काशीपुर : साहित्य दर्पण की मासिक काव्य संध्या संपन्न

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विकास अग्रवाल
काशीपुर (महानाद) : साहित्य दर्पण की मासिक काव्य संध्या का आयोजन शेष कुमार सितारा के सौजन्य से पंडित दीनदयाल पार्क में किया गया। काव्य संध्या की अध्यक्षता डॉ. यशपाल सिंह रावत ‘पथिक’ एवं संचालन ओम शरण आर्य चंचल ने किया।

कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती के चित्र का अनावरण, माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन व सरस्वती वंदना के साथ किया गया। कवियों ने अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना प्रस्तुत कर सभी का मन मोह लिया।
कवि कैलाश चंद्र यादव -मौसम आशिकाना आ मेरे सांवरिया हवाओं के संग संग उड़े मेरी चुनरिया।
कवि जितेंद्र कुमार कटियार-हम अश्क छुपा लेंगे, हम दर्द को सह लेंगे, हम तेरी खुशी के लिए हम तुझको ही भुला देंगे।
कवि डॉ. यशपाल रावत पथिक- बीत गया सो भूलो प्यारे आज ही कुछ कर दिखलाओ, आगत छोड़ दो प्रभु पर जो पाना है आज ही पाओ।
कवि ओम शरण आर्य चंचल- आदमी अनहोनिया करने लगा जिंदगी में दंभ कुछ भरने लगा इस तरह से स्वार्थ ने घेरा उसे चेहरे पर चेहरा धरने लगा।
कवि शेष कुमार सितारा -आओ मिलकर दीप जलाएं जय भोले जय भारती, एक बार थाल सजा के कर लो मां की आरती।
कवि गंगाराम विमल- सितम को बना अपना मेहमान लेंगे जमाने के हर गम को हम बांट लेंगे।
कवि मुनेश कुमार शर्मा -कभी सुबह तो कभी शाम हो गई है आंखें प्यार की खोज में नाकाम हो गई आंखें।
कवि राम प्रसाद अनुरागी- गम देने वाला साकी अभी और पिलाना बाकी था नजरों से पिलाया है तूने होठों से पिलाना बाकी था।
कवि सोमपाल सिंह प्रजापति- वह हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई कहते भाई-भाई हैं इनकी हरकत को देख देख भारत माता शरमाई है।
कवि सुरेंद्र अग्रवाल- मां की ममता से बढ़कर इस दुनिया में कुछ भी नहीं है, तेरी ममता आसमान और जमीन से भी बड़ी है।
कवि हेम चंद्र जोशी- माता पिता के आशीष यह जीवन मिला न गवांओ यूं ही न करो कोई गिला।
कवि शकुन सक्सेना राही- कौन कहता है कि बेकार हो गया हूं मै,ं सपना था किसी का साकार हो गया हूं मैं।