काशीपुर : साहित्य दर्पण की स्मारिका का विमोचन

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विकास अग्रवाल
काशीपुर (महानाद) : श्री अग्रवाल सभा भवन में साहित्य दर्पण की स्मारिका का विमोचन एवं कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. यशपाल रावत तथा मुख्य अतिथि प्रमोद सिंह तोमर ने किया। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि अग्रवाल सभा के अध्यक्ष मनोज अग्रवाल, सावित्री देवी एवं गेंदालाल निर्जन रहे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. सुरेंद्र शर्मा, मधुर एवं शेष कुमार सितारा ने किया।

कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती के चित्र का अनावरण माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन व सरस्वती वंदना के साथ किया गया। मां सरस्वती की वंदना सोमपाल प्रजापति ने मधुर स्वर में प्रस्तुत की। कवियों ने अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना प्रस्तुत कर सभी का मन मोह लिया।

कार्यक्रम में स्व. डॉ. लक्ष्मी नारायण कुशवाहा एवं स्व. अपूर्वा कुशवाहा की याद में सावित्री देवी एवं डॉ. पुनीता कुशवाहा एवं उनके परिवार ने बीपी कोटनाला एवं अंशिका जैन को शॉल ओढ़ाकर, प्रतीक चिन्ह एवं नकद धनराशि देकर सम्मानित किया। वहीं संस्था के वरिष्ठ कव एवं संरक्षक बीपी कोटनाला ने नकद धनराशि को संस्था को ही समर्पित कर दिया।

वहीं, साहित्य दर्पण संस्था ने अतिथि कवि गेंदालाल निर्जन एवं डॉ. जयंत शाह को शॉल ओढ़ाकर, प्रतीक चिन्ह व प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया। साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट एवं सराहनीय योगदान के लिए डॉ. सुरेंद्र शर्मा मधुर, कैलाश चंद्र यादव एवं ओम शरण आर्य चंचल को भी शॉल ओढ़ाकर, प्रशस्ति पत्र एवं प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।

कवि सम्मेलन के दौरान निम्न कवियों ने अपनी रचनायें प्रस्तुत कीं –
कवि जितेंद्र कुमार कटियार -कुछ तुम भी कहो कुछ मैं भी कहूं तो कुछ पल खुशी के मिल जाएंगे।
कवि कैलाश चंद्र यादव-दिलवाले मोहब्बत जाने ना तू, करता शरारत काहे को तू।
कवि मुनेश कुमार शर्मा-चेहरे पर आदमी के हैं चेहरे लगे, कैसे आदमी की फिर पहचान हो।
कवि डॉ. यशपाल सिंह रावत पथिक- तलाशता रहा हूं जो राह कब से मैं, मैं वह राह पा गया हूं तुम्हें चाहने के बाद।
कवि शेष कुमार सितारा- आओ मिलकर दीप जलाएं जय बोले जय भारती, एक साथ सब थाल सजाकर करलें मां की आरती।
कवि शकुन सक्सेना राही अंजाना-छोटी-छोटी बातों पर सियासत नजर आती है, लोगों की बदली हुई आदत नजर आती है।
कवि सोमपाल सिंह प्रजापति सोम- आसमान में उड़ने वाले समझ तुझे अब जाना है, नहीं ठिकाना है वहां कोई लौट जमीन पर ही आना है।


कवि ओम शरण आर्य चंचल- मिलती है मनभावन सुगंध आभारी हर संसारी है, कहते हैं सब प्रिय तुलसी की पत्ती-पत्ती गुणकारी है।
कवि बीपी कोटनाला- मत करो परवाह जमाने की, तुमको तो प्राण प्रतिष्ठा करनी है, छू लिया जिस पत्थर को भी तुमने, भगवान वही बन जाता है।
कवियित्री डॉक्टर पुनीता कुशवाहा- हाय हेलो में सिमटने वाले, कब नमस्कार करने लगे, पता ही नहीं चला।
कवि सुरेंद्र भारद्वाज- जैसा भी हूं मैं अपने लिए अच्छा हूं, बुरा नहीं हूं मैं, विश्वास दिलाना छोड़ दिया।
कवि प्रदोष मिश्रा- मां तो मां होती है, उसमें चालाकी कहां होती है।
कवि कुमार विवेक मानस- दीवारों को बात सुनाना चाहता हूं, लफ़्ज़ों को मैं गीत बनाना चाहता हूं।
कवि डॉ. जयंत शाह- ज्यादा बोलोगे तो कल के अखबार में छप जाएगा, अबे सरकारी फाइल में पैदा हुआ सरकारी फाइल में दब जाएगा।
कवि राम प्रसाद अनुरागी- प्यार मोहब्बत की बातें सब झूठी लगती हैं, सपनों की मुलाकातें सब अच्छी लगती हैं।
कवि गंगाराम विमल- लाल स्वर्णिम रश्मियां आकाश से मुस्कुरा रहीं, लग रही आनंद की पावन छटा ये छा रही।
कवि वीके मिश्रा- यह सोच के पत्थर के सनम मैंने तरशे, कि इंसान ने इंसान की कब बात सुनी है।
कवि डॉ. राजेश विश्नोई- तुम सिपाही सीमा के मैं सिपाही कलम का, तुम निगहबानी करते हो सोते की, मैं सोतों को जगाता हूं।
कवि अनुराग चौधरी- लो शपथ चलो उस पथ जिसमें बदनाम हमारा नाम ना हो।
कवि डॉ. ओम राज सिंह प्रजापति- मुश्किलों से भी निकलना सीखिए, जगमगाना हो तो जलना सीखिए।
कवियित्री कुमारी अंशिका जैन-राम मंदिर की शोभा जिस दिन हर ज्वलंत लो बढ़ाएगी, उस दिन पूर्वजों की हर तपस्या सफल हो जाएगी।
कवियित्री मंजुल मिश्रा- काला, काला, काला सर्वत्र पसरा भयावह कला।

काव्य संध्या में डॉ. इशा रावत, सुरेश शर्मा, अमरनाथ प्रशांत, नीलिमा, राजशेखर, केएन पन्त, अनुज जैन, विशाल, राजू, बीडी पांडे, अनुश्री भारद्वाज, संजू कटियार, सावित्री देवी, शैली कटियार, नितिन कटियार, सनत पैगिया, राजेंद्र सिंह रावत, विश्वजीत श्रीवास्तव, शशि बाला गुप्ता आदि उपस्थित रहे।

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