक भाप लेने वाले लोगों को गिरफ्त मे ले रहा है। ब्लैक फंगस कोरोना विषाणु संक्रमण की तरह संक्रामक नहीं है। न ही एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति मे फैलता है। डाक्टरांे के अनुसार, ब्लैक फंगस की खासियत यह है कि इससे ग्रसित मरीज कभी घर में नहीं बैठ सकता, उसे अस्पताल जाना ही होगा।
डाक्टरों के अनुसार, ब्लैक फंगस के लक्षणों में, सिर दर्द, आंख के एक हिस्से मे असहनीय दर्द, चेहरा एक तरफ फूलना, खांसी और खूनी खांसी आना, नाक के चारों ओर काली पपड़ी दिखना, आंखों में धुंधला छा जाना, नाक बंद होना व नाक से खून बहना, सांस लेने मे तकलीफ, सीने में दर्द मुख्य लक्षण हैं।
डाक्टरांे के अनुसार, समय पर ध्यान न दिया जाए तो यह, नाक, आंख और कभी-कभी दिमाग में फैल कर खतरनाक हो सकता है। दांत, जबड़े व फेफड़ों को भी यह संक्रमित करता है। सबसे पहले यह संक्रमण, दांतों को ढीला करता है। आंखों मंे फैला संक्रमण, अन्य जगह फैलने से रोकने के लिए, आंख निकालना जरूरी हो जाता है। कोरोना से पीड़ित या ठीक हो चुके लोग आसानी से इसकी चपेट मे आ जाते हैं।
एम्स दिल्ली के डाक्टर रणदीप गुलेरिया के मुताबिक, मुह के अंदर का रंग बदलना। चेहरे के किसी भी हिस्से मे सनसनी कम होना, इस बात का संकेत हो सकता है कि संक्रमण फैल रहा है। देश के अन्य अनेको मेडिकल संस्थानों के डाक्टरों के कथनानुसार, यह फंगस हर जगह होती है। मिट्टी, पौधों, सड़ने वाले फलों और सब्जियों के साथ-साथ हवा में, यहां तक कि स्वस्थ इंसान की नाक और बलगम में भी।
भारत सरकार के स्वास्थ्य सेवा निर्देशक डा. सुनील कुमार के अनुसार, फंगस के पनपने का खतरा उन परिस्थितियों में ज्यादा होता है, जब वातावरण अशुद्ध होता है। पर्यावरण में नमी होती है। अशुद्ध वातावरण में कोरोना संक्रमितों का इलाज किया जाना भी ब्लैक फंगस का एक कारण हो सकता है।
ब्लैक फंगस इलाज के लिए एंटी फंगल इंजेक्शन की जरूरत होती है। डाक्टरों के कथनानुसार, इस बीमारी से निपटने के लिए ‘लिपोसोमल एन्फोटेरेसिरिन बी’ नामक इंजेक्शन एक मात्र दवा है। जिसकी एक खुराक की बाजार कीमत तीन हजार पांच सौ रुपये है। यह इंजेक्शन आठ हफ्तों तक, रोजाना मरीज को लगाना पड़ता है। भारत में इस इंजेक्शन की बड़ी किल्लत आंकी जा रही है।
जानकारों के मुताबिक प्राइवेट अस्पतालों में ब्लैक फंगस के मरीज ज्यादा व सरकारी अस्पतालों में ऐसे मरीज कम देखे गए हैं। उक्त बीमारी के चिकित्सकों और प्रशिक्षित कर्मचारियों का अभाव देखा जा रहा है। ईएनटी सर्जनों के अभाव में आपरेशन कैसे निपटाए जा रहे होंगे, सोचा जा सकता है। फिलहाल देश मे ब्लैक फंगस और अन्य प्रकार के फंगसांे के इलाज के लिए कालाजार के इलाज का इस्तेमाल किया जा रहा है। बीमारी का मुक्कमल इलाज ठीक से शुरू नहीं हो पाया है। देश मे बढ़ते ब्लैक फंगस के मरीजो की मॉनिटरिंग की कोई व्यवस्था अभी नहीं देखी जा रही है।
चुनौती बनते जा रहे ब्लैक फंगस की बीमारी के मध्य, देश को एक सुकून देने वाली सूचना हैदराबाद प्रोद्योगिकी संस्थान के शोधकर्ताओं से आई है। उक्त संस्थान के शोधकर्ताओ द्वारा ब्लैक फंगस के इलाज के लिए एक ओरल साल्युशन तैयार किया गया है। संस्थान के शोधकर्ता उक्त तकनीक को ट्रांसफर करने को तैयार हैं। 60 मिलीग्राम की यह दवा मरीजों के लिए अनुकूल है। उक्त दवा शरीर में धीरे-धीरे नेफ्रोटाक्सिसिटी को कम करने का काम करेगी। दवा की कीमत मात्र दो सौ रुपये है।

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