दरअसल खुड़बुड़ा स्थित गुरु नानक इंटर कालेज में शिक्षिका रहीं पुष्पा वर्ष 1999 में रिटायर हो गईं थीं। समाज सेवा उनका ध्येय रहा और इस कारण शादी भी नहीं की। सेवानिवृत्ति के बाद वर्ष 2011 में उन्होंने 25 लाख रुपये की रकम दून अस्पताल को दान की। यह रकम एक एफडी के रूप में अस्पताल को दी गई। दान की शर्त के मुताबिक अस्पताल मूल रकम खर्च नहीं करेगा। जबकि इससे मिलने वाला सालाना ब्याज मरीजों की सुविधाओं में खर्च किया जाएगा। होता यह था कि जरूरत के मुताबिक अस्पताल प्रशासन चिकित्सा प्रबंधन समिति की बैठक में प्रस्ताव रखता था।
समिति की मंजूरी के बाद यह रकम अस्पताल की छोटी-छोटी जरूरत पर खर्च की जाती थी। लेकिन अस्पताल के मेडिकल कालेज बन जाने के बाद प्रबंधन समिति भंग हो गई और नई व्यवस्था में इसका अस्तित्व ही खत्म हो गया। ऐसे में अस्पताल इस रकम को खर्च नहीं कर पाया और पैसा बैंक में ही पड़ा रहा। इस बीच दानकर्ता ने यह रकम जिला चिकित्सालय को हस्तांतरित करने की इच्छा जताई। सालभर के व्यवधान के बाद मेडिकल कालेज में यूजर चार्ज को लेकर समिति अस्तित्व में आई। तब कहीं ब्याज की यह रकम खर्च होने लगी। अभी इस रकम पर छमाही करीब 53 हजार रुपये ब्याज आता है।
पुष्पा का आरोप है कि उनके केयरटेकर को अस्पताल खर्च की जानकारी नहीं दे रहा था। जिस उद्देश्य से रकम दी गई वह पूरा नहीं हुआ।
इधर, मेडिकल कालेज के प्राचार्य डा. आशुतोष सयाना का कहना है कि प्रबंधन समिति भंग होने और नई समिति गठित होने में सालभर का समय लगा। बस इतने ही वक्त में रकम खर्च नहीं हुई। बाकि वक्त पैसा अस्पताल की छोटी-छोटी जरूरत पर खर्च किया जाता रहा है। आगे जो आदेश मिलेंगे उसी अनुरूप कार्रवाई की जाएगी।