उत्तराखंड : कैसे लौट के आयें अपने गांव में, ना है सड़क, ना है पानी

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विकास अग्रवाल की विशेष रिपोर्ट
महानाद डेस्क : अपने सपनों का उत्तराखंड बनाने के लिए यहां के लोगों ने लंबी लड़ाई लड़ी। कितनों ने बलिदान दिया। और आखिरकार वर्ष 2000 में उत्तराखंड अपने अस्तित्व में आया। राज्य बनने के बाद काम धंधों की तलाश में पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों ने मैदानी क्षेत्रों का रुख करना शुरु कर दिया। और धीरे-धीरे पर्वतीय राज्य उत्तराखंड के पर्वत लोगों से सूने हो गये। सरकारें भी ;कांग्रेस-भाजपाद्ध भी अपनी मस्ती में मस्त रहीं और पर्वतीय क्षेत्रों में रोजगार, सड़क, बिजली, पानी आदि जैसी मूलभूत सुविधाओं का विकास करने में नाकाम रहीं। फिर अचानक पता चला कि लोग पर्वतीय क्षेत्रों से पलायन कर गये हैं। तो 2017 में भाजपा सरकार ने पलायन आयोग का गठन किया और अब पलायन रोकने और लोगों को फिर से उनके गांव में बसाने के अभियान में जुटी हैं।

लेकिन शहर की सुख-सुविधायें छाड़कर कोई अपने गांव लौटे भी तो कैसे लौटे? पर्वतीय क्षेत्र के बहुत से लोगों का सपना है कि वे अपना समय एक बार फिर से अपने पुश्तैनी घर में गुजारें। लेकिन सरकारों द्वारा उनके गांव तक पहुंचने के लिए मूलभूत सुविधाओं का विकास तो किया ही नहीं गया है।

ऐसा ही दर्द है डिफेंस मिनिस्ट्री से असिस्टेंट डायरेक्टर के पद से रिटायर हुए वर्तमान में देहरादून रहने वाले सुरेन्द्र प्रसाद डोबरियाल का।

डोबरियाल ने ‘महानाद’ को अपनी व्यथा के बारे में बताया है। उन्हीं के शब्दों में – ‘मैं एक सीनियर सिटीजन हूँ और मैं अपने पैतृक गांव रजखिल, कुल्हाड़ (सतपुली), विधानसभा चौबट्टाखाल, वि.खं. द्वारीखाल, जिला पौड़ी गढ़वाल में जाना चाहता हूँ। हाल ही में मैंने अपना टूटे हुए मकान को अनेक कठिनाईयों के साथ बनाया है, किन्तु मुख्य सड़क मार्ग से मेरा गाँव 3 किलोमीटर है। सारा रास्ता चढ़ाई का है। सन् 2007 में गांव के नीचे आधा किलोमीटर दूर तक सड़क निर्माण किया गया था। किन्तु आज भी सड़क का हाल बहुत खराब हालत में है। अभी तक सड़क का डामरीकरण न होने से बेहाल है। इस हालत में महोदय मैं कैसे गाँव जाऊं, पानी की दशा भी गाँव में अतयंत दयनीय है, हां गाँव में बिजली है। अधिकतर गांव में कोई विकास नहीं हुआ है। हम आज पलायन रोकने के लिए कदम बढ़ा रहे हैं पर इस हालत में कैसे रह सकते हैं।’

डोबरियाल ने बताया कि विगत 25 अगस्त 2021 को सड़क निर्माण के संबंध में पीडब्लूडी के चीफ इंजीनियर ने प्रमुख सचिव को पत्र लिखकर 245.61 लाख रुपये की मांग की थी, लेकिन आज तक कोई पैसा सड़क निर्माण के लिए नहीं मिला है।

ये तो एक व्यक्ति का दर्द है जो चाहकर भी अपने गांव नहीं जा पा रहे हैं। लेकिन न जाने कितने लोग हैं जो अपने पुश्तैनी गांव में लौटना चाहते हैं लेकिन गांव में मूलभूत सुविधायें न होने के कारण अपने गांव को जा नहीं पा रहे हैं।

 

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