विकास अग्रवाल
काशीपुर (महानाद) : महाराजा अग्रसेन की 5147वीं जयंती के अवसर पर वैश्य समाज द्वारा महाराजा अग्रसेन की भव्य शोभायात्रा धूमधाम से निकाली गई। जिसमें अग्रवाल समाज के साथ-साथ पहली बार वैश्य समाज के सभी वर्गो ने बड़े उत्साह से भाग लिया।
आज, बृहस्पतिवार को महाराजा अग्रसेन की भव्य शोभायात्रा किला मौहल्ले से शुरु होकर मेन बाजार होते हुए श्री रामलीला मैदान में जाकर सम्पन्न हुई। शोभायात्रा में महाराजा अग्रसेन की झांकी के अलावा शिव पार्वती, कुलदेवी महालक्ष्मी आदि झांकियां तथा करतब दिखाता अखाड़ा आकर्षण का केंद्र रहे। इस दौरान जगह-जगह शोभायात्रा का भव्य स्वागत किया गया।
शोभायात्रा में श्री अग्रवाल सभा के अध्यक्ष मनोज अग्रवाल, महामंत्री अभिषेक गोयल, शोभायात्रा संयोजक प्रियांशु बंसल, एमपी गुप्ता, सनत पैगिया एडवोकेट, योगेश जिंदल, शेष कुमार सितारा, कृष्ण कुमार अग्रवाल एडवोकेट, कपिल अग्रवाल,कृविकास अग्रवाल, विशाल अग्रवाल, पंकज अग्रवाल एडवोकेट, विपिन अग्रवाल एडवोकेट, मनोहर गुप्ता, जेपी अग्रवाल, अक्षत गोयल, विनोद कुमार ठरड, केसी बंसल, सुरेश चंद्र अग्रवाल, मनोहर गुप्ता, बीके गुप्ता, अजय अग्रवाल, सीए सचिन अग्रवाल, सत्यम अग्रवाल, गौरव अग्रवाल, दीपक मित्तल, अरविंद अग्रवाल, योगेश विश्नोई, दीपक मैंथा, विवेक जैन, कपिल अग्रवाल, संजय गुप्ता, कौशलेश गुप्ता, योगेश जैन, सुरभि अग्रवाल, सुरभि बंसल, राधिका अग्रवाल, पूजा अग्रवाल, शिप्रा अग्रवाल, कल्पना अग्रवाल, सपना अग्रवाल, शिल्पी अग्रवाल, तन्वी अग्रवाल, रीमा अग्रवाल, कोमल अग्रवाल, अंजू अग्रवाल, मधु अग्रवाल, रजनी अग्रवाल, रीतू अग्रवाल, स्नेहा अग्रवाल, साध्वी अग्रवाल, निधि अग्रवाल, अनिता अग्रवाल, प्रियंका अग्रवाल, प्राची अग्रवाल, पायल अग्रवाल, सोनाली अग्रवाल, नीता रस्तौगी आदि शामिल रहे।
महाराजा अग्रसेन का इतिहास –
महाराजा अग्रसेन एक पौराणिक कर्मयोगी लोकनायक, समाजवाद के प्रणेता, युग पुरुष, तपस्वी, राम राज्य के समर्थक एवं महादानी थे। इनका जन्म द्वापर युग के अंत व कलयुग के प्रारंभ में हुआ था। वें भगवान श्रीकृष्ण के समकालीन थे। महाराजा अग्रसेन का जन्म अश्विन शुक्ल प्रतिपदा को आज से 5147 वर्ष हुआ था, जिसे अग्रसेन जयंती के रूप में मनाया जाता है। नवरात्रि के प्रथम दिवस को अग्रसेन महाराज जयंती के रूप में मनाया जाता हैं।
धार्मिक मान्यतानुसार इनका जन्म मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की चौंतीसवीं पीढ़ी में सूर्यवशीं क्षत्रिय कुल के महाराजा वल्लभ सेन के घर में द्वापर के अन्तिमकाल और कलियुग के प्रारम्भ में आज से 5147 वर्ष पूर्व हुआ था। उन्हें उत्तर भारत में व्यापारियों के नाम पर अग्रोहा का श्रेय दिया जाता है, और यज्ञों में जानवरों को मारने से इनकार करते हुए उनकी करुणा के लिए जाने जाते है। महाराजा अग्रसेन की कर्मभूमि रही अग्रोहा में बना, अग्रोहा धाम देश के पांचवें धाम के रूप में प्रसिद्ध है।
एक नए राज्य के लिए जगह चुनने के लिए अग्रसेन ने अपनी रानी के साथ पूरे भारत में यात्रा की। अपने छोटे भाई शूरसेन को प्रतापनगर का शासन सौंप दिया। अपनी यात्रा के दौरान एक समय में, उन्हें कुछ बाघ शावक और भेड़िया शावकों को एक साथ देखे। राजा अग्रसेन और रानी माधवी के लिए, यह एक शुभ संकेत था कि क्षेत्र वीराभूमि (बहादुरी की भूमि) था और उन्होंने उस स्थान पर अपना नया राज्य पाया। ऋषि मुनियों और ज्योतिषियों की सलाह पर नये राज्य का नाम अग्रेयगण रखा गया जिसे अग्रोहा नाम से जाना जाता है। अग्रोहा हरियाणा के हिसार के पास स्थित है। जिसमें अग्रसेन और वैष्णव देवी का एक बड़ा मंदिर है।
माता लक्ष्मी की कृपा से श्री अग्रसेन महाराज के 18 पुत्र हुये। राजकुमार विभु उनमें सबसे बड़े थे। महर्षि गर्ग ने महाराजा अग्रसेन को 18 पुत्र के साथ 18 यज्ञ करने का संकल्प करवाया। माना जाता है कि यज्ञों में बैठे 18 गुरुओं के नाम पर ही अग्रवंश (अग्रवाल समाज) की स्थापना हुई। यज्ञों में पशुबलि दी जाती थी। प्रथम यज्ञ के पुरोहित स्वयं गर्ग ऋषि बने, राजकुमार विभु को दीक्षित कर उन्हें गर्ग गोत्र से मंत्रित किया। इसी प्रकार दूसरा यज्ञ गोभिल ऋषि ने करवाया और द्वितीय पुत्र को गोयल गोत्र दिया। तीसरा यज्ञ गौतम ऋषि ने गोइन गोत्र धारण करवाया, चौथे में वत्स ऋषि ने बंसल गोत्र, पाँचवे में कौशिक ़षि ने कंसल गोत्र, छठे शांडिल्य ऋषि ने सिंघल गोत्र, सातवे में मंगल ऋषि ने मंगल गोत्र, आठवें में जैमिन ने जिंदल गोत्र, नवें में तांड्य ऋषि ने तिंगल गोत्र, दसवें में और्व ऋषि ने ऐरन गोत्र, ग्यारवें में धौम्य ऋषि ने धारण गोत्र, बारहवें में मुदगल ऋषि ने मन्दल गोत्र, तेरहवें में वसिष्ठ ऋषि ने बिंदल गोत्र, चौदहवें में मैत्रेय ऋषि ने मित्तल गोत्र, पंद्रहवें कश्यप ऋषि ने कुच्छल गोत्र दिया।
इस प्रकार 17 यज्ञ पूर्ण हो चुके थे। जिस समय 18 वें यज्ञ में जीवित पशुओं की बलि दी जा रही थी, महाराज अग्रसेन को उस दृश्य को देखकर घृणा उत्पन्न हो गई। उन्होंने यज्ञ को बीच में ही रोक दिया और कहा कि भविष्य में मेरे राज्य का कोई भी व्यक्ति यज्ञ में पशुबलि नहीं देगा, न पशु को मारेगा, न माँस खाएगा और राज्य का हर व्यक्ति प्राणीमात्र की रक्षा करेगा। इस घटना से प्रभावित होकर उन्होंने क्षत्रिय धर्म को अपना लिया। अठारवें यज्ञ में नगेन्द्र ऋषि द्वारा नांगल गोत्र से अभिमंत्रित किया।
ऋषियों द्वारा प्रदत्त अठारह गोत्रों को महाराजा अग्रसेन के 18 पुत्रों के साथ महाराजा द्वारा बसायी 18 बस्तियों के निवासियों ने भी धारण कर लिया एक बस्ती के साथ प्रेम भाव बनाये रखने के लिए एक सर्वसम्मत निर्णय हुआ कि अपने पुत्र और पुत्री का विवाह अपनी बस्ती में नहीं दूसरी बस्ती में करेंगे। आगे चलकर यह व्यवस्था गोत्रों में बदल गई जो आज भी अग्रवाल समाज में प्रचलित है।
दिया ‘एक ईट और एक रुपया’ का सिद्धांत
महाराजा अग्रसेन ‘एक ईट और एक रुपया’ के सिद्धांत की घोषणा की। जिसके अनुसार नगर में आने वाले हर नए परिवार को नगर में रहनेवाले हर परिवार की ओर से एक ईट और एक रुपया दिया जाए। ईटों से वो अपने घर का निर्माण करें एवं रुपयों से व्यापार करें। इस तरह महाराजा अग्रसेन जी को समाजवाद के प्रणेता के रुप में पहचान मिली।
दरअसल यह शिक्षा महाराजा अग्रसेन को एक घटना देखने के बाद मिली थी। हुआ यूं था कि एक बार अग्रोहा में अकाल पड़ने से चारों तरफ भूखमरी, महामारी जैसे विकट संकट की स्थिति पैदा हो गई थी। वहीं इस विकट समस्या का हल निकालने के लिए जब अग्रसेन महाराज अपनी वेष-भूषा बदलकर नगर का भ्रमण कर रहे थे, तभी उन्होंने देखा कि चारों ओर त्राहि-त्राहि मची हुई है। इसी दौरान उन्होंने देखा कि एक परिवार में सिर्फ 4 लोगों का ही खाना बना था, और उस परिवार में एक मेहमान के आने पर खाने की समस्या उत्पन्न हो गई, तब परिवार के सदस्यों ने एक हल निकाला और अपनी-अपनी थालियों से थोड़ा-थोड़ा खाना निकालकर आए मेहमान के लिए पांचवी थाली परोस दी। इस तरह मेहमान की भोजन की समस्या का समाधान हो गया। इससे प्रभावित होकर अग्रवाल समाज के संस्थापक महाराजा अग्रसेन ने ‘एक ईट और एक रुपया’ के सिद्धांत की घोषणा की।