यतीश शर्मा
पंचकूला (महानाद) : हम जीवन में अपने धर्म, देश, परिवार और अपने मान-सम्मान के लिये बहुत कुछ करते हैं। जिसकी परिभाषा हमें किसी को भी समझाने की जरूरत नहीं। हमारा कार्य ही हमारी मानवता का परिचय देता है। यह बात अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार संगठन वेस्ट बंगाल के महासचिव सौम्य शंकर बोस ने एक मुलाकात में कही ।
उन्होंने कहा कि मानव अपनी पहचान बनाने के लिये बहुत कुछ करता है। जिसको हम अल्फाजों में बयां नहीं कर सकते। सौम्य शंकर बोस ने कहा कि उनका जन्म ऐसे परिवार में हुआ जिस परिवार ने अपना पूरा जीवन मानवता की भलाई ओर सुख दुख में ऊंच नीच की दीवार को खत्म कर मानवता के लिए कार्य को अपना धर्म समझ हमेशा निभाया है।
उन्होंने बतलाया कि उनके परदादा डॉ. गरिन्द्रा शंकर बोस व उनके परिवार द्वारा मिले संस्कार के कारण ही उनके मन में मानवता की सेवा करने का भाव बचपन से ही उनके मन मे बसा हुआ था और मात्र सात वर्ष की आयु से ही उन्होंने समाज सेवा के कार्य को करना आरम्भ कर दिया था। उनको स्वामी विवेकानंद जी की सोच, प्रकृति से प्यार उनके आदर्श और उनकी भावना से वो बहुत प्रेरित हुए हैं। क्योंकि प्रकृति ही हमें जीवन मे कई रंग दिखाती है। जिसमें हम अपने आप को ढाल कर उन रंगों का आनन्द महसूस कर सकते हंै ।
सौम्य शंकर बोस ने कहा कि बिना गुरु जीवन की कोई परिभाषा नहीं है। इस मानव युग में सबसे पहले हमारी माता हमारी गुरु होती है। जो हमें जन्म दे इस दुनिया मे लाकर हमें बोलना सिखाती है। फिर गुरु हमारे पिता जो हमें चलना सिखाते हैं और दुनिया में अपने पारिवारिक संस्कारों से हमें अच्छे बुरे का ज्ञान करवाते हैं। अगले गुरु हमारे शिक्षक जो हमें शिक्षित कर हमारे भविष्य को उज्ज्वल बनाते हैं। फिर गुरु वो जो हमारी शिक्षा को उत्तीर्ण होने के बाद हमारी शिक्षा व संस्कारों के आधार पर हमंे जीविका कमाने के लिये हमें सही कार्य का ज्ञान दे इस संसार में हमें मान-सम्मान, धन, प्रतिष्ठा आदि से उज्ज्वल जीवन दिलवाते हैं। मतलब कि एक मानव जीवन को सफल बनाने के लिये हमारे जीवन में कितने गुरु का ज्ञान प्राप्त कर हम सम्पूर्ण बनते हैं। इसलिए जीवन में गुरु की महत्ता को समझ हमें हमेशा गुरु का मान सम्मान करना चाहिये और जहाँ से भी कोई अच्छा ज्ञान हमें मिलता हो और वो किसी की भलाई के लिए कार्यरत हो तो हमें वो ज्ञान लेने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए क्योंकि ज्ञान लेने की न तो कोई सीमा है ना कोई उम्र।
उन्होंने कहा कि उन्होंने बचपन से ही प्रकृति, पशु पक्षियांे व मानवता के आधार पर समाज की भलाई के लिये कई कार्य किये हैं। कार्यों के करते हुए 10 वर्ष पूर्व उनकी मुलाकात एक ऐसी महान शख्सियत नेम सिंह प्रेमी के साथ हुई जिनके कार्य और मानव प्रेम की परिभाषा का ज्ञान ले वे उनके साथ उनके द्वारा संचालित अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार संगठन से जुड़ने व उनके द्वारा दिये गए ज्ञान को ग्रहण करने का मौका मिला। और मेरे कार्यों को देखते हुए उन्होंने मुझे वेस्ट बंगाल के महासचिव पद पर तैनात कर उन्हें समाजिक कार्य करने व मानव अधिकारों को जन-जन तक पहुंचा लोगांे को जागरूक करने के लिये मेरा होंसले को बुलन्द कर जनता का स्नेह मेरे साथ जोड़ा ।
उन्होंने कहा कि इंसान को अपने संस्कार, गुरु का सम्मान, धर्म, देश से प्यार और प्रकृति व मानवता के आधार पर मानव के लिए कार्य करते रहना चाहिये। ये ही सबसे बड़ा मानव धर्म और लोगों का प्यार है जो आपको सम्मान दिलवाता है।