काशी : 350 साल बाद नए सिंहासन पर बैठेंगे गौरा-महादेव

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कश्मीर से आई लकड़ी और 11 किलो चांदी से बनाई गई है पालकी

वाराणसी (महानाद) : 350 साल बाद काशी पुराधिपति महादेव माता पार्वती संग चांदी के नए सिंहासन पर रंगभरी एकादशी (अमला एकादशी) पर विराजमान होंगे। कश्मीर से आई लकड़ी और शिवांजली द्वारा जुटाई गई लगभग 11 किलो चांदी से यह सिंहासन बनाया गया है। 14 मार्च यानी कल सोमवार को रंगभरी एकादशी पर बाबा विश्वनाथ, माता पार्वती संग प्रथमेश की चल प्रतिमा की पालकी यात्रा के लिए चांदी का नया सिंहासन बनवाया गया है। टेढ़ीनीम स्थित महंत आवास पर यह सिंहासन शनिवार की देर रात शिवांजलि की तरफ से बाबा काशी विश्वनाथ को अर्पित किया गया।

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी ने बताया कि 2 वर्ष पूर्व उनके आवास का हिस्सा कॉरिडोर विस्तारीकरण के दौरान अचानक गिर जाने के कारण बाबा की चांदी पालकी का सिंहासन और शिवाला क्षतिग्रस्त हो गया था। रंगभरी एकादशी महोत्सव के लिए गठित शिवांजलि के माध्यम से कश्मीर के बाबा के भक्त मनीष पंडित ने चिनार और अखरोट की लकड़ी सिंहासन के लिए उपलब्ध कराई है।

डॉ. कुलपति तिवारी ने बताया कि काशी के जगतगंज निवासी काष्ठ शिल्पी शशिधर प्रसाद ‘पप्पू’ ने इस पालकी का निर्माण किया है। सिंहासन को दशाश्वमेध (भूतेश्वर गली) के कारीगर अशोक कसेरा ने अपने परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर तैयार किया है। खास बात यह है कि शशिधर प्रसाद और अशोक कसेरा दोनों ने ही बाबा का सिंहासन तैयार करने के बदले में कोई मेहनताना नहीं लिया है। इन दोनों का कहना है कि बाबा की सेवा का अवसर जीवन में पहली बार मिला है। यह अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि है।

वहीं, शिवांजली के संयोजक संजीव रत्न मिश्र ने बताया कि बाबा विश्वनाथ की पालकी में लगाने के लिए लखनऊ के रहने वाले शिवम मिश्रा के माध्यम से दिल्ली और कश्मीर के बाबा भक्तों ने सिंहासन के लिए काष्ठ और चांदी की व्यवस्था की है। शिवांजली के सदस्यों ने गाजे-बाजे के साथ नए सिंहासन को टेढ़ीनीम महंत आवास में महंत डॉ. कुलपति तिवारी को सौंप दिया।

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