परमात्मा के प्रति निःस्वार्थ प्रेम ही सच्ची भक्ति है: निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा महाराज
विकास अग्रवाल
काशीपुर (महानाद) : परमात्मा के प्रति निःस्वार्थ प्रेम ही सच्ची भक्ति कहलाती है और ऐसी ही निष्काम प्रेम की भावना संतों की होती है। उक्त उद्गार निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा महाराज ने 17 नवंबर की शाम को समालखा (हरियाणा) में आयोजित 75वें वार्षिक निरंकारी संत समागम के मुख्य सत्र में देश-विदेशों से लाखों की संख्या में आये हुए विशाल मानव परिवार को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए।
सतगुरु माता ने कहा कि भक्त हर किसी को ईश्वर का ही रूप समझकर सभी से प्रेमपूर्वक व्यवहार करता है और उसका उसमे कोई व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं होता। ऐसे भक्तों की भक्ति में फिर किसी प्रकार के डर का भाव नहीं रहता। प्रेम से किए गए हर कार्य का आधार केवल प्रेम ही होता है जिसकी प्रेरणा प्रेम ही होती है। समर्पित भाव से की जाने वाली सेवा सदैव परोपकार के लिए ही होती है। वहीं दूसरी ओर संसार में यदि देखा जाए तो जो प्रेम दर्शाया जाता है उसमें भी प्रायः कोई न कोई निजी स्वार्थ छिपा होता है।
सतगुरु माता ने आगे प्रतिपादन किया कि जिस प्रकार एक छोटे से बीज में घना छायादार वृक्ष बनने की क्षमता होती है उसी प्रकार से हर मनुष्य परमात्मा का अंश होने के नाते परमात्मा स्वरूप बनने की क्षमता रखता है। बीज जब धरती से अंकुरित होकर प्रफुल्लित होता है तब वह एक वृक्ष का रूप लेकर अपने सारे कार्य अच्छे से निभाता है। इसी प्रकार ब्रह्मज्ञान द्वारा मनुष्य जब परमात्मा के साथ इकमिक होकर उसके रंग में रंग जाता है तब स्वतः ही वह मानवीय गुणों से युक्त होकर सच्चा मानव बन जाता है। फिर उसके जीवन में रूहानियत और इन्सानियत का संगम देखने को मिलता है। इसके विपरीत जो मनुष्य इस सच्चाई से वंचित रहता है उसका सही रूप में विकास नहीं हो पाता। संत महात्मा ऐसे मनुष्य को जागृति देकर परमात्मा के साथ जोड़ने का कार्य करते हैं जिससे उनका जीवन भी मानवीयता के गुणों से युक्त हो जाए।
मिशन के 75 वर्षों के संत समागमों की श्रृंखला का जिक्र करते हुए सतगुरु माता ने कहा कि संत समागमों के आरंभ से ही सम्मिलित होने वाले सभी भक्तों को जैसी अनुभूति होती आ रही है ठीक उसी प्रकार की अनुभूति प्रथम बार संत समागम में सम्मिलित होने वाले भक्तों को भी हो रही है क्योंकि इस परमात्मा की सत्यता सदैव एक जैसी रहती है जिसमें कोई परिवर्तन नहीं होता। इस स्थिर परमात्मा के साथ नाता जुड़ने पर भक्तों के मन की अवस्था फिर अस्थिर नहीं होती।
निरंकारी संत समागम का एक मुख्य आकर्षण ‘निरंकारी प्रदर्शनी’ है जिसका शुभारंभ सन् 1972 से हुआ। जिसमें निरंतर हर वर्ष मिशन के इतिहास, उसकी विचारधारा एवं समाजिक गतिविधियों को दर्शाया जाता है। इस वर्ष भी यह प्रदर्शनी समागम का मुख्य आकर्षण बनी हुई है और समागम के दौरान हर दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु भक्त इस प्रदर्शनी का अवलोकन कर रहे हैं।
यह जानकारी स्थानीय मीडिया प्रभारी प्रकाश खेड़ा द्वारा दी गई।