महानाद डेस्क : 22 अप्रैल 2023 को अक्षय तृतीया है। ‘अक्षय’ शब्द का अर्थ है – जिसका क्षय यानाश नहो। इस दिन किया हुआ जप, तप, ज्ञान तप अक्षय फल देने वाला होता है। अतः इस अक्षय तृतीया कहते हैं। भविष्य पुराण, मत्स्य पुराण, स्कन्द पुराण व पद्म पुराण में इस तिथि का विशेष उल्लेख है। इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका बड़ा ही श्रेष्ठ फल मिलता है। इस दिन सभी देवताओं व पित्तरों का पूजन किया जाता है।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि इस तिथि पर किये गये दान व हवन का क्षय नहीं होता है। इसलिए हमारे ऋषियों-मुनियों ने इसे अक्षय तृतीया कहा है। इस तिथि पर भगवान की कृपा दृष्टि पाने एवं पित्तरों की गति के लिए की गई पूजाएं अक्षय-अविनाशी होती है।
वैशाख मास भगवान विष्णु को अतिप्रिय है। अतः विशेषतः भगवान विष्णु की पूजा करें। इस दिन भगवान विष्णु के साथ माता श्री महालक्ष्मी जी की पूजा का भी विधान है। अक्षय तृतीया केदिन सोने-चांदी की चीजें खरीदी जाती हैं। इससे घर में धन-धान्य की अक्षय वृद्धि होती है।
अक्षय तृतीया के दिन 11 कौड़ियों को लाल कपड़े में बांधकर पूजा स्थान में रखें। इनमें देवी महालक्ष्मी को आकर्षित करने की क्षमात होती है। देवी लक्ष्मी के समान ही कौड़ियां भी समुद्र से ही उत्पन्न होती हैं। इस दिन पूजा स्थान में एकांक्षी नारियल स्थापित करने से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
इस दिन स्वर्गीय आत्माओं की प्रसन्नता के लिए जल, कलश, पंख, खड़ाऊं, छाता, ककड़ी, खरबूजा आििद फल, घी, शक्कर आदि दान करने से पित्तरों की कृपा प्राप्त होती है।
पूजन विधि –
1. सर्वप्रथम मन्दिर में माथा टेकने के उपरांत मन को शांत करें।
2. केसर व हल्दी से भगवान विष्णु व देवी लक्ष्मी सहित सभी देवी-देवताओं को तिलक करें।
3. भगवान श्री गणेश का ध्यान कर ‘ॐ गौरी पुत्राय श्री गणेशाय नमः’ नाममंत्र से भगवान गणेश का पूजन करें।
4. भगवान विष्णु का ध्यान कर ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ नाममंत्र से भगवान विष्णु का पूजन करें।
5. माता श्री महालक्ष्मी का ध्यान कर ‘ॐ नमो धनदायै स्वाहा’ नाममंत्र से माता श्री महालक्ष्मी का पूजन करें।
6. इस दिन खरीदी गईं चांदी को चावल से भरी कटोरी में रखकर व सोने को चने की दाल से भरी कटोरी में रखकर पूजन करें।
7. अगले दिन सोने व चांदी का यथायोग्य प्रयोग कर लें। कटोरी के चावल/दाल को चिड़ियों या गाय को खिला दें।
8. पित्तरों की शान्ति के लिए ‘ॐ पितृ दैव्यै नमः’ नाममंत्र से पित्तरों का पूजन कर तर्पण (जल दान) करें।
तत्पश्चात माथा टेक कर उठें, याचक की भांति हाथ फैलाकर मांगे तथा 9 दिन तक लगातार माता श्री महालक्ष्मी के मंत्र का मन ही मन जप करते रहें। माता सबके भंडार भरेगी।