डिप्रेशन या अवसाद का कारण

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आचार्य प्रशांत
महानाद डेस्क:
“आज से पाँच दशक पहले जितनी एंग्जायटी एक मानसिक रोगी को होती थी, उतनी एंग्जायटी आज आम है दृ स्कूलों में, कॉलेजों में। और ये बात अनुमान के आधार पर नहीं है, ये आँकड़े हैं, ये नम्बर्स हैं, ये रिसर्च (अनुसंधान) है, ये डेटा (तथ्य) हैं। हम सब किसी-न-किसी तरीके से परेशान हैं, निराश हैं। कोई चिंता है, दिमाग पर बोझ है। ये बात कहने की नहीं है, ऐसा हो रहा है। परीक्षण करके अगर नापा जाए, तो हम सबका यही हाल निकलेगा। यहाँ भी यही हाल निकलेगा। कोई चीज़ है जो परेशान करे ही जा रही है,
पहली चीज़ ये है कि वैज्ञानिक क्रांति के बाद जितने विषय हो सकते हैं पाने के लिए, उनमें बेतरतीब वृद्धि आ गई है। आज से पचास साल पहले, जितनी चीजें हो सकती थीं, कि जिन्हें पाया जा सकता था, आज उससे सौ-गुना चीजें मौजूद हैं। न सिर्फ वो मौजूद हैं, वो तुम्हें हर समय अपने आप को प्रदर्शित कर रही हैं। तो उपभोग करने की जितनी वस्तुएँ उपलब्ध हैं, उनमें बड़ी तेज़ी से वृद्धि हुई है।
एक आदमी जिन चीज़ों को हासिल कर सकता था, वो पचास साल पहले की अपेक्षा आज सौ गुनी हैं। और न सिर्फ वो सौ गुनी हैं, वो तुम्हारे पास हर तरीके के माध्यम से पहुँच रही हैं, प्रदर्शित हो रही हैं, विज्ञापित हो रही हैं। इसका क्या मतलब है?
अब एक इंसान है, वो इस कुर्सी पर बैठा हुआ है। उसको बार-बार दिख रहा है कि दुनिया में हासिल करने के लिए, उपभोग करने के लिए, भोगने के लिए इतनी चीजें हैं। और वो चीजें बार-बार, बार-बार उसके दिमाग पर लाई जा रही हैं, एक तरह से उसके दिमाग पर हमला किया जा रहा है। चीजें बढ़ती जाएँगी, पर उनके भोग की तुम्हारी क्षमता तो नहीं बढ़ रही। या बढ़ रही है? न तुम्हारे पास उतना ज्यादा पैसा है, हर किसी के पास नहीं हो सकता। और न तुम्हारे पास उतना समय है। तो बढ़ क्या रहा है फिर? तुम्हारा फ्रस्ट्रेशन बढ़ रहा है, तुम्हारी निराशा बढ़ रही है, कि -‘इतनी चीजें हैं, मुझे तो मिली ही नहीं। इतना कुछ है, हर चीज के नए-नए मॉडल निकल रहे हैं। दुकानों में नए-नए आविष्कार पहुँचते जा रहे हैं। खाने, पहनने, रहने, घूमने-फिरने, हर जगह के नए-नए जरिए खुलते जा रहे हैं। और मैं चूकता जा रहा हूँ। आई एम मिसिंग आउट, आई एम मिसिंग आउट। और न सिर्फ मैं चूकता जा रहा हूँ, कोई और है जो मज़े ले रहा है।’
क्योंकि जो मजे ले रहा होता है, वो मजे लेते हुए फेसबुक पर अपनी फोटो ज़रूर डालेगा। वो ये फोटो कभी नहीं डालेगा कि मजे लेने के बाद क्या हुआ। कभी किसी को देखा है कि वो हँसने के बाद की भी फोटो फेसबुक पर डाले? पर जब हँस रहे होते हैं, तो फोटो आ जाती है फेसबुक पर। वो फोटो देखी हज़ार लोगों ने, और हज़ार लोग उस फोटो को देखकर ऐसे हो गए ‘ये भी हँस रहा है। मैं ही रह गया बस। मैं ही पीछे रह गया, पूरी दुनिया मजे कर रही है।’
किसी ने नई गाड़ी खरीदी, उसने फेसबुक पर डाल दिया। और तुम देख रहे हो अपनी पुरानी आल्टो को। और अब तुम्हारा मन कर रहा है कि ‘आग लगा दूँ इसमें अभी।’
अब भले ही वो जो गाड़ी की फोटो डली हो, भले ही वो नकली हो। कितनी दफे मैंने देखा है, जवान लोग होते हैं, जहाँ देखते हैं कि कोई इम्पोर्टेड गाड़ी सामने खड़ी है, इधर-उधर देखते हैं और जल्दी से सेल्फी ले लेते हैं। कपड़ों की दुकानों के ट्रायल-रूम में लिखा देखा है मैंने ‘सेल्फीज़ नॉट अलाउड (सेल्फी लेने की अनुमति नहीं है)’।
लड़के-लड़कियाँ हैं वहाँ, देखते हैं कोई महँगी ड्रेस जिसको वो खरीद नहीं सकते, उसका ट्रायल तो कर सकते हैं बस वह ट्रायल रूम में जाकर उसकी सेल्फी लेते हैं बाकी सभी काम फोटोशॉप कर देता है।
यही वजह है तनाव व डिप्रेशन की, जब तक अपनी जरूरतों को सीमित नहीं करेंगे तब तक तनाव व बढ़ता ही रहेगा।

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