नई दिल्ली (महानाद) : उद्धव ठाकरे द्वारा मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना शिवसेना सरकार के लिए घाटे का सौदा हो गया और शिंदे-भाजपा सरकार बच गई।
पांच जजों की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि उद्धव ठाकरे ने अपने आप इस्तीफा न दिया होता तो दोबारा बहाल कर देते।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि उस समय विधानसभा सत्र नहीं चल रहा था, कोई अविश्वास प्रस्ताव भी विपक्ष ने नहीं दिया था, जो प्रस्ताव राज्यपाल को मिले, उनसे साबित नहीं होता था कि वो सब विधायक सरकार से समर्थन वापस लेने जा रहे हैं। कोर्ट ने राज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि उनसे उम्मीद नहीं की जाती कि वो राजनीति का हिस्सा बने। यदि पार्टी में कोई अंदरूनी विवाद है तो उसे सुलझाने का जरिया फ्लोर टेस्ट नहीं हो सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि व्हिप जारी करने का अधिकार राजनीतिक पार्टी के विधायक दल के नेता को है। स्पीकर की ओर से गोगावले को चीफ व्हिप नियुक्त करना गलत था। कोर्ट ने तय किया कि अगर स्पीकर के खिलाफ हटाने का प्रस्ताव लंबित है तो वे विधायकों की अयोग्यता पर फैसला नहीं ले सकते।
उधर, शिवसेना के चुनाव चिन्ह को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिंबल निर्धारित करने से चुनाव आयोग को नहीं रोका जा सकता। आयोग को उसकी संविधानिक जिम्मेदारी निभाने से नहीं रोका जा सकता। यदि राज्यपाल को लगता है कि सरकार अविश्वास मत से बचना चाहती है तो उन्हें फ्लोर टेस्ट का आदेश देने का अधिकार है, तब सरकार की सहमति की ज़रूरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पार्टी में टूट होने पर कोई गुट अयोग्यता की कार्रवाई से इस आधार पर नहीं बच सकता कि वो ही असली पार्टी है। संविधान संशोधन के बाद पार्टी में टूट होने पर संख्याबल का हवाला देकर अयोग्यता से नहीं बचा जा सकता।