मथुरा (महानाद) : हर साल की तरह इस साल भी मथुरा के फालैन में कौशिक परिवार के पंडे ने प्रहलाद जी की माला पहनकर जलती होलिका में से सुरक्षित बाहर आकर भगवान प्रहलाद का आशीर्वाद लिया।
शुक्रवार की प्रातः 4 बजकर 37 मिनट पर फालैन में लग्नानुसार तप में तल्लीन मोनू पंडा ने अखंड दीपक की लौ पर होलिका से गुजरने की इजाजत मांगी। होलिका में प्रवेश की लग्न प्रारंभ होते ही श्रद्धालुओं का सैलाब होलिका के आसपास उमड़ पड़ा। मंत्रोच्चार के बीच मोनू पंडा बार-बार दीपक पर हाथ रख होलिका में प्रवेश की इजाजत मांग रहे थे। लगभग सवा घंटे बाद दीपक की लौ से मोनू पंडा को शीतलता का आभास हुआ तो उन्होंने प्रह्लादजी महाराज का जयघोष किया।
और फिर मोनू पंडा का इशारा मिलते ही होलिका में अग्नि प्रवेश कराई गई। कुछ ही देर में धधक उठी होलिका के ताप से जब हर कोई दूर हो गया तब प्रह्लादजी की माला गले में धारण कर मोनू पंडा ने प्रह्लाद कुंड में स्नान कर होलिका की ओर दौड़ लगा दी। 15 फुट ऊंची होलिका पर कुल 19 कदम रखकर सकुशल प्रह्लादजी के मंदिर में जा पहुंचे। मोनू पंडा के सकुशल मंदिर में पहुंचते ही भक्तों के सैलाब द्वारा लगाये गये भक्त वत्सल भगवान के जयघोष से पूरा वातावरण गूंज उठा।
इस मौके पर उप जिलाधिकारी कमलेश गोयल, पुलिस क्षेत्राधिकारी वरुण कुमार, कोतवाल संजय त्यागी, लेखपाल अजित सिंह आदि व्यवस्थाओं में जुटे रहे।
आपको बता दें कि होलिका-दहन से संबंधित अनेकों कथाएं प्रचलित हैं। वहीं मथुरा के ‘फालैन’ गांव का होलिका दहन विशेष है। यहां होलिका की धधकती आग में स्थानीय पंडे प्रवेश करते हैं और सकुशल बाहर आते हैं।
कोसी से लगभग 58 किमी दूर ‘फालैन’ गांव में होलिका दहन बड़े ही अनूठे अंदाज में किया जाता है। फालैन गांव के आसपास के पांच गांवों की होली संयुक्त रूप फालैन में मनाई जाती है। मंदिर में पूजा-अर्चना और प्रह्लाद कुण्ड में आचमन करने के पश्चात 30 फुट व्यास के दायरे में होलिका सजायी जाती है, जिसकी ऊंचाई 10 से 15 फुट की होती है. शुभ मुहुर्त में इसमें अग्नि प्रज्ज्वलित करने के पश्चात पंडा होलिका में प्रवेश करते हैं। मान्यतानुसार इस होलिका में केवल कौशिक परिवार का सदस्य ही प्रवेश कर सकता है। कौशिक परिवार के जिस सदस्य को जलती होलिका में प्रवेश करना होता है, वह फाल्गुन शुक्ल एकादशी से ही अन्न का परित्याग करने के पश्चात चतुर्दशी के दिन प्रह्लाद कुण्ड में स्नान कर मंदिर में पूजा करता है।
गांव के एक पण्डे द्वारा भक्त प्रह्लाद के आशीर्वाद से सुसज्जित माला को कौशिक परिवार के सदस्य को धारण करवाया जाता है। इसके पश्चात ही वह होलिका की पवित्र अग्नि में प्रवेश करता है और धधकते अंगारों पर चलते हुए सकुशल बाहर निकल आता है। इस दौरान सारा गांव ढोल-नगाड़ों और रसियों की आवाज़ से गुंजायमान हो उठता है। आस्था और अदम्य साहस का अनोखा करिश्मा देख यहां मौजूद श्रद्धालु दांतो तले उंगलियां दबा लेते हैं।