उन्नत ऑन-साईट अपशिष्ट जल प्रबंधन प्रणाली पर आईआईटी रुड़की तथा देकी एक्सिस इंडिया द्वारा आयोजित कार्यशाला सम्पन्न

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सीएम पपनैं
नई दिल्ली (महानाद) : आईआईटी रुड़की (उत्तराखण्ड) तथा देकी एक्सिस इंडिया द्वारा, 5 अगस्त, इंडिया हैबिटेट सेंटर, गुलमोहर सभागार में, एनएमसीजी और ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड के सहयोग से, उन्नत ऑन-साईट अपशिष्ट जल प्रबंधन प्रणाली पर भारत व जापान के विशेषज्ञों की उपस्थित मेें एक महत्वपूर्ण कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला आयोजन के इस अवसर पर जी अशोक कुमार (आईएएस) डीजी एनएमसीजी, यूकी याशहोदा (एमओईजे) जापानी दूतावास दिल्ली, प्रो. एए काजमी, आईआईटी रुड़की, रियो वाजा प्रबंध निर्देशक देकी इंडिया, कमल तिवारी निर्देशक एवं सीईओ देकी एक्सिस इंडिया, डॉ. संजय पंत, एडीजी, ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड और केसी पांडे प्रमुख सलाहकार देकी एक्सिस इंडिया, मंचासीनो द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर आयोजित कार्यशाला का श्रीगणेश किया गया।

देकी इंडिया के प्रमुख सलाहकार केसी पांडे द्वारा भारत के शीर्ष संस्थान आईआईटी रुड़की व देकी एक्सिस इंडिया जो कि सौ प्रतिशत देकी एक्सिस जापान व उसके वैश्विक फलक पर ख्यातिरत लीडरों का सु-विख्यात महकमा है की ओर से आयोजित उन्नत ऑन-साईट अपशिष्ट जल प्रबंधन प्रणाली (जोहकासू) कार्यशाला मे नेशनल मिशन आफ क्लीन गंगा डायरेक्टर जनरल जी अशोक कुमार आईएएस, यूकी याशहोदा जापान दूतावास दिल्ली, देकी एक्सिस एमडी रिओ वाजा के साथ-साथ अन्य सभी विषय विशेषज्ञों, पैनल वार्ताकारों, शोध छात्रों, सम्बंधित विषय से जुड़े कम्पनी पदाधिकारियों, पत्रकारों, सोशल मीडिया, जूम, फेसबुक व यूट्यूब से जुडे सभी प्रबुद्धजनों का स्वागत, अभिनंदन कर, व्यक्त किया गया, वैश्विक फलक पर पानी की समस्या से सभी जूझ रहे हैं। पानी पर ही अगला विश्व संग्राम सुनिश्चित लग रहा है। भारत में पानी की जटिलता कुछ ज्यादा ही है। जमीनी पानी के स्तर पर कमी दिख रही है। वर्तमान में भारत की जनसंख्या आंकड़ा विश्व का 18 प्रतिशत व जानवरों का 22 प्रतिशत है। जबकि भारत के पास वैश्विक फलक का मात्र चार प्रतिशत पानी सुलभ है। भारत जमीनी पानी पर 65 प्रतिशत निर्भर है। इंडस्ट्रीयां, खेती-किसानी सब जमीनी पानी पर निर्भर है, जो बड़ी चुनौती है। आंकड़ों के मुताबिक भारत वैश्विक जमीनी पानी का पच्चीस प्रतिशत पानी काम में ला रहा है, जो चीन और अमेरिका से कहीं ज्यादा है। ग्रामीण क्षेत्रों में सीवर लाइन मात्र 30 प्रतिशत है, जिनमें मात्र पचास फीसद उपयोग मे लाए जा रहे हैं। 60 फीसद सीवरेज सिस्टम का ग्रामीण क्षेत्रों में कोई रख रखाव नहीं है। यह सब बड़ी चुनौतियां बनी हुई हैं।

केसी पांडे द्वारा व्यक्त किया गया, नीति आयोग रिपोर्ट के मुताबिक, देश का 60 करोड़ जन पानी की समस्या से जूझ रहा है। दो लाख लोग प्रतिवर्ष पानी की समस्या के कारण जान गवां रहे हैं। आईआईटी चेन्नई की रिपोर्ट जो हाउसिंग और अर्बन मंत्रालय भारत सरकार को सुझाव स्वरूप जमा की गई है, के मुताबिक, अपशिष्ट जल के शुद्धिकरण योजना में 10 फीसद अतिरिक्त वित्त खर्च की जरूरत है, जिसके फलस्वरुप 80 फीसद लोगों को आम बीमारियों से बचाया जा सकेगा।

व्यक्त किया गया पर्यावरण को हृास की कगार पर जाने से रोकने के लिए अपशिष्ट जल को जमीन के अंदर प्रवेश से रोकना होगा। योजना बनानी होगी। उन्नत ऑन-साईट अपशिष्ट जल प्रबंधन मिशन के द्वारा यह कार्य किया जा सकता है, जो विधि रिसाईकिल व रियूज की जापान में चलायमान है। जन-जन तक इस मिशन को पहुंचाने की जरूरत है। केसी पांडे द्वारा व्यक्त किया गया, उम्मीद करता हूं विशेषज्ञ, भारत की इस नितांत जल समस्या के निदान पर ध्यान आकर्षित कर समस्या समाधान हेतु कदम बढ़ायेंगे। जयहिंद के उच्चारण के साथ ही स्वागत संबोधन समाप्त किया गया।

डीजी एनएमसीजी, जी अशोक कुमार (आईएएस) द्वारा व्यक्त किया गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कई बार, जल समस्या से अवगत कराया गया है, चेताया गया है। पूर्व की जल नीतियों पर विचार विमर्श किया गया है। व्यक्त किया गया, ‘जोहकासु’ नई खोज है। पानी की वर्तमान में हर तरफ गम्भीर समस्या है। अपशिष्ट जल से गन्दगी व बीमारियां बड़े स्तर पर फैलने का डर सदा बना रहा है। 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा स्वच्छ भारत अभियान की शुरूआत की गई थी। व्यक्त किया गया, स्वच्छता महत्वपूर्ण विषय है। पेड़ लगाने का अभियान चले। तभी पर्यावरण स्वच्छ रह पायेगा।

नगरों व महानगरों मे ड्रेन की समस्या। पानी को कैसे स्वच्छ बनाया जा सकता है। दिल्ली एनसीआर मे कुछ हाउसिंग सोसाईटी में स्वच्छ जल हेतु बनी योजनाओं। सीवरेज समस्या। शहरों में सीवरेज सिस्टम कैसा हो, कैसा बनाया जाए, उक्त तथ्यों पर, जी अशोक कुमार द्वारा व्यक्त किया गया, इन सब पर कार्य करना होगा। पानी को कैसे रिसाइकिल किया जाए यह अति महत्वपूर्ण है। पानी की समस्या पर जो वाटर संगठन व समितियां बनी हैं उनके महत्वपूर्ण योगदान के बावत अवगत कराया गया। व्यक्त किया गया, अपशिष्ट पानी का कैसे सदुपयोग किया जाए, इस पर योजना बनानी होगी। ग्रामीण क्षेत्रों में यह योजना और कार्य कैसे किया जाए, चुनौती है। सोच समझ कर योजना बनानी होगी। जापान में जो योजनाऐं चल रही हैं, प्रेरणा जनक हैं। भारत में यह कैसे सम्भव होगा? रुड़की के विशेषज्ञ बतायेंगे। व्यक्त किया गया, कार्यशाला बहुत महत्वपूर्ण चर्चा के लिए आयोजित की गई है। स्वागतयोग्य है। जापानी प्रतिनिधि मौजूद है, उनका कार्यशाला मे आने पर, जी अशोक कुमार द्वारा धन्यवाद अदा करने के साथ ही, संबोधन समाप्त किया गया।

यूकी याशहोदा (एमओईजे) जापानी दूतावास दिल्ली द्वारा व्यक्त किया गया, भारत सरकार के सहयोग से, जापान इस कार्य को कर रहा है। घरों से निकलने वाले अपशिष्ट जल का कैसे सदुपयोग किया जाए, जापान ने इस समस्या पर, 1983 में सिस्टम बना कर सफलता प्राप्त कर ली थी। जापान ने अंतरराष्ट्रीय फलक पर अपशिष्ट जल पर कार्यशालाऐं आयोजित की हैं। वाटर ट्रीटमेंट पर ट्रेनिंग प्रोग्राम आयोजित किये हैं। भारत के साथ हमारा सहयोग बना रहेगा।

प्रो. एए काजमी, प्रमुख सिविल इंजीनिएरिंग विभाग, आईआईटी रुड़की द्वारा व्यक्त किया गया, 2003 से आईआईटी रुड़की इस महत्वपूर्ण विषय पर वर्कशाप आयोजित कर रहा है। ट्रेनिंग दे रहा है। 2013 से तकनीक में और सुधार किया गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में 2015 से काम शुरू किया है, यह सोच कर कि कैसे एनजीटी के मानकों के मुताबिक, इस सिस्टम को विकसित किया जा सकता है। अपशिष्ट जल मे मिश्रित हानिकारक गैसों को नियंत्रित कर पानी को शुद्ध किया जा सकता है। अवगत कराया गया, इस सिस्टम का परीक्षण 2021-22 में किया है। उक्त सिस्टम को स्क्रीन पर चित्रों व आंकड़ो के माध्यम से स्पष्ट कर पुष्टि की गई।

प्रो. एए काजमी द्वारा अवगत कराया गया, आईआईटी रुड़की द्वारा जो सिस्टम तैयार किया गया है, शुद्ध पानी प्राप्त किया जा सकता है। इस सिस्टम को अपनाया जा सकता है। अन्य कई प्रकार की टैबलेटों से पानी शुद्ध करने व उसकी क्वालिटी की जानकारी से भी अवगत कराया गया। व्यक्त किया गया, यह सफलता लम्बे समय तक कार्य व परीक्षण कर, इसकी तैयारियों पर बदलाव किया गया है। विगत बारह वर्षों मे बड़े स्तर पर सीवरेज सिस्टम ट्रीटमेंट प्लांट पर किए गए कार्याे तथा अध्यन व प्रेक्टिकल कार्याे पर धरातल पर कार्य कर, शुद्धता मे सुधार के बावत अवगत कराया गया। जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड व शिमला में उक्त सिस्टम पर अभी तक किए कार्याे के बावत भी अवगत कराया गया। सभागार में बैठे शोधार्थियों व अन्य प्रबुद्ध जनों द्वारा वक्ता से कुछ सम्बंधित तथ्यों पर स्पष्टीकरण भी चाहे गए, जिसे वक्ता द्वारा स्पष्ट किया गया।

डॉ. संजय पंत, एडीजी, ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड द्वारा व्यक्त किया गया, जो नई तकनीक आ रही है, वे भारतीय मानक के मुताबिक कितनी सही है? अपशिष्ट जल रिफाइंड का क्या सिस्टम है? क्या रिजल्ट है? ये सब मानक हैं। विभिन्न माध्यमों पर विभिन्न मानक हैं। ये मानक प्रकाशित भी हैं। बहुत से प्लान है व स्तर हैं। बिल्डिंगों व घरों में इनका मानक हो, जरूरी है। यह स्वच्छता व स्वास्थ से जुड़ा हुआ है। व्यक्त किया गया, इसका स्तर नापने के लिए पुराने के साथ-साथ नई तकनीक भी है। इसका सर्टिफिकेशन भी किया जाता है। स्तर का होना बहुत जरूरी है।

देकी इंडिया निर्देशक रियो वाजा द्वारा व्यक्त किया गया, स्वच्छ घरों मे ‘जोहकासू’ का योगदान है। स्क्रीन पर चित्रों व आंकड़ो के द्वारा जानकारी दी गई, जापान 1960-70 तक बहुत प्रदूषित था। प्रदूषण से बीमारियां फैली। इंडस्ट्रियल अपशिष्ट जल प्रबंधन के कई चरणों में कार्य कर, इस सिस्टम को आगे बढ़ाया, नदियों व समुद्र को साफ किया। 1970 में जो सुमिदा नदी प्रदूषित होती थी, आज वह साफ नजर आती है। पानी की शुद्धता के मानकों के मुताबिक पानी बाग-बगीचों व शौचालय व फ्लस में काम मे लाया जाता है। कैसे अपशिष्ट जल को शुद्ध किया जाता है। कैसे इस सिस्टम को योजना के तहत शहरों व ग्रामीण क्षेत्रों में लागू कर, अपशिष्ट जल को एक स्थान पर इकठ्ठा कर, उसे शुद्ध कर, पानी की समस्या से पार पाया जा सकता है।

रियो वाजा द्वारा व्यक्त किया गया, सहयोग मिला तो, भारत में भविष्य की योजनाऐं जम्मू-कश्मीर, गुजरात, हरियाणा में तथा मैन्यूफैच्युरिंग का नॉर्थ, एनसीआर, सेंट्रल और ईस्ट तथा वेस्ट व साउथ मे लगभग पांच से दस वर्षों मे कार्य विस्तार योजना है। जापानी सरकार का भी सहयोग भारत की सरकार को रहेगा। व्यक्त किया गया, अर्थव्यवस्था व पर्यावरण जरूरी है। भारत सरकार को हम सहयोग करेंगे। अन्य कई और देशों मे भी यह कार्य, शोध कार्याे के साथ चल रहे हैं।

पैनल चर्चा मे व्यक्त किया गया, उत्तराखंड के जंगलो मे बदलाव से पर्यावरण मे बदलाव हो रहा है। वित्त जारी किया जाए, सिस्टम को बढावा दिया जाए। उत्तराखण्ड का देश के पर्यावरण को बचाने में बहुत बड़ा योगदान है। पानी और पर्यावरण जरूरी है।

केसी पांडे द्वारा कार्यशाला मे विशेषज्ञों व वक्ताओं द्वारा व्यक्त महत्वपूर्ण तथ्यों के बावत अवगत कराया गया। व्यक्त किया गया, जो स्थित, 1970 में जापान की थी वह स्थिति, भारत की 2022 में है। जापान पर्यावरण इत्यादि मे भारत से आगे है। रिसाइकल व रियूज जापान के लोगों को आता है, हमारे देश को भी जापान से प्रेरणा लेकर, इस राह चलना चाहिए। आयोजित ज्ञानवर्धक कार्यशाला का मंच संचालन अंकिता मंडल व कमल तिवारी द्वारा बखूबी प्रभावशाली अंदाज में किया गया। सीमामूरा हिकारी द्वारा कार्यशाला समापन की घोषणा की गई।