बाजपुर : प्रथम नगर पालिकाध्यक्ष योगराज पासी का निधन

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बाजपुर (महानाद) : पूर्व सांसद बलराज पासी के पिता लोकतंत्र सेनानी, उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, बाजपुर नगर पालिका के प्रथम नगर पालिका अध्यक्ष तथा भाजपा के पूर्व जिला अध्यक्ष योगराज पासी का निधन हो गया।

पासी का अंतिम संस्कार आज दिनांक 23.08.2023, बुधवार को दोपहर 3 बजे मोक्ष धाम, बाजपुर में होगा।

आपको बता दें कि योगराज पासी का जन्म ननकाना साहिब ,ग्राम घोड़ा चक, (वर्तमान में पाकिस्तान) में हुआ था। कक्षा 4 तक की पढ़ाई गांव के प्राथमिक विद्यालय जबकि आगे की चक नंबर-सात में हुई। इस बीच आजादी की लड़ाई को लेकर बच्चे अक्सर तिरंगे के साथ प्रदर्शन करते थे। संघ प्रचारक रामनाथ की प्रेरणा से महज 11 साल की उम्र में वे संघ कार्यकर्ता बन गये थे। 3 जून 1947 को बंटवारे के चलते उनका गांव पाकिस्तान में चला गया। खून-खराबे के बीच अपने पिता जयराम व अन्य परिजनों के साथ पैदल काफिले के माध्यम से अमृतसर आ गए। पढ़ाई आदि करने तथा वहां कोई रोजगार नहीं मिलने पर मेरठ आ गए। यहां रिक्शा चलाकर अपने जीवन का निर्वहन किया, लेकिन संघ का कार्य करते रहे। स्थिति सुधरने पर 60 के दशक में तराई में आ गए।

जून 1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रायबरेली लोकसभा सीट से इंदिरा गांधी की जीत को अवैध करार दे दिया। जिसके बाद देश में आंतरिक आपातकाल थोप दिया गया। जिस समय इमरजेंसी का एलान हुआ वे बरेली में अपना इलाज करा रहे थे। संघ के आदेश पर रात में अपने यहां से स्टेंसिल मशीन से पंपलेट बनाते और सुबह ट्रेनों, बसों में गोपाल कोच्छड़ आदि बांट आते थे। गुप्तचर विभाग उन्हें बीमार जान कुछ दिन शांत रहा।

लेकिन फिर वाल्मीकि जयंती के दिन अचानक विजयपाल सिंह दरोगा व दो-तीन सिपाही दुकान पर पहुंचे और नाम पूछने के साथ ही पीटते हुए थाने ले गए। अगले दिन डीआइआर के तहत आरोपी बनाते हुए जेल में बंद कर दिया गया। तीन माह 22 दिन बाद उन्हें जमानत मिल गई।

बाहर आए तो उनके साथ जेल में बंद अल्मोड़ा के संघ प्रचारक सुरेश पांडेय ने एक पत्र देकर किसी को देने की बात कही। घर आकर पत्र देने चल पड़े। अल्मोड़ा पहुंचकर जिस व्यक्ति से उन्होंने पता पूछा, वह सीआइडी का दारोगा निकला। किसी तरह बचकर निकल आए। अपनी डीआइआर की तारीख पर जुलाई 1976 में नैनीताल कोर्ट पंहुचते ही राष्ट्र विरोधी गतिविधियां संचालित करने के आरोप में बंद कर दिया गया और अगले ही दिन मीसा लगाने की जानकारी दी गई। 1977 में आम चुनाव की घोषणा हो गई और सभी जेल बंदियों को रिहा कर दिया गया।

बंदीके दौरान योगराज पासी कोे जेल में हर दिन यातनाएं दी जातीं थीं। पशुओं से भी बदतर भोजन फेंक कर दिया जाता था। विरोध करने पर वह भी नहीं मिलता था। एक आदमी के रहने लायक काल कोठरी में पांच से छह आदमी बंद किए जाते थे। ऐसे में बैठे-बैठे ही समय काटना पड़ता था।

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