देबाशीष भट्टाचार्य के गिटार की ध्वनि से गूंज उठा विरासत का आंगन

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देहरादून: विरासत आर्ट एंड हेरीटेज फेस्टिवल 2023 के तीसरे दिन की शुरुआत ’विंटेज और क्लासिकल कार एवं बाइक रैली ’ कार्यक्रम के साथ हुआ। ’विंटेज और क्लासिकल कार एवं बाइक रैली कार्यक्रम को अंबेडकर स्टेडियम से मुख्य अतिथि श्री जय राज जी, पूर्व पीसीसीएफ ने हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। ’विंटेज और क्लासिकल कार एवं बाइक रैली में लगभग 40 से अधिक वाहनों ने भाग लिया।

रैली अंबेडकर स्टेडियम से शुरू होकर राजपूर रोड तक गई और फिर दिलाराम होते हुए देहरादून कैन्ट के रास्ते वापस अंबेडकर स्टेडियम पहुंची। इस रैली में वाहन मालिक उसके सवारियों और ड्राइवरों का उत्साह और दर्शकों की ऊर्जा से मेल खा रहा था जो पुरानी कारों, बाइक, जीपों को देखने के लिए बड़ी संख्या में आए थे।

कुछ निजी संग्राहकों की सबसे पुरानी कार और बाइक में से एक शेवेरोलेट 1926 और मैचलेस मोटरसाइकिल 1942 थीं, जिनके मालिक डॉ. एस, फारूक थे। अधिकतम कार के साथ रैली में भागीदारी करने वाले विजेता रहे डॉ. एस फारूक और बाइक के लिए बलबीर सेम्भी। विभिन्न पुरस्कार विजेताओं में वोलेंटियर्स की पसंद श्रेयस वर्मा और रितिक शर्मा रहे, रीच की पसंद में विजेता रहे कुणाल अरोड़ा और सगीर अहमद, दर्शकों की पसंद में विजेता रहे नूर मोहम्मद और अनुपम सुडेन।

आज के सांस्कृतिक कार्यक्रम का शुभांरंभ राजा रणधीर सिंह, एशिया ओलंपिक परिषद के अंतरिम अध्यक्ष एवं रीच विरासत के पेट्रोन ने दीप प्रज्वलन के साथ किया एवं उनके साथ रीच विरासत के महासचिव श्री आर.के.सिंह एवं अन्य सदस्य भी मैजूद रहें।

देबाशीष भट्टाचार्य ने अपने प्रस्तुति की शुरुआत अपने गिटार पर शुद्ध कल्याण की एक रचना से की उसके बाद उन्होंन राग जैजवंती प्रस्तुत किया।

देबाशीष भट्टाचार्य का जन्म 12 जनवरी 1963 को कोलकाता मे हुआ था। उनकी उम्र 60 साल है । वे एक भारतीय शास्त्रीय संगीतकार, गायक के साथ साथ एक शिक्षक भी है। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने दुनिया में सबसे पहला स्लाइड गिटार सिलेबस पेश किया था। भट्टाचार्य ने एक नई वादन तकनीक और ध्वनि की शुरुआत के साथ-साथ, अपने संगीत को डिजाइन करने में पारंपरिक और विशिष्ट समकालीन दृष्टिकोणों के मिश्रण के माध्यम से स्लाइड गिटार पर भारतीय शास्त्रीय संगीत को फिर से परिभाषित किया। संगीत के अलावा शिक्षा के छेत्र में भी उनका योगदान है,

उन्होंने एक हजार से अधिक छात्रों को पढ़ाया है, वे एक नई शैली में (हिंदुस्तानी स्लाइड गिटार) बनाई है, अपने स्वयं के वाद्ययंत्र भी डिजाइन किए हैं (चतुरंगुई, आनंदी और गंधर्वी सहित) एवं अपना प्रदर्शन किया है, ग्रैमी नामांकन और कई विश्व संगीत पुरस्कारों से उनको नवाज़ा गया है। इसके अलावा अनगिनत संगीत कार्यक्रम और कार्यशालाएँ में भी सम्मानित किया गया है। उनकी नवीनतम गिटार रचना, पुष्पा वीणा, शायद दुनिया का पहला स्लाइड वाद्य यंत्र है, जिसका शीर्ष जानवरों की खाल से बना है। हिंदुस्तानी राग संगीत के लिए उन्होंने शाम के समय के लिए तीन नए रागों की रचना की हैः “राग पलाश प्रिया,“ “राग शंकर ध्वनि“ और “राग चंद्र मलिका“।

उन्हें वर्ल्ड म्यूज़िक हॉल ऑफ़ फ़ेम 2022 , ग्रैमी नामांकित 2009, बीबीसी पुरस्कार 2007, एशियाटिक सोसाइटी गोल्ड मेडल 2005 और प्रेसिडेंट ऑफ़ इंडिया गोल्ड मेडल 1984 से सम्मानित किया गया है।

कार्यक्रम कि दूसरी प्रस्तुति में कुमुद झा दीवान ने बिहार संगीत पृष्ठभूमि की रचनाएँ शामिल थीं। उन्होंने अपने प्रदर्शन की शुरुआत कौशिक ध्वनि में ठुमरी “मैंने मन रे किया, तूने टिकुली के बीचबढ़ा काहे को दिया“ से की, उनका अगली प्रस्तुति दादरा रहा जिसे “सीधी का दादरा“ के नाम से जाना जाता है और उन्होंने राग भैरवी में एक बंदिया “सांवरिया प्यारा रे मोरी गुइयां“ , “जिया मोरा कांपे ’ के साथ समापन किया।

बिजनेस स्टडीज में पीएचडी कुमुद झा दीवान एक अर्ध-शास्त्रीय गायक हैं, वे ठुमरी के एक स्थापित और प्रशंसित प्रतिपादक हैं। कुमुद को हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में उत्कृष्टता के लिए प्रतिष्ठित ’इंदिरा गांधी प्रियदर्शनी पुरस्कार’ 2010 मिला है। उनकी आवाज में बनारस घराने की दिवंगत सिद्धेश्वरी देवी और रसूलन बाई की याद दिलाने वाली दुर्लभ लय है। उन्होंने गायन में प्रयाग संगीत समिति, इलाहाबाद से ’संगीत प्रभाकर’ की उपाधि प्राप्त की है। वह ऑल इंडिया रेडियो की एक श्रेणीबद्ध कलाकार और आईसीसीआर की एक सूचीबद्ध कलाकार हैं।

कार्यक्रम में आखिरी प्रस्तुति जसबीर सिंह जस्सी की रही जिसमें उन्होंने शुरुआत सूफी संत बाबा बुल्लेशाह द्वारा रचित हीर.. “आयो नी सैयों“ से की, उसके बाद उन्होंने छाप तिलक…नैना मिलाई के फिर उन्होंन मेरा पिया धर आया ओ राम जी एवं अन्य गाने भी प्रस्तुत कियें।

जसबीर सिंह बैंस, जिन्हें पुरी दुनिया उनके स्टेज नाम जसबीर जस्सी से जानती हैं वे एक भारतीय गीतकार, कलाकार और एक अभिनेता हैं। उन्होंने तेरह से अधिक गीत एल्बम जारी किए जिसमें से उनका पहला पॉप एल्बम दिल ले गई है, जो 1998 में रिलीज़ हुआ था। उन्होंने फिल्म केसरी के लिए “एक ओंकार“ गाया और उसे संगीतबद्ध किया। उन्होंने पटियाल हाउस जैसी फिल्मों में भी गाया और अपने प्रस्तुति से पुरी दुनिया को अपने दिल रुभने वाले गीतों से किया। उसके बाद उन्होंने एक सूफी गीत भी लौंच किया जिसे बोल ,ओ लाल नी हैं, जो की बाबा बल्ले शाह दुवारा लिखा गया हैं। संगीत के साथ साथ उन्होंने पंजाबी फिल’ हीर रांझा ’ मे लीड रोल ’खुशियाँ ’ निभाकर पंजाबी सिनेमा मे अपनी एक नई पहचान बनाई , इसके अलावा उन्होंने कई देशों मे अपना प्रदर्शन भी दिया हैं और एनडीटीवी इमेजिन के धूम मचा दे में दिखाई दिए।

73वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर, जस्सी जी ने एक अन्य पंजाबी गायक के साथ अगस्त 2021 में देश को समर्पित एक देशभक्ति एकल ट्रैक ’आजादी द इंडिपेंडेंस’ गाना भी जारी किया है जिसे लोगों ने काफी पसंद किया और प्यार दिया है।

जस्सी जी एक स्वाभाविक परोपकारी व्यक्ति हैं। उनका सच्चा विश्वास है कि “संगीत एकजुटता का धर्म है!“ और आगे कहते हैं, यह समय हमारे धार्मिक मतभेदों को दूर करने और मानवता को बचाने का है।

तबला वादक शुभ जी का जन्म एक संगीतकार घराने में हुआ था। वह तबला वादक श्री किशन महाराज के पोते हैं। उनके पिता श्री विजय शंकर एक प्रसिद्ध कथक नर्तक हैं, शुभ को संगीत उनके दोनों परिवारों से मिला है। बहुत छोटी उम्र से ही शुभ को अपने नाना पंडित किशन महाराज के मार्गदर्शन में प्रशिक्षित किया गया था। वह श्री कंठे महाराज.की पारंपरिक पारिवारिक श्रृंखला में शामिल हो गए। सन 2000 में, 12 साल की उम्र में, शुभ ने एक उभरते हुए तबला वादक के रूप में अपना पहला तबला एकल प्रदर्शन दिया और बाद में उन्होंने प्रदर्शन के लिए पूरे भारत का दौरा भी किया। इसी के साथ उन्हें पद्म विभूषण पंडित के साथ जाने का अवसर भी मिला। शिव कुमार शर्मा और उस्ताद अमजद अली खान. उन्होंने सप्तक (अहमदाबाद), संकट मोचन महोत्सव (वाराणसी), गंगा महोत्सव (वाराणसी), बाबा हरिबल्लभ संगीत महासभा (जालंधर), स्पिक मैके (कोलकाता), और भातखंडे संगीत महाविद्यालय (लखनऊ) जैसे कई प्रतिष्ठित मंचों पर प्रदर्शन किया है।

27 अक्टूबर से 10 नवंबर 2023 तक चलने वाला यह फेस्टिवल लोगों के लिए एक ऐसा मंच है जहां वे शास्त्रीय संगीत एवं नृत्य के जाने-माने उस्तादों द्वारा कला, संस्कृति और संगीत का बेहद करीब से अनुभव कर सकते हैं। इस फेस्टिवल में परफॉर्म करने के लिये नामचीन कलाकारों को आमंत्रित किया गया है। इस फेस्टिवल में एक क्राफ्ट्स विलेज, क्विज़ीन स्टॉल्स, एक आर्ट फेयर, फोक म्यूजिक, बॉलीवुड-स्टाइल परफॉर्मेंसेस, हेरिटेज वॉक्स, आदि होंगे। यह फेस्टिवल देश भर के लोगों को भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और उसके महत्व के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी प्राप्त करने का मौका देता है। फेस्टिवल का हर पहलू, जैसे कि आर्ट एक्जिबिशन, म्यूजिकल्स, फूड और हेरिटेज वॉक भारतीय धरोहर से जुड़े पारंपरिक मूल्यों को दर्शाता है।

रीच की स्थापना 1995 में देहरादून में हुई थी, तबसे रीच देहरादून में विरासत महोत्सव का आयोजन करते आ रहा है। उदेश बस यही है कि भारत की कला, संस्कृति और विरासत के मूल्यों को बचा के रखा जाए और इन सांस्कृतिक मूल्यों को जन-जन तक पहुंचाया जाए। विरासत महोत्सव कई ग्रामीण कलाओं को पुनर्जीवित करने में सहायक रहा है जो दर्शकों के कमी के कारण विलुप्त होने के कगार पर था।

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