हरक सिंह रावत : न माया मिली न राम, खुद लड़े नहीं, बहू जीत नहीं पाई

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लैन्सडाउन (महानाद) : भाजपा से कांग्रेस में गये हरक सिंह रावत के लिए यह कहावत सिद्ध हो गई ‘न माया मिली न राम’।

जी हां चुनावों से पहले कांग्रेस की जीत देखते हुए हरक सिंह रावत भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हो गये। भाजपा में वे 2 टिकट चाह रहे थे। लेकिन भाजपा में एक परिवार से 1 टिकट के नियम के कारण उन्हें मना कर दिया गया। इससे पहले कि वे कांग्रेस का दामन थामते भाजपा ने उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया। भाजपा से निष्कासित होते ही उनकी सौदेबाजी की क्षमता समाप्त हो गई। वे कांग्रेस में तो शामिल हुए लेकिन कांग्रेस ने उनकी बहू अनुकृति को तो टिकट दे दिया लेकिन उन्हें नहीं दिया।

वहीं, स्थानीय कांग्रेसियों ने अनुकृति को टिकट देने के विरोध में कोटद्वार से लेकर राजधानी देहरादून में स्थित कांग्रेस प्रदेश कार्यालय तक में प्रदर्शन किया था। वो स्थानीय नेता को ही टिकट देने की मांग कर रहे थे। जिसका परिणाम यह हुआ कि अनुकृति भाजपा के दलीप सिंह रावत से 9,868 वोटों से हार गई। वहीं कांग्रेस के सत्ता में आने की आस लगाये हरक सिंह रावत का यह सपना भी टूट गया। और एक बार फिर से कांग्रेस की उत्तराखंड में करारी हार हुई।

अब ऐसे में राज्य गठन के बाद से सत्ता की धुरी बने रहे हरक सिंह रावत के राजनीतिक करियर पर भी प्रश्न चिन्ह लग गया है। और उन पर यह कहावत सिद्ध हो रही है कि – न माया मिली न राम

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