भाजपा व सपा की कम सीट आने पर मौके फायदा उठा सकती हैं बसपा और कांग्रेस
गोविंद शर्मा
देवबंद (महानाद) : उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर भरतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी दोनों काफी गम्भीर नजर आर ही हैं। जबकि कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी इस संघर्ष में कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। ऐसी बनी स्थिति से ऐसा लगता है कि यह दोनों पार्टियां उत्तर प्रदेश में खोये जाते अपने वजूद को बचाने के लिए इस कहावत के भरोसे बैठी हैं, ‘बिल्ली के भाग से छीका टूटना।’
वर्ष 2022 में चुनाव सर पर आ चुके हैं और भरतीय जनता पार्टी जहां पुनः योगी आदित्यनाथ की सरकार लाने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रही है, वहीं समाजवादी पार्टी अखिलेश यादव को पुनः गद्दी पर बैठाने के लिए प्रदेश मे एडी चोटी तक का जोर लगा रही है। मगर इस चुनावी दंगल में बसपा और कांग्रेस कतई शान्त हैं। कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी सक्रिय संघर्ष में तो नजर नहीं आ रही है पर भाजपा सरकार के विरुद्ध संघर्ष का कोई मौका चूकना नहीं चाहती हैं, मगर बसपा प्रमुख मायावती की इस समय चुप्पी राजनीतिक दलों के लिए उत्सुकता का कारण तो बना ही है साथ ही बसपा के वोटरों के लिये चिन्ता का बड़ा सबब बना हुआ है।
अब प्रश्न यह होता है कि उत्तर प्रदेश में दलितों की बड़ी मसीहा तथा दो बार मुख्यमंत्री रहने वाली तेज तर्रार महिला पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के दिमाग में ऐसा क्या चल रहा है, जो वह शान्त रहकर प्रदेश विधानसभा चुनाव लडेंगी। राजनीति के विशेषज्ञः मानते हैं कि कांग्रेस प्रदेश में अपना जनाधार बहुत पहले ही खो चुकी है, जबसे प्रियंका गांधी को राष्ट्रीय कांग्रेस का महासचिव तथा उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया है, तब से उसकी डूबती नाव को तिनके का सहारा मात्र मिला है। इससे कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में कोई विशेष लाभ मिलने वाला नहीं है। उत्तर प्रदेश में किसान आन्दोलन के चलते ऑक्सीजन अवश्य मिली थी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनाव से कुछ माह पहले ही किसान बिल को वापस लेकर कांग्रेस की जगी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है।
अब बात बहुजन समाज पार्टी की करें तो इस समय बसपा प्रदेश में बड़ा जनाधार रखने वाली तीसरी पार्टी है। बसपा ने दलित समाज को समाज में एक शक्ति प्रदान की है और इस बात को शिक्षित दलित बखूबी जानता है और वह बसपा को कभी भी नही छोड़ सकता है। बसपा प्रमुख मायावती ने प्रदेश में अपने वोट बैंक के साथ-साथ प्रदेश में बड़ा ब्राह्मण वोट बैंक को साधकर सरकार चलाई है। अब प्रश्न यह पैदा होता है कि भाजपा के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और सपा के अखिलेश यादव की इस जंग में कांग्रेस व बसपा का भी बड़ा रोल है। चुनाव के बाद आने वाले परिणामों में यदि भाजपा को सरकार बनाने में कहीं कोई दिक्कत आती है, तो उसकी खेवनहार बसपा बन जायेगी, क्योंकि बसपा कभी नहीं चाहेगी कि प्रदेश में सपा की सरकार बने। इसी प्रकार यदि समाजवादी पार्टी की सरकार बनने में कुछ विधायकों की कमी रहती है तो उसको कांग्रेस अवश्य पूरा करेगी।
ऐसी स्थिति में जहां दो ऐसी पार्टी चुनाव मैदान में हो, जिनका उद्देश्य एक दूसरे को किसी भी हाल में हराना तथा गद्दी को पाना हो, वह अपने प्रतिद्वंदी को गद्दी पर बैठने से रोकने के लिए कहीं तक भी जा सकते हैं। कांग्रेस भाजपा के योगी को रोकने लिए सपा को समर्थन दे सकती है। दूसरी ओर यही स्थिति भाजपा और बसपा के बीच बने सकती है। ऐसी स्थिति में बसपा प्रमुख मायावती सशर्त भाजपा को समर्थन देगी। पहले देश भाजपा और बसपा की सरकार देख चुका है। कांग्रेस की महामंत्री प्रियंका गांधी और बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती के सरकार बनाने के दावे के पीछे यही सच्चाई है। चुनाव आते-आते समीकरण कितने किसके हित में आते हैं, यह तो आने वाला समय बतायेगा।