विकास अग्रवाल की विशेष रिपोर्ट
महानाद डेस्क : क्या कनाडा ने भारत विरोधी रुख अपनाकर अपनी उलटी गिनती शुरु कर ली है? क्या मोदी ने कनाडा पर स्ट्राइक की तैयारी शुरु कर दी है? क्या कनाडा पर स्ट्राइक कर मोदी कनाडा में रह रहे खालिस्तानियों को खत्म कर पंजाब को खलिस्तानी विचारधारा से मुक्त करवा पायेंगे? आजकल ऐसे अनेकों प्रश्न देश की जनता के मन में दौड़ रहे हैं।
हालांकि इसकी शुरुआत कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत पर खालिस्तानी आतंकवादी की हत्या का आरोप लगाकर और भारतीय राजनयिक को कनाडा से निकालकर की है। लेकिन लगता है कि इसी बहाने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पंजाब में खालिस्तान समर्थकों के कनाडा में बैठे आकाओं की कमर तोड़ने के काम में जुट गये हैं।
आपको बता दें कि 19 सितंबर को विदेश मंत्रालय ने कनाडा के उच्चायुक्त कैमरून मैके को तलब किया। बताया जा रहा है कि कनाडा के उच्चायुक्त कैमरून मैके को भारत में पोस्टेड एक सीनियर कनाडाई राजनयिक को निष्कासित करने के केंद्र के फैसले के बारे में सूचित करने के लिए भारत बुलाया गया था। निष्कासित राजनयिक को पांच दिन के भीतर भारत छोड़ने के लिए कहा गया है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत सरकार की संलिप्तता के संबंध में ‘विश्वसनीय आरोपों’ का हवाला देते हुए कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो द्वारा ऐसा करने के कुछ ही घंटों के पश्चात भारत ने एक सीनियर कनाडाई राजनयिक को भारत से निष्काषित कर दिया।
विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा, ‘यह निर्णय हमारे आंतरिक मामलों में कनाडाई राजनयिकों के हस्तक्षेप और भारत विरोधी गतिविधियों में उनकी भागीदारी पर भारत सरकार की बढ़ती चिंता को दर्शाता है।’ इसके बाद भारत सरकार ने कहा कि देश के लिए आतंकवाद एक बड़ मुद्दा है इसलिए सुरक्षा कारणों से कनाडाई नागरिकों के लिए भारतीय वीजा की सेवा फिलहाल बंद कर दी है।
इसके बाद भारत सरकार ने भारतीय नागरिकों और छात्रों के लिए एडवाइजरी जारी कर कहा कि भारतीय नागरिकों को सलाह दी जाती है कि वे कनाडा के उन क्षेत्रों और संभावित स्थानों की यात्रा करने से बचें जहां ऐसी घटनाएं देखी गई हैं। हाल ही में, इन धमकियों ने विशेष रूप से भारतीय राजनयिकों और भारतीय समुदाय के उन वर्गों को लक्षित किया है जो भारत विरोधी एजेंडे का विरोध करते हैं।
विदेश मंत्रालय ने कहा कि हमारा उच्चायोग/वाणिज्य दूतावास कनाडा में भारतीय समुदाय की सुरक्षा और भलाई सुनिश्चित करने के लिए कनाडाई अधिकारियों के साथ संपर्क में रहेगा। कनाडा में बिगड़ते सुरक्षा माहौल को देखते हुए, विशेष रूप से भारतीय छात्रों को ज्यादा सावधानी बरतने और सतर्क रहने की सलाह दी जाती है।
एडवाइजरी में कहा गया कि कनाडा में भारतीय नागरिकों और छात्रों को ओटावा में भारतीय उच्चायोग या टोरंटो और वैंकूवर में भारत के महावाणिज्य दूतावासों के साथ संबंधित वेबसाइटों, या MADAD पोर्टल madad.gov.in के माध्यम से पंजीकरण कराना होगा। ऐसे में उच्चायोग और महावाणिज्य दूतावास किसी भी आपातकालीन या अप्रिय घटना की स्थिति में कनाडा में भारतीय नागरिकों के साथ बेहतर तरीके से जुड़ने में सक्षम होंगे।
आपको बता दें कि विगत 18 जून को कनाडाई नागरिकता प्राप्त हरदीप सिंह निज्जर की दो अज्ञात बंदूकधारियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने सोमवार को कनाडा की संसद में बयान दिया था कि निज्जर की हत्या और भारत सरकार के एजेंट के बीच संभावित संबंध के पुख्ता आरोपों की कनाडा की सुरक्षा एजेंसियां पूरी सक्रियता से जांच कर रही हैं। वहीं भारत ने जस्टिन ट्रूडो के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है।
आपको बता दें कि बढ़ते तनाव के बीच प्रधानमंत्री मोदी के हाथ में कनाडा की ऐसी कमजोर नब्ज है, जिस पर चोट करके वे कनाडा की आर्थिक कमर तोड़ सकते हैं। दरअसल कनाडा की इकॉनमी अंतर्राष्ट्रीय छात्रों पर निर्भर है जिसमें भारतीय छात्रों का हिस्सा 40 प्रतिशत है। जो मोटी फीस के रूप में वहां की प्राइवेट यूनिवर्सिटीज की बड़ी आर्थिक मदद करते हैं। यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय छात्रों के कनाडा जाने पर प्रतिबंध लगा दिया तो कनाडा की ऐसी प्राइवेट यूनिवर्सिटी, जिन्हें सरकार से मदद नहीं मिलती है, खत्म हो सकती हैं।
जानकारों के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय छात्र हर साल कनाडा की इकॉनमी में 30 बिलियन डॉलर का योगदान करते हैं। अगर भारत ने अपने छात्रों पर प्रतिबंध लगाया तो इस सेक्टर के लिए यह एक बड़ा झटका होगा। केवल इतना ही नहीं, यहां के विभिन्न इलाकों में रहने वाले भारतीय छात्र वहां पर किराए के रूप में, मॉर्गेज के रूप में भी अपना बड़ा योगदान देते हैं।
आपको बता दें कि कनाडा के ऑडिटर जनरल बोनी लिसिक पैसों के मामले में कनाडा की अंतरराष्ट्रीय छात्रों पर निर्भरता के खतरे गिना चुके हैं। 2021 की रिपोर्ट में उन्होंने कहा था कि यह सरकार के नियंत्रण से बाहर है। यदि कुछ देशों के छात्र कनाडा में आना बंद कर दें तो राजस्व को अचानक और बड़े पैमाने पर नुकसान हो सकता है। ऐसे में यदि भारत जिसके छात्रों का हिस्सा 40 प्रतिशत है, यदि अपने छात्रों को कनाडा जाने से रोक दे कनाडा का क्या हाल होगा, इसका अंदाजा आप आसानी से लगा सकते हैं। क्योंकि कनाडा के अपने छात्र जितनी फीस देते हैं, उससे 3 से 5 गुना ज्यादा फीस भारतीय छात्र देते हैं। अगर देखा जाए तो कनाडा की प्राइवेट यूनिवर्सिटी का इकोसिस्टम ही पूरी तरह से भारतीय छात्रों पर निर्भर है।
कनाडा सरकार के आंकड़ों के अनुसार ही 2022 में कनाडा में 5.5 लाख अंतर्राष्ट्रीय छात्रों में से 2.26 लाख छात्र भारत के थे और 3.2 लाख भारतीय छात्र वीजा पर कनाडा में रहकर इसकी अर्थव्यवस्था में मदद कर रहे थे। यह भी ध्यान देने वाली बात है कि अर्थव्यवस्था में उनका योगदान मिनी-नौकरियों के माध्यम से उनकी कमाई से कहीं अधिक है।
वहीं आपको बता दें कि भारतीयों खासकर पंजाबी छात्रों का कनाडा प्रेम अब उन पर भारी पड़ने लगा है। पंजाबी छात्रों में कनाडा जाने की चाह जहां लगातार बढ़ती जा रही है। वहां जाकर पढ़ना और फिर वहां की परमानेंट नागरिकता लेना उनका सपना बन चुका है। एक सर्वे के अनुसार सन 2022 में 1.63 लाख पंजाबी स्टूडैंट्स भारत से कनाडा गए थे। जिस कारण वहां पर अब पंजाबी छात्रों की संख्या बहुत अधिक हो चुकी है। जिसका फायदा अब कनाडा की कंपनियां उठाने में लगी हैं। पहले के मुकाबले कनाडा में अब लेबर 5 गुना तक सस्ती हो चुकी है। जिस काम के बदले पहले 2.5 डॉलर मिलते थे, अब उसी काम के बदले केवल आधा डॉलर की मजदूरी मिल रही है। जिस कारण हालात ये होचुके हैं कि अत्यधिक संख्या होने के कारण भारतीय छात्रों को मजदूरी का काम भी नहीं मिल पा रहा है। केवल जिन्हें हाथों में कुछ स्किल है, वे ही यहां पर थोड़ा-बहुत कमा कर पा रहे हैं। हालत यह हो चुकी है कि छात्रों के पास महीने का राशन तक खरीदने तक के पैसे नहीं हैं। उन्हें घर का किराया तक देना मुश्किल हो चुका है। जिस कारण कई छात्र तो अब पूरी तरह से गुरुद्वारों पर ही निर्भर हो चुके हैं और गुरुद्वारों में लंगर खाकर गुजारा करने के लिए मजबूर हैं।
वहा रह रहे छात्रों के अनुसार कनाडा सरकार उनका दुरुपयोग श्रम के सस्ते स्रोत यानी ‘चीप लेबर’ के रूप में कर रही है और जब उनका उपयोग पूरा हो जाता है, तब वह उन्हें देश छोड़ने के लिए बाध्य कर देती है। ता दें कि विगत वर्ष जस्टिन ट्रूडो की सरकार ने लगभग 50 हजार विदेशी छात्रों को स्नातक होने के पश्चात नौकरी ढूंढने के लिए 18 महीने तक कनाडा में रहने की अनुमति दी थी। यह वह समय था, जब कनाडा सरकार कोरोना के मामले कम होने के बाद देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने का प्रयास कर रही थी। एकतरफ कनाडाई स्थानीय लोग बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहे हैं तो भारतीय छात्रों को प्रवेश स्तर की नौकरियों में ही रखा जा रहा है। उन्हें स्थानीय नागरिकों के ऊपर वरीयता दी जाती है, क्योंकि वे वहां के तय मानदेय से कम में ज्यादा घंटो तक काम करते हैं। लेकिन 18 महीनों के बाद उनका वर्क वीजा खत्म हो जाने पर उनके सामने जहां आर्थिक समस्या उत्पन्न हो जाती है वहीं उन्हें कनाडा छोड़ने के लिए भी कह दिया जाता है।
उधर, कनाडा में वर्षों से रह रहे एक प्रभावशाली पंजाबी उज्ज्ल दोसांझ ने कहा है कि वैसे जो कनाडाई खालिस्तान की मांग कर रहे हैं वो भारत को तोड़ने नहीं जा रहे हैं क्योंकि भारत के सिख खालिस्तान नहीं चाहते हैं। कनाडा में लंबे समय तक संसदीय राजनीति करने वाले उज्ज्वल दोसांझ ने कहा कि कनाडा में सिखों की आबादी केवल 2 प्रतिशत है। यदि कनाडा में इस छोटे समुदाय का एक वर्ग खालिस्तान चाहता है, तो उन्हें कनाडा के अलबर्टा या सस्कैचवान में खालिस्तान दे देना चाहिए।
आपको बता दें कि कनाडा की कुल जनसंख्या लगभग 4 करोड़ है। 2021 की जनगणना के अनुसार कनाडा में सिखों की कुल आबादी 7 लाख 70 हजार थी। जो कि कनाडा की कुल आबादी का लगभग 2.1 प्रतिशत के बराबर है। हालांकि कनाडा में भारतीय मूल के लोगों की कुल आबादी लगभग 15 लाख है।
उधर, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने सख्त नोटिफिकेशन जारी कर भारतीय न्यूज चैनलों को देश के दुश्मनों को टीवी डिबेट में नहीं बुलाने की सलाह दी है। बृहस्पतिवार को जारी नोटिफिकेशन में कहा गया है कि ‘मंत्रालय के संज्ञान में आया है कि विदेश के एक व्यक्ति को टेलीविजन चैनल पर चर्चा के लिए आमंत्रित किया गया था। उस व्यक्ति के खिलाफ आतंकवाद सहित अपराध के गंभीर मामले दर्ज हैं और भारत में कानून द्वारा प्रतिबंधित संगठन से जुड़ा है। उक्त व्यक्ति ने कई टिप्पणियां कीं जो देश की संप्रभुता / अखंडता, भारत की सुरक्षा, एक विदेशी देश के साथ भारत के मैत्रीपूर्ण संबंधों के लिए हानिकारक थीं। उनमें देश में सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ने की भी संभावना थी।।
एक आधिकारिक विज्ञप्ति में कहा गया है कि टीवी चैनलों को सलाह दी जाती है कि वे ऐसे पृष्ठभूमि के व्यक्तियों को उनके एजेंडे के लिए कोई भी मंच देने से बचें। इनमें वे लोग भी शामिल हैं जिनके खिलाफ गंभीर अपराध / आतंकवाद के आरोप हैं। इसमें कहा गया है कि ‘हालांकि सरकार मीडिया की स्वतंत्रता को कायम रखती है और संविधान के तहत उसके अधिकारों का सम्मान करती है, लेकिन टीवी चैनलों द्वारा प्रसारित कंटेंट को सीटीएन अधिनियम, 1995 के प्रावधानों का पालन करना चाहिए, जिसमें धारा 20 की उपधारा (2) भी शामिल है।’
Keep on working, great job!