डोबरा-चांठी संघर्ष समिति द्वारा टिहरी सांसद माला राज्य लक्ष्मी शाह के सम्मान में आयोजित आभार सभा सम्पन्न

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सी एम पपनै
नई दिल्ली (महानाद) : डोबरा-चांठी संघर्ष समिति द्वारा, प्रेस क्लब मे आयोजित आभार सभा के अंतर्गत, टिहरी सांसद माला राज्य लक्ष्मी शाह का, डोबरा-चांठी झूला पुल के निर्माण में, उनके द्वारा दिए गए महत्वपूर्ण योगदान पर, आभार व्यक्त कर उत्तराखंड व देश की मीडिया से जुड़े प्रबुद्ध पत्रकारों, उत्तराखंड के सामाजिक व अन्य सरोकारों से जुडे प्रबुद्ध जनों की उपस्थिति के मध्य, वरिष्ठ पत्रकार उमाकांत लखेड़ा, सुनील नेगी इत्यादि के हाथों स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया।

आयोजित आभार सभा, मुख्य संयोजक, राजेश्वर प्रसाद पैन्यूली द्वारा, मुख्य सम्बोधन के तहत व्यक्त किया गया, डोबरा-चांठी पुल स्थानीय जनता के संघर्ष का प्रतीक है। पुल निर्माण में हुई देरी से, स्थापित सरकारों और नेताओ की कार्यशैली की पोल खुली। नब्बे करोड़ मे बनने वाला पुल, तीन सौ करोड़ मे बना। राजेश्वर प्रसाद पैन्यूली द्वारा व्यक्त किया गया, प्रतापनगर क्षेत्र की विकास की लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। टिहरी बांध बनने से, प्रतापनगर की जनता पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ा है। क्षेत्र पिछड़ गया है। निर्मित पुल पर टोल टैक्स लगाया जाना मंजूर नहीं है। सरकार को चाहिए, वे स्थानीय लोगों को, बिजली पानी के बिलों में रियायत दे। प्रतापनगर ब्लाक विकास के लिए विशेष पैकेज की घोषणा करे।

डोबरा-चांठी संघर्ष समिति से जुड़े वक्ताओ द्वारा, टिहरी सांसद माला राज्य लक्ष्मी शाह का आभार, यह कह, व्यक्त किया गया कि सांसद द्वारा अनेको बार, पुल निर्माण में हुई देरी का मसला, संसद की पटल पर उठा कर, सरकार का ध्यान, स्थानीय लोगों की विकट समस्याओं व दिक्कतों पर खींचा गया, जिसके परिणामस्वरूप पुल का निर्माण कार्य पूरा हो पाया। स्थानीय जन को पुल बन जाने से राहत मिली।

मुख्य अतिथि, टिहरी सांसद माला राज्य लक्ष्मी शाह द्वारा अपने संबोधन में व्यक्त किया गया कि डोबरा-चांठी पुल बनाओ संघर्ष समिति द्वारा इस मसले को जब उनके संज्ञान में लाया गया, उसके बाद पुल के अतिशीघ्र निर्माण को लेकर वे मुखर रहीं। जितना एक स्थानीय जनप्रतिनिधि होने के नाते कर सकती थीं, वह कर पाई।

अवलोकन कर ज्ञात होता है, डोबरा-चांठी झूला पुल निर्माण कार्य शुरुआती दौर से ही विवादांे में रहा। करीब तीन लाख स्थानीय ग्रामीण, 2005 में, टिहरी झील बन जाने के बाद से, अलग-थलग पड़ गया था। उनके आवागमन के रास्ते बंद हो गए थे। स्थानीय जन को पचास-साठ किलोमीटर अतिरिक्त सफर तय करना पड़ रहा था। प्रभावितों द्वारा लम्बे समय तक धरना प्रदर्शन भी किया गया था।

भारी जन दवाब में तत्कालीन मुख्य मंत्री नारायण दत्त तिवारी द्वारा 2006 मे भागीरथी नदी पर पुल निर्माण कार्य शुरू करवाया गया था। जिसे दो वर्ष मे बन कर तैयार होना था। जो पुल पहले 592 मीटर लम्बाई का बनना था, वह आईआईटी रुड़की इंजीनियरो के द्वारा 725 मीटर लम्बाई का डिजाइन करवाया गया, डिजाइन एक साथ न देकर, विभिन्न चरणों में दिया गया। जिससे पुल की लागत बढ़ी, कार्य में विलंब हुआ। फिर उक्त तैयार डिजाइन को क्राॅस चेकिंग हेतु, 2012 मे आईआईटी खडकपुर भेजा गया। जहा रुड़की मे बना डिजाइन फेल कर दिया गया। 2014 में दस करोड़ की लागत से, कोरियाई योसिन इंजीनियरिंग कार्पोरेशन कंसल्टैंट से डिजाइन तैयार करवाया गया।

इससे पूर्व पुल निर्माण के नाम पर मात्र, चार टावर और 260 मीटर एप्रोच पुल बनाने मे ही, एक अरब पच्चीस करोड़ रूपए खर्च कर दिए गए थे। फरवरी 2015 मे पुनः कार्य शुरू करवाया गया था जिसका कार्य समाप्ति का लक्ष्य अगस्त, 2017 रखा गया था। विभिन्न कारणों से कार्य पूरा नहीं हो पाया था। 2018 मे निर्माण के दौरान मुख्य पुल के तीन सस्पेंडर टूट गए थे। जिससे निर्माणाधीन पुल विवादों में घिर गया था।

2019 में मुख्य पुल, आपस में जो़डा गया था। 4 अक्टूबर 2019 को तीन अरब की लागत से निर्मित सोलह टन भार सहन करने की क्षमता वाले एशिया के सबसे बड़े झूला पुल का ट्रायल किया गया था। 8 नवम्बर 2020 को तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत द्वारा उक्त 1.948 किलोमीटर लम्बाई वाले टिहरी व प्रतापनगर को जोड़ने वाले झूला पुल का श्रीगणेश कर दिया गया था।

725 मीटर लम्बाई वाला डोबरा-चांठी पुल, विश्व प्रसिद्ध टिहरी झील पर, समुद्र तल से, 850 मीटर की ऊँचाई पर निर्मित सिंगल लेन का देश का सबसे पहला झूला पुल व भारी वाहन चलाने योग्य बना है। पुल की कुल लम्बाई 725 मीटर में 440 मीटर झूला पुल है। 260 मीटर डोबरा साइड और 25 मीटर का एप्रोच पुल, चांठी की तरफ निर्मित है। पुल की चैड़ाई सात मीटर है। जिस पर साढ़े पांच मीटर पर वाहन, बाकी डेढ़ मीटर पर पुल के दोनों तरफ बराबर फुटपाथ निर्मित किए गए हैं।

विगत 14 वर्षो से प्रतापनगर ब्लाक के करीब तीन लाख लोग पुल सुविधा की बाट जोह रहे थे। पुल निर्मित हो जाने के बाद, निश्चय ही स्थानीय ग्रामीणों को आवागमन के कष्टपूर्ण संकट से निजात जरूर मिली है, परंतु इन विगत वर्षों में उनका कितना आर्थिक नुकसान हुआ है, कष्ट झेला है, समझा जा सकता है। ऐसे मे आयोजित आभार सभा मुख्य संयोजक, राजेश्वर प्रसाद पैन्यूली का वक्तव्य सटीक प्रतीत होता है कि ‘प्रतापनगर क्षेत्र की विकास की लडाई अभी खत्म नहीं हुई है। संघर्ष जारी रहेगा।’

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