साहित्य दर्पण की मासिक काव्य संध्या में हुआ अपूर्वा कुशवाहा के कविता संग्रह मानस पटल का विमोचन

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विकास अग्रवाल
काशीपुर (महानाद) : साहित्य दर्पण की मासिक काव्य संध्या का आयोजन डॉ. पुनीता कुशवाहा के सौजन्य से प्रेम दीप होटल, रामनगर रोड, में आयोजित की गई। साथ ही उनकी सुपुत्री अपूर्वा कुशवाहा घनाक्षरी के द्वितीय कविता संग्रह मानस पटल का विमोचन भी किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. यशपाल सिंह रावत तथा संचालन श्री ओइ्म शरण आर्य चंचल ने किया। कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती के चित्र का अनावरण/माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ सरस्वती वंदना अनुश्री भारद्वाज ने मधुर स्वर में प्रस्तुत की।

कवियों ने अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना प्रस्तुत कर सभी का मन मोह लिया।
कवि जितेंद्र कुमार कटियार- लड़ सकती हूं मैं भी तुमसे, दुर्गा की अवतारी हूं, ना समझो तुम अबला मुझको, मैं हिंदुस्तां की नारी हूं।
कवि कैलाश चंद्र यादव- तेरी हर बात अच्छी है तेरा हर काम अच्छा है, मगर कैसे कह दूं मैं की दिल का तू सच्चा है।
कवि मुनेश कुमार शर्मा- कर्म आदमी को इंसान बना देते हैं, कर्म ही है उसको शैतान बना देते हैं।
कवि डा. यशपाल रावत पथिक- अभिलाषा हो आशा तुम हो, मेरे मन की भाषा तुम हो, अल्लाहादित करती हर सुख से, सुख की अजब पिपासा तुम हो।
कवि ओम शरण आर्य चंचल- वाटिका में चलो घूम आये प्रिये, क्या पता यों समय फिर मिले ना मिले, गीत हर प्यार का आओ गायें प्रिये क्या पता यों समय फिर मिले ना मिले।
कवि कुमार विवेक मानस- जरा जरा सी बातों पर परिवार बदलते देखे हैं, खून के गहरे रिश्तों के व्यवहार बदलते देखे हैं।
कवि प्रतोष मिश्रा-हमको ये लगता है हम ज्ञानी हो गए, जब से हमने बेटी पाई हम अभिमानी हो गए।
कवि गंगाराम विमल- आपकी राहों पर निगाहें गढ़ा के रोता रहा, आंखें पथरा गई हैं इसका मूल्य क्या देंगे।
कवि शेष कुमार सितारा-आज हमारे मन ने सोचा कुछ पिछली अपनी यादों में जी लें।
कवि हेमचंद्र जोशी- अब किसको याद करके बुलाते हो पिताजी, मेरे बिना आप कैसे रह पाते हो पिताजी।
कवि वीके मिश्रा- संगीत का मेला है तुम गीत बन के आना, आकर के फिर ना जा बस दिल में समा जाना।
कवियित्री डॉ. सविता पांडे- आग जलाओ तपन नहीं हो, वर्पन हो पर घर्षण ना हो, दही जमे और माखन निकले, पर उसमें कोई मंथन ना हो। कवि राम अवतार वर्मा राम- रोते-रोते कट गए रास्ते हंसते-हंसते जाना है और ना कोई दूजी इच्छा एक तुझे ही पाना है।
कवि कैलाश जोशी पर्वत- सुकवि रे गीत लिख ऐसा कि उर उत्साह भर जाए, पढ़े जन शब्द जो तेरे दुखों को दूर कर जाए।
कवियित्री डॉ. रीता सचान- सृष्टि की संरचना नवजीवन जनना छूट गया कुछ मगर आगे है बढ़ाना, झंझावातों से न कभी हारी हूं शक्ति हूं उससे पहले मैं एक नारी हूं।
कवियित्री अनुश्री भारद्वाज- है धरोहर बन गए शब्द मेरे अमृत्व के, मैं सदा जीवित रहूंगी कृतियों में सदा मेरे।
कवियित्री मंजुल मिश्रा – स्वप्न जो संजोये मैंने आंखों की चादर में, भर दिया तूने उस मंथन को एक छोटी सी गागर में।

काव्य संध्या में बीपी कोटनाला, बीडी पांडे, डॉ. इशा रावत, डॉ. संतोष कुमार पंत, डॉ. स्नेह लता मौर्या, रागिनी शर्मा, कुमकुम सक्सेना, रचना माथुर, किरण चौहान, विनोद भगत, नवल सारस्वत, विश्वास कुशवाहा, सावित्री कुशवाहा, ज्ञानेंद्र कुमार सक्सेना, डॉ. महेंद्र जोशी, अर्चना, आरती कुशवाहा, ज्ञानेंद्र सिंह हिंदुस्तानी, राजेंद्र सिंह रावत, डॉ. शकीबा जबीन सिद्दीकी, डॉ. रीता देवी आदि उपस्थित रहे।

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