काशीपुर में चल रही है ‘बाली’ की लहर, बदलाव करने को जनता है तैयार

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विकास अग्रवाल
महानाद डेस्क : जैसे-जैसे चुनावी अभियान अपने अंजाम तक पहुंच रहा है। वैसे-वैसे काशीपुर विधानसभा की तस्वीर साफ होती दिख रही है। जहां कांग्रेस एक बार फिर चुनौती पेश करने में नाकाम दिख रही है। वहीं इस बार चीमा की 20 साल की बादशाहत खत्म होती दिख रही है।

आपको बता दें कि ‘महानाद’ संवाददाता काशीपुर विधानसभा क्षेत्र के जिस-जिस हिस्से में जा रहे हैं। वहां चुनावी समर में दीपक बाली का नाम सुनने में जरूर आ रहा है और हर क्षेत्र के लोग इस बार बदलाव की बात कर रहे हैं। पिछले 20 सालों में पहली बार भाजपा पारंपरिक का मतदाता भाजपा विधायक हरभजन सिंह चीमा द्वारा शहर का विकास न किये जाने से खिन्न नजर आ रहा है और इस बार शहर में बदलाव की बात कर रहा है।

वहीं विदित हो कि पहली बार भाजपा के वरिष्ठ नेता चुनाव संपर्क से दूर हैं। जहां भाजपा नेता राम मेहरोत्रा ने जसपुर का प्रभारी होेने के नाते काशीपुर में प्रचार से दूरी बना रखी है वहीं विधायक के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाली महापौर उषा चौधरी भी इस बार प्रचार में बिल्कुल दिखाई नहीं दे रही हैं। विधायक हरभजन सिंह चीमा के सुपुत्र त्रिलोक सिंह चीमा को टिकट मिलने के बाद वे तो निर्दल के तौर पर ताल ठोकने का मन बना चुकी थीं और उन्होंने नामांकन पत्र तक खरीद लिया था। हांलाकि भाजपा के वरिष्ठ उन्हें ऐसा करने से रोकने में कामयाब रहे। नहीं तो वे पहले भी 2 बार निर्दलीय के तौर मैदान में उतर चुकी हैं। वहीं इस बार की उनकी खामोशी साबित कर रही है कि इस बार चीमा का राह कठिन हो चली है।

वहीं, 4 बार के विधायक हरभजन सिंह चीमा राजनीतिक मैनेजमेंट के गुरु माने जाते हैं और आंकड़ों की बाजीगरी का खेल खेलकर वे जीत हासिल करते चले आये हैं। इसमें महत्वपूर्ण भूमिका काशीपुर विधानसभा का ग्रामीण क्षेत्र अपनाता रहा है। लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी, शहर के जाने माने उद्योगपति और राज्य आंदोलनकारी दीपक बाली उनका खेल बिगाड़ते नजर आ रहे हैं।

पिछले डेढ़ सालों में दीपक बाली ने काशीपुर के ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी गहरी पैठ बनाई है। वहीं किसान आंदोलन के समय जहां आम आदमी पार्टी दिल्ली में किसानों के साथ खड़ी नजर आई। अकाली दल ने केंद्र सरकार से अपना नाता तोड़ लिया। वहीं अकाली दल के कोटे से हमेशा टिकट पाने वाले विधायक हरभजन सिंह चीमा भाजपा के साथ खड़े दिखाई दिये। उस दौरान किसानों ने विधायक से इस्तीफा देने की मांग की लेकिन विधायक चीमा अकाली दल को दरकिनार कर भाजपा की रीति-नीति के साथ खड़े रहे। जिससे आम आदर्मी पार्टी प्रत्याशी दीपक बाली ग्रामीण इलाकों में अपनी गहरी पैठ बनाने में कामयाब हो गये। कोरोना काल में जहां विधायक अपने आफिस में बैठे रहे वहीं दीपक बाली लोगों की सेवा करते नजर आये। उधर ओवर ब्रिज निर्माण में हो रही देरी के कारण वहां के व्यपारियों के चौपट होते व्यापार को बचाने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा तक खटखटाया जिससे ओवर ब्रिज निर्माण में तेजी आई।

धरना-प्रदर्शन की नहीं काम की राजनीति का नारा लेकर आगे बढ़ने वाले दीपक बाली की राजनीति शहरी जनता को भी पसंद आती दिख रही है और उन्हें शहर के हर वर्ग, धार्म, जाति के लोगों का साथ मिलता दिख रहा है। वहीं काशीपुर बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष और सचिव के कांग्रेस में होने के बावजूद उनके द्वारा जिला बनाने के वादे के कारण वकीलों का समर्थन भी बाली को मिल रहा है।

जहां भाजपा प्रत्याशी त्रिलोक सिंह चीमा अपने पिता के विकास कार्य न गिना पाने के कारण मोदी के नाम पर वोट मांग रहे हैं। वहीं दीपक बाली जनता से वादा कर रहे हैं कि वे काम कराना जानते हैं। यदि उनकी सरकार भी न आ पाई तो वे इतना माद्दा रखते हैं कि किसी भी पार्टी की सरकार के मुख्यमंत्री से काशीपुर का विकास कराने में कामयाब रहेंगे।

वहीं, इस बार दीपक ‘बाली’ अपने नाम को भी चरितार्थ करते नजर आ रहे हैं। जहां किसी अंधेरे को चीरने में एक ‘दीपक’ ही बहुत होता है। वहीं उनके आगे लगा बाली सिद्ध करता दिख रहा है कि उनके सामने खड़े भाजपा विधायक के सपुत्र त्रिलोक सिंह चीमा व कांग्रेस के पूर्व सांसद के सुपुत्र नरेंद्र चंद का आधा ‘बल’ उन्होंने अपने कामो के कारण हर लिया है जिस कारण विधानसभा में चारों ओर ‘दीपक बाली’ की ‘लहर’ चलती दिख रही है।

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