वास्तविक मनुष्य बनने के लिए मानवीय गुणों को अपनाना आवश्यक: सतगुरु माता सुदीक्षा महाराज

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विकास अग्रवाल
काशीपुर (महानाद) : यदि हम वास्तव में मनुष्य कहलाना चाहते हैं, तो हमें मानवीय गुणों को अपनाना होगा। इसके विपरीत यदि कोई भी भावना मन में आती है तो हमें स्वयं का मूल्यांकन करना होगा और सूक्ष्म दृष्टि से मन के तराजू में तोल कर उसे देखना होगा। ऐसा करने से एहसास होगा कि हम कहां पर गलत हैं। यह प्रेरणादाई विचार निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा महाराज ने 28 फरवरी 2021 को महाराष्ट्र के 54 वें प्रादेशिक वार्षिक निरंकारी संत समागम के समापन पर व्यक्त किए।

सतगुरु माता सुदीक्षा ने कहा, ‘यथार्थ मनुष्य बनने के लिए हमें हर किसी के साथ प्यार भरा व्यवहार, सब के प्रति सहानुभूति, उदार एवं विशाल होकर दूसरे के अवगुणों को अनदेखा करते हुए उनके गुणों को ग्रहण करना होगा। सबको सम दृष्टि से देखते हुए एवं आत्मिक भाव से युक्त होकर दूसरों के दुख को भी अपने दुख के समान मानना होगा। इसके साथ ही और भी जो मानवीय गुण है उनको भी धारण करने से जीवन सुखमय व्यतीत होगा।’

माता सुदीक्षा ने आगे कहा कि – मनुष्य स्वयं को धार्मिक कहता है और अपने ही धर्म के गुरु पीर पैगंबरों के वचनों का पालन करने का दावा भी करता है। परंतु वास्तविकता तो यह है कि आपकी श्रद्धा कहीं पर भी हो हर एक स्थान पर मानवता को ही सच्चा धन बताया गया है और ईश्वर के साथ नाता जोड़ कर अपना जीवन सार्थक बनाने की सिखलाई दी गई है। मनुष्य जीवन बड़ा ही अनमोल है और प्रभु प्राप्ति के लिए उम्र का कोई तकाजा नहीं होता। किसी भी उम्र का मनुष्य ब्रहम ज्ञानी संतो का सानिध्य पाकर क्षण मात्र में प्रभु परमात्मा की पहचान कर सकता है।

यह तीन दिवसीय संत समागम इस वर्ष वर्चुअल रूप में आयोजित किया गया। जिसका सीधा प्रसारण निरंकारी मिशन की वेबसाइट एवं संस्कार टीवी चैनल के माध्यम द्वारा समस्त भारतवर्ष तथा विदेशों में लाखों निरंकारी भक्तों के अतिरिक्त श्रद्धालु सज्जनों ने घर बैठे इस संत समागम का भरपूर आनंद प्राप्त किया।

समागम के प्रथम दिन सतगुरु माता सुदीक्षा ने अपने दिव्य वाणी में फरमाया कि ईश्वर को हम किसी भी नाम से संबोधित करें वह तो सर्वव्यापी है और हर किसी की आत्मा इस निरंकार परमात्मा का ही अंश है। स्वयं की पहचान के लिए परमात्मा की पहचान जरूरी है क्योंकि ब्रह्मा अनुभूति से ही आत्मानुभूति बहुत अच्छी लग रही है संभव है। स्थिर परमात्मा से जीवन में स्थिरता शांति और संतुष्टि जैसे दिव्य गुण आते हैं परमात्मा पूरे ब्रह्मांड का करता है इसकी अनुभूति हर कार्य को सहजता से स्वीकार करने की अनुभूति देती है। परमात्मा का आधार लेने से जीवन में उथल-पुथल संतुष्टि में परिवर्तित हो जाती है।

सतगुरु माता ने आगे कहा कि अपने दैनिक जीवन में हर परिस्थिति का आकलन करने के लिए एवं उचित ढंग से शरीर का संचालन करने के लिए ज्ञानेंद्रियों का उपयोग करना है और इन इंद्रियों के अधीन नहीं रहना है। इसी पर हमारे मन का कर्म निर्भर करता है। यदि इंद्रियां हमारे नियंत्रण में है तब हम उनका उचित सदुपयोग कर पाते हैं इसलिए हमें इंद्रियों में उलझना नहीं है अपितु उन्हें अपने नियंत्रण में रखना है।

सेवा दल रैली
समागम के दूसरे दिन का शुभारंभ सेवादल रैली द्वारा किया गया, जिसमें महाराष्ट्र के भिन्न-भिन्न प्रांतों से आए सेवादल के भाई बहनों ने भाग लिया। इस रैली में शारीरिक व्यायाम के अतिरिक्त खेलकूद तथा मलखंब जैसे साहसी करतब दिखाए गए। साथ ही साथ मिशन की सिखलाई पर आधारित लघु नाटिका प्रस्तुत की गई। सेवादल रैली में अपना आशीर्वाद प्रदान करते हुए सदगुरु माता ने कहा कि -सारी मानवता को अपना परिवार मानते हुए, अहंकार को त्याग कर, समय की जरूरत के अनुसार,मर्यादा एवं अनुशासन में रहकर मिशन द्वारा वर्षों से सेवा का योगदान दिया जा रहा है। सेवा करते हुए हर किसी हर किसी को प्रभु का अंश मानकर उसकी सेवा करनी चाहिए क्योंकि मानव सेवा परमात्मा की ही सेवा है। जो मिशन की अहम सिखलाई है- ‘नर सेवा नारायण पूजा’।

दूसरे दिन शाम के सत्संग समारोह को संबोधित करते हुए सतगुरु माता ने कहा कि जीवन में स्थिरता लाने के लिए चेतनता एवं विवेक की आवश्यकता होती है और इसके लिए यह जरूरी है कि हम परमात्मा को अपने हृदय में स्थान दें। तब मन स्वतः ही निर्मल हो जाता है। किसी भी प्रकार के नकारात्मक भावों का स्थान नहीं रहता जब परमात्मा हृदय के रोम रोम में बसा हो।

उन्होंने कहा कि पुरातन संतो ने भी यही कहा है कि इस ईश्वर को खुली आंखों से देखा जा सकता है। परमात्मा के दर्शन से हमें स्वयं की भी पहचान हो जाती है कि हम शरीर ना होकर आत्मा रूप में है। युगों-युगों से संतो-भक्तों ने यही कहा है कि परमात्मा से नाता जोड़ कर भक्ति के पद पर चलने से ही जीवन का कल्याण हो सकता है और हमारी आत्मा बंधन मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त कर सकती है।

कवि दरबार
समागम के तीसरे दिन का मुख्य आकर्षण एक बहुभाषी कवि दरबार रहा जिसका शीर्षक स्थिर से नाता जोड़ कर मन का जीवन को हम सहज बनाए था।
इस विषय पर आधारित कई कवियों ने अपनी कविताएं मराठी, हिंदी, सिंधी, गुजराती, पंजाबी एवं भोजपुरी आदि भाषाओं के माध्यम से प्रस्तुत की।

समागम के तीनों दिन महाराष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों से तथा आसपास के राज्यों एवं देश विदेशों से भी संतों ने सम्मिलित होकर अपने भावों को अभिव्यक्त किया इसके अतिरिक्त संपूर्ण अवतार वाणी एवं संपूर्ण हरदेव वाणी के पावन शब्दों के कीर्तन से तथा पुरातन संतों की रब्बी वाणियों एवं मिशन के गीतकारों की प्रेरणादाई भक्ति पूर्ण रचनाओं की प्रस्तुतियों द्वारा मिशन की विचारधारा पर आधारित सारगर्भित संदेश दिया गया।

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