प्रदीप फुटेला
रुद्रपुर (महानाद) : आगरा के मशहूर व्यापारी हाजी रिजवान परवेज का कहना है कि माता-पिता के लिए सबसे अनमोल उनके बच्चे होते हैं। बच्चे ही उनकी दुनिया होते हैं और उनके ख्वाबों को पूरा करने की तमन्ना भी उन्हीं में समाई होती है। ऐसे ही मेरे बच्चे मेरा अभिमान हैं। बच्चों की खुशियां ही जैसे हमारे लिए सब कुछ है। मेरी दो बेटियां हैं, दोनो से मुझे बहुत लगाव है। वो जो भी जिद्द करती हैं उन्हें पूरा करना मेरा मकसद होता है। बड़ी बेटी पढ़ाई में होशियार है और सोशल काम करना उसकी पसंद हैं। छोटी बेटी इरम 15 वर्ष की है वह बहुत ही चंचल है। जानवरों से उसे बेह प्यार है। मेरे आंगन में जब यह दोनों बेटियां खुश होकर खेलती हैं तो इससे बेहतर मुझे कुछ नही लगता। इनको जरा भी तकलीफ होती है तो मैं जैसे ठहर जाता हूँ। एक रोज की बात है मेरी छोटी बेटी इरम के पेट मे अचानक बहुत तेज दर्द हुआ। उसे एफएच मेडिकल कॉलेज ले गए। जांच की गई, डॉक्टरों ने देखा, इलाज शुरू हुआ लेकिन वह दर्द बढ़ता जा रहा था। रोग पर जब कंट्रोल होता न दिखा तो बेटी को तुरंत गुड़गांव स्थित मेदांता हॉस्पिटल ले गए। मेदांता हॉस्पिटल में मशहूर पेट रोग विशेषज्ञ डॉक्टर रणधीर सूद की देख रेख में बेटी का इलाज शुरू हुआ। डॉक्टर ने बेटी को गम्भीर बीमारी अक्यूट पैंक्रियाटाइक्रटस की बताई और एलोपैथी में इसके इलाज की सीमा बताई गयी।
पैंक्रियाटाइक्रटस यानी पैंक्रियास में होने वाली सूजन, जिसकी दो किस्म होती है, अक्यूट और क्रॉनिक। इस बीमारी से मरीज और उसके परिवार को शारीरिक और मानसिक तौर पर परेशान करने के साथ जेब पर भी बहुत भारी पड़ती है। दुनियाभर के देशों में इस बीमारी के मरीज कम मिलते है। परंतु कहा जाता है कि भारत के दक्षिणवर्ती राज्यों में इसके मरीज सबसे ज्यादा हंै। बेटी की इस गम्भीर बीमारी को देख हम सब परेशान हो उठे। हमें उसका दर्द बहुत तकलीफ देता था। रात में जाग जागकर हम बेटी की देखभाल करते थे। बेटी की इस बीमारी के लिए मैंने बहुत खर्च किया। हालांकि हमारा परिवार शिक्षा, स्वास्थ्य, राजनीति और समाजसेवा के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान रखता है। मेरे सभी भाई भी मेरी बेटी के मुकम्मल इलाज के लिए फिक्रमंद रहते। अचानक मुझे उत्तराखंड के मशहूर वैद्य बालेंदु प्रकाश जी के बारे में जानकारी हुई।
मालूम हुआ कि वैध बालेंदु प्रकाश ने 1997 में एक्यूट प्रोमाइलोसिटिक ल्यूकेमिया (एक तरह का ब्लड कैंसर) के उपचार की आयुर्वेदिक दवा पर शोध किया था और उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया था। जब मुझे यह मालूम हुआ कि मशहूर वैद्य बालेंदु प्रकाश लगभग पचास साल से अक्यूट पैंक्रियाटाइक्रटस बीमारी का सफल इलाज कर रहे है। आयुर्वेद के रसशास्त्र पर आधारित इस फॉमूूले का ईजाद मरहूम वैद्य चंद्र प्रकाश ने किया था और उनके बाद उनकी वल्दियत को वैद्य बालेंदु प्रकाश द्वारा बखूबी से निभाया जा रहा है। जब मुझे यह मालूम हुआ कि वैद्य बालेंदु प्रकाश द्वारा वर्ष 1997 से अब तक 1200 मरीजों का इसी बीमारी का सफल इलाज कर चुके हैं तो मुझे अपनी बेटी के स्वस्थ जीवन की आशा जाग उठी। मैने तुरंत उत्तराखंड में सम्पर्क किया और अपनी बेटी को वैद्य जी के पास ले गया। वैद्य जी ने बेटी को देखा और उसकी बीमारी का इलाज शुरू कर दिया। वैद्य जी के सफल इलाज और मेरे परिवार की कड़ी मेहनत से एक साल में मेरी बेटी स्वस्थ हो गई। आज मेरी बेटी पहले की तरह सामान्य जिंदगी जी रही है। वैद्य बालेंदु प्रकाश के सफल इलाज ने मेरे घर में पहले की तरह खुशियां लौटाई हैं। मेरी बेटी फिर से अपनी जिंदगी को खुशियों के साथ जी रही है, और हमे यह देखकर बेहद तसल्ली हो रही है, आखिर खुशहाल संतान ही हर मां-बाप का सुख है।
बता दें कि वैद्य बालेंदु प्रकाश ने वर्ष 1997 में एक्यूट प्रोमाइलोसिटिक ल्यूकेमिया (एक तरह का ब्लड कैंसर) के उपचार की आयुर्वेदिक दवा पर शोध किया था। यह एक बेहद गंभीर बीमारी है, जिसमें प्लेटलेट्स की कमी और ब्लीडिंग के कारण ज्यादातर मरीजों की मौत हो जाती है। उनके पिता ने 1982 में उस दवा से एक बच्चे का उपचार किया था, जो अब भी जीवित है। वैद्य बालेंदु ने उसी दवा से कई मरीजों का उपचार किया। उनके अनुरोध पर सरकार ने उनके शोध प्रोजेक्ट को मंजूरी दी। जिसके तहत 3.30 लाख रुपये की धनराशि स्वीकृत की गई और 15 मरीजों का उपचार करने को कहा गया। 90 दिन के उपचार के दौरान चार मरीजों की मौत हो गई, लेकिन जिन 11 मरीजों ने 90 दिन का उपचार करवाया, वह सभी जीवित रहे। वैद्य बालेंदु प्रकाश जी ने चिकित्सा के क्षेत्र में बहुत ही शानदार काम किया है।