विकास अग्रवाल
काशीपुर (महानाद): उत्तराखंड में चल रही समान नागरिक संहिता की कवायद के बीच आज विशेषज्ञ कमेटी के सदस्य काशीपुर पहुंचे और लोगों से उनके विचार जाने।
आपको बता दें कि उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू करने की तैयारी चल रही है। इसके लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित की गई है। जो राज्यभर में घूम-घूमकर इसके बारे में नागरिकों से उनकी राय ले रही है। इसी क्रम में आज कमेटी के सदस्य पूर्व आईएएस शत्रुघ्न सिंह, दून विश्वविद्यालय की कुलपति सुरेखा डंगवाल तथा सामाजिक कार्यकर्ता मनु गौड़ ने ब्लॉक परिसर में एक बैठक आयोजित कर लोगों से समान नागरिक संहिता को लेकर उनके विचार जाने।
समिति के सदस्य शत्रुघन सिंह, डा.सुरेखा डंगवाल, डा.मनु गौड़ ने बताया कि समिति जनपदों का भ्रमण कर लोगों को समान नागरिक संहिता की जानकारी दे रही है और सभी के सुझाव प्राप्त कर रही है। समिति पूरे राज्य में भ्रमण कर आम लोगों से परिचर्चा करते हुए विवाह एवं तलाक, संरक्षण, विरासतन एवं उत्तराधिकार, गोद लेना, संपत्ति का अधिकार आदि विषयों पर सभी के विचार और सुझाव एकत्रित कर रही है, ताकि सभी की अनुकूलता के हिसाब से समान कानून तैयार हो और आने वाली पीढ़ी को इसका लाभ मिले।
बैठक में लोगों ने संपत्ति बंटवारे, पुरुष द्वारा शादी करने, दूसरी बीबी को अवैध मानते हुए पति की पेंशन से कुछ न दिये जाने, पति द्वारा दूसरी शादी कर पहली पत्नी को बेसहारा छोड़ देने। बच्चों द्वारा बुढ़ापे में अपने माता-पिता की देखभाल न करने जैसे अनेक मुद्दे कमेटी के सदस्यों के सामने रखे। वहीं बाल कल्याण विकास अधिकारी ने अविवाहित महिला हेतु भी उचित प्रावधान करने की मांग की।
उधर, महानाद सम्पादक विकास अग्रवाल ने कहा कि असमानता के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार पैसा है। यदि प्रोपर्टी पति की है तो उस पर केवल पत्नी का हक हो जाता है। उसके मां बाप को उसमें कुछ नहीं मिलता। यदि प्रोपर्टी मां-बाप की है तो वे बेटे को तो हिस्सा देते हैं लेकिन बेटे की मृत्यु हो जाने पर बहू को हिस्सा नहीं देते। कहीं बेटी को हिस्सा नहीं मिलता तो कही बहन को। जिस कारण एक ही परिवार के सदस्यों में से कुछ अमीरी का जीवन जीते हैं तो कुछ विपन्नता का।
अग्रवाल ने कहा कि मां-बाप अपने बेटे-बेटियों को 25-30 साल तक पालते हैं। लेकिन बेटे-बेटियां बुढ़ापे में अपने मां-बाप को बेसहारा छोड़ देते हैं। यदि बेटे-बेटियों को पालना मां-बाप का कर्तव्य है तो बेटे-बेटियों का कर्तव्य होना चाहिए कि वे बुढ़ापे में अपने मां-बाप की देखभाल करें।
विकास अग्रवाल ने कहा कि यदि संपत्ति का उचित बंटवारा हो जाये ता समानता अपने आप आ जायेगी।
वहीं, एडवोकेट नदीम उद्दीन ने प्रत्येक शादी को रजिस्टर्ड करने, तलाक को रजिस्टर्ड करने, गोद लेने को रजिस्टर्ड करने, पति को विशेष परिस्थितियों में दूसरी शादी की इजाजत देने की मांग की। उनका कहना था कि जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण की तरह शादी, तलाक को रजिस्टर्ड कर उसका डाटा वेबसाइट पर डाला जाये जिससे कोई भी व्यक्ति उक्त व्यक्ति का नाम और आधार नंबर डालकर यह चेक कर सके उस व्यक्ति का वास्तविक मेरिटल स्टेटस क्या है जिससे वह किसी अन्य को धोखा देकर दूसरी शादी न कर सके। वहीं उन्होंने दहेज लेने/देने वाली शादियों को शून्य (अमान्य) करने की भी मांग की।
हालांकि नदीम उद्दीन ने जिन परिस्थितियों में पुरुष को दूसरी शादी की इजाजत देने की मांग की, वहीं उन्हीं परिस्थितियों में यह इजाजत महिलाओं को न देने की वकालत की है।
बैठक में मुख्य रूप से अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष मुकेश कुमार, एडीएम जयभारत सिंह, एसडीएम अभय प्रताप सिंह, जिला समाज कल्याण अधिकारी अमन अनिरूद्ध, खंड शिक्षा अधिकारी रणजीत सिंह नेगी, गुरविंदर सिंह चंडोक, उदयराज हिंदू इंटर कालेज के प्रधानाचार्य बीके गुप्ता, शैलेन्द्र मिश्रा एडवोकेट, राजेश कुमार, विजेन्द्र कुमार, दीपक शर्मा, डॉ. सुरुचि सक्सैना, डॉ. शशिबाला रावत, वीपी सिंह, डॉ. कृष्णा राणा, अफसर अली, राशिद हुसैन, विवेक वर्मा, जफर मुन्ना, राशिद फारुखी, डॉ. एमए राहुल, मुमताज मंसूरी, निधि, अनीता, सविता, अंजू, राखी, मीनाक्षी आदि मौजूद थे।
समिति सदस्य मनु गौड़ ने बताया कि कोई भी व्यक्ति वेबपोटर्ल- ucc.uk.gov.in ईमेल- official-ucc@uk.gov.in और डाक पता- ‘कार्यालय विशेषज्ञ समिति, समान नागरिक संहिता, राज्य अतिथि गृह, निकट राजभवन, देहरादून-248001’ पर भी अपने सुझाव दे सकते है।