जसपुर : श्रीमद् भागवत कथा में मनोज जी महाराज ने सुनाई ‘श्रीकृष्ण लीला’

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पराग अग्रवाल
जसपुर (महानाद) : श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के छठवें दिवस की कथा में सहारनपुर से पधारे व्यास श्री मनोज जी महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन करते हुए बताया कि –
विकट व विपरीत परिस्थितियों में भी सहज बने रहने का नाम कृष्ण है।
सही को सही कहने और स्थापित करने का नाम कृष्ण है।
परिस्थितियों के साथ सामंजस्य का नाम कृष्ण है।
सामान्य रहकर असामान्य कर पाने का नाम कृष्ण है।
मार्गदर्शन का साकार स्वरूप कृष्ण है।
आबालवृद्ध व जड़ चेतन का मित्र होना कृष्ण है।
बांसुरी को साधने का नाम कृष्ण है।
खेल खेल में खेल करने का नाम कृष्ण है।
बहुमत को एकमत में समेटने, समाहित करने का नाम कृष्ण है।
सुदामा के चरण धोने का नाम कृष्ण है।
हरण पर चीर बढ़ाने का नाम कृष्ण है।
महाभारत में रथ हांकने और युधीष्ठर के राजसूय में झूठी पत्तल उठाने का नाम कृष्ण है।
जीवन में समायोजन के साथ धर्म रक्षण का नाम कृष्ण है।
राम का अनुगामी होकर परिस्थिति अनुरूप दो कदम और आगे बढ़ने का नाम कृष्ण है।

श्री मनोज व्यास जी महाराज ने एक सूक्ष्म कृष्ण कथा बताते हुए कहा कि ……कभी सूरदास ने एक स्वप्न देखा था कि रुक्मिणी और राधिका मिली हैं और एक दूजे पर न्योछावर हुई जा रही हैं। सोचता हूँ, कैसा होगा वह क्षण जब दोनों ठकुरानियाँ मिली होंगी। दोनों ने प्रेम किया था। एक ने बालक कन्हैया से, दूसरे ने राजनीतिज्ञ कृष्ण से। एक को अपनी मनमोहक बातों के जाल में फँसा लेने वाला कन्हैया मिला था, और दूसरे को मिले थे सुदर्शन चक्र धारी, महायोद्धा कृष्ण।

कृष्ण राधिका के बाल सखा थे, पर राधिका का दुर्भाग्य था कि उन्होंने कृष्ण को तात्कालिक विश्व की महाशक्ति बनते नहीं देखा। राधिका को न महाभारत के कुचक्र जाल को सुलझाते चतुर कृष्ण मिले, न पौंड्रक-शिशुपाल का वध करते बाहुबली कृष्ण मिले।

रुक्मिणी कृष्ण की पत्नी थीं, पटरानी थीं, महारानी थीं, पर उन्होंने कृष्ण की वह लीला नहीं देखी जिसके लिए विश्व कृष्ण को स्मरण रखता है। उन्होंने न माखन चोर को देखा, न गौ-चरवाहे को। उनके हिस्से में न बाँसुरी आयी, न माखन।

कितनी अद्भुत लीला है। राधिका के लिए कृष्ण कन्हैया था, रुक्मिणी के लिए कन्हैया कृष्ण थे। पत्नी होने के बाद भी रुक्मिणी को कृष्ण उतने नहीं मिले कि वे उन्हें ष्तुमष् कह पातीं। आप से तुम तक की इस यात्रा को पूरा कर लेना ही प्रेम का चरम पा लेना है। रुक्मिनी कभी यह यात्रा पूरी नहीं कर सकीं।

राधिका की यात्रा प्रारम्भ ही श्तुमश् से हुई थीं। उन्होंने प्रारम्भ ही ष्चरमष् से किया था। शायद तभी उन्हें कृष्ण नहीं मिले।
कितना अजीब है न! कृष्ण जिसे नहीं मिले, युगों युगों से आजतक उसी के हैं, और जिसे मिले उसे मिले ही नहीं।

तभी कहता हूँ, कृष्ण को पाने का प्रयास मत कीजिये। पाने का प्रयास कीजियेगा तो कभी नहीं मिलेंगे। बस प्रेम कर के छोड़ दीजिए, जीवन भर साथ निभाएंगे कृष्ण। कृष्ण इस सृष्टि के सबसे अच्छे मित्र हैं। राधिका हों या सुदामा, कृष्ण ने मित्रता निभाई तो ऐसी निभाई कि इतिहास बन गया।
राधा और रुक्मिणी जब मिली होंगी तो रुक्मिणी राधा के वस्त्रों में माखन की गंध ढूंढती होंगी, और राधा ने रुक्मिणी के आभूषणों में कृष्ण का वैभव तलाशा होगा। कौन जाने मिला भी या नहीं। सबकुछ कहाँ मिलता है मनुष्य को… कुछ न कुछ तो छूटता ही रहता है।

जितनी चीज़ें कृष्ण से छूटीं उतनी तो किसी से नहीं छूटीं। कृष्ण से उनकी माँ छूटी, पिता छूटे, फिर जो नंद-यशोदा मिले वे भी छूटे। संगी-साथी छूटे। राधा छूटीं। गोकुल छूटा, फिर मथुरा छूटी। कृष्ण से जीवन भर कुछ न कुछ छूटता ही रहा। कृष्ण जीवन भर त्याग करते रहे। हमारी आज की पीढ़ी जो कुछ भी छूटने पर टूटने लगती है, उसे कृष्ण को गुरु बना लेना चाहिए। जो कृष्ण को समझ लेगा वह कभी अवसाद में नहीं जाएगा। कृष्ण आनंद के देवता है। कुछ छूटने पर भी कैसे खुश रहा जा सकता है, यह कृष्ण से अच्छा कोई सिखा ही नहीं सकता।

भागवत कथा में श्री धर्मशाला मंदिर समिति के संरक्षक डॉक्टर एके गुप्ता, महामंत्री निकेश अग्रवाल, वरिष्ठ उपाध्यक्ष हरीश ग्रोवर, कोषाध्यक्ष आलोक सिंघल, राजाराम राजपूत, सतीश ग्रोवर, अतुल बंसल, सतीश अरोरा, विनोद ठुकराल, सुरेश कुमार, रिंकू अरोरा, हरिओम सिंह, महेंद्र अरोरा, सुंदरलाल अरोरा, खैराती लाल, विलायती लाल, रमेश ग्रोवर, आशा रानी, गीता खुराना, सिया ग्रोवर, दीक्षा दुआ, अनीता नारंग, रजनी, सोनिया, सुमित्रा, सरिता, सविता, साक्षी ठुकराल, ममता, पूजा, पूनम, रचना, अर्चना आदि भक्तगण उपस्थित रहे।

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