विकास अग्रवाल
काशीपुर (महानाद) : प्रतिपल समर्पित भाव से जीवन जीने का नाम ही भक्ति है। जिसमें जीवन का हर पल उत्सव के समान बन जाता है। उक्त उद्गार निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा महाराज द्वारा संत निरंकारी आध्यात्मिक स्थल समालखा (हरियाणा) में आयोजित ‘भक्ति पर्व समागम’ के विशेष सत्संग समारोह के अवसर पर एकत्रित विशाल जन-समूह को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए।
इस कार्यक्रम का लाभ लेने हेतु दिल्ली एवं एनसीआर सहित अन्य स्थानों से भी हजारों की संख्या में भक्तगण उपस्थित हुए। भक्ति पर्व समागम के अवसर पर परम संत सन्तोख सिंह एवं अन्य संतों भक्तों के तप-त्याग को स्मरण किया जाता है जिन्होंने ब्रह्मज्ञान की दिव्य रोशनी के प्रचार प्रसार हेतु निरंतर प्रयास किया। यह पर्व समूचे विश्व में मनाया गया। स्थानीय काशीपुर ब्रांच में भी प्रातः काल भक्ति पर्व सत्संग के रूप में मनाया गया। जिसमें हमेशा की तरह संत महापुरुषों में भक्ति के मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हुए अपने हृदय कर भाव व्यक्त किए।
भक्ति की परिभाषा को सार्थक रूप में बताते हुए सतगुरु माता ने फरमाया कि भक्ति का अर्थ तो सरल अवस्था में जीवन जीना है जिस पर चलकर आनंद की अवस्था को प्राप्त किया जा सकता है। इसमें चतुर चालाकियों का कोई स्थान नहीं। भक्ति तो संपूर्ण समर्पण वाली भावना है जिसमें समर्पित होना ही सर्वोपरि है। संतों महापुरूषों के वचनों से हमें निरंतर यही शिक्षा मिलती आ रही है कि हमने औरो को प्राथमिकता देनी है किन्तु हम प्रायः ऐसा नहीं करते। हम प्रथाओं एवं आडम्बरों में ऐसे बंध जाते है कि भ्रमों में उलझकर रह जाते है। वास्तविकता यही है कि जब हम इस निरंकार से जुड़ते है तब हमारे सभी भ्रम समाप्त हो जाते है।
सतगुरू माता ने बाबा गुरबचन सिंह की शिक्षाओं से एक उदाहरण दिया कि जिस प्रकार एक घर बनाने से पूर्व उसका नक्शा बनता है। फिर उस पर ही घर का निर्माण किया जाता है। जब तक वह निर्मित नहीं होता उसका आनंद प्राप्त नहीं किया जा सकता। ठीक उसी प्रकार भक्ति का आधार सेवा, सुमिरन, सतसंग है जिसमें हमने सभी से मीठा बोलते हुए सभी के लिए परोपकार की भावना रखनी है किन्तु यह धारणा वास्तविक रूप में होनी चाहिए न कि दिखावे वाली।
भक्ति स्वयं की यात्रा है। इस दातार से जुड़ने का एक सरल मार्ग है। ऐसी भक्ति ही जीवन को सार्थक बनाती है और दुनियावी दिखावों से मुक्त करती है। भक्ति से सराबोर संत अपना जीवन साधारण रूप में जीता है और दुनियावी चकाचौंध का फिर उस पर प्रभाव नहीं पड़ता। वह दूसरों के दुख को समझते हुए उनके प्रति अपनत्व का भाव ही अपनाता है। उसका जीवन एक नदी के समान प्रवाहित होने वाली एक अवस्था बन जाता है।
माया के प्रभाव का जिक्र करते हुए सतगुरू माता ने समझाया कि जिस प्रकार निरंकार की बनाई हुई सृष्टि में अनेक भिन्नताएं होते हुए भी सभी में इस निरंकार का वास है उसी प्रकार संसार की हर एक वस्तु जिसमें माया का स्वरूप है वह क्षणभंगुर है, अतः उससे जुड़ाव न करके इस स्थिर परमात्मा से जुड़ना है। संतों के जीवन से प्रेरणा लेते हुए अपनी भक्ति को दृढ़ बनाना है।
भक्ति पर्व के अवसर पर निरंकारी राजपिता ने सतगुरु माता से पूर्व अपने भावों को व्यक्त करते हुए कहा कि भक्त का जीवन तभी भक्ति भरा बनता है जब उसके आचरण एवं व्यवहार से प्रेम रूपी महक आये। स्वयं को सतगुरु के आगे समर्पित करते हुए आनंदित एंव उत्सव वाला जीवन जीये। अपने कर्मो के प्रभाव से औरो के लिए प्रेरणा का स्रोत बनें। गुरू के बताये हुए वचनों को सत्यवचन मानकर जीवन जीना ही भक्ति है। हर पल में केवल शुकराने का भाव प्रकट करना ही सच्चे भक्त की अवस्था है।
भक्ति कोई दिखावा या आडम्बर नहीं कि लोग उससे भयभीत हो। भक्ति का अर्थ तो साकार से इस निरंकार की प्राप्ति करके इससे एकमिक होने की अवस्था है। राजपिता ने उदाहरण दिया जिसमें उन्होंने बताया कि आर्केस्ट्रा की ध्वनि को निर्देशित करने हेतु एक निर्देशक होता है जो अन्य वाद्य यंत्र बजाने वालो को प्रायः निर्देश देता है और जिसके परिणामस्वरूप एक सुंदर ध्वनि श्रवण होती है किन्तु यदि उनमें से किसी एक ने भी अपनी मनमति अनुसार कार्य किया तो उसकी ध्वनि ही बदल जायेगी। कहने का भाव केवल यही कि जब हम लालच, मोह, स्वार्थ जैसे भ्रमों में फंस जाते है तब हमारे जीवन से आनंद रूपी मधुरता समाप्त हो जाती है। हमारे जीवन में गुरु का विशेष महत्व होता है वहीं सच्चा मार्गदर्शक एंव प्रेरक होता है जो अपने सकारात्मक प्रभाव से हमें मूल्यवान बना देता है, अतः उनके बिना भक्ति संभव नहीं। ऐसी अवस्था ही भक्ति वाली होती है और हमारे जीवन का आधार भी यही है।
अंत में सतगुरु माता ने सभी श्रद्धालुओं एंव संतों को भक्ति मार्ग पर अग्रसर होने हेतु प्रेरित किया तथा पुरातन संतों की भक्ति भावना से प्रेरणा लेकर अपने जीवन को सार्थक बनाने का आह्वान किया।
यह समस्त जानकारी स्थानीय मीडिया प्रभारी प्रकाश खेड़ा द्वारा दी गई।