व्यंग्यम : अथ खुजली पुराण – संतोष कुमार तिवारी

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संतोष कुमार तिवारी
रामनगर (महानाद) : अपुन का देश धर्मशास्त्रों से पटा पड़ा है। वेद, पुराण, शास्त्र और न जाने कितने ग्रंथ हैं जो वाकई में खूब महिमामय हैं। अभी पिछले दिनों की ही तो बात है इस नाचीज़ को खुजली जैसे विषय के शास्त्रीय अध्ययन की सनक चढ़ी तो पुराण देखने लगा। पता चला कि इस वैश्विक बीमारी पर पुराण के हाथ भी तंग हैं। तब मैंने भीष्म प्रतिज्ञा की कि एक हजार पन्ने की एक किताब लिखूंगा जिसमें खुजली का सांगोपांग वर्णन जन-जन तक सुलभ हो सके।

इस काम में मेरे कई पुराने दोस्त भी सहयोग के लिए आगे आए। एक दो तो प्रकाशक भी मिल गये, जो सालों से खुजली पीड़ित हैं। इसकी सहस्त्रों वैरायटियां हैं। कुछ अपने साथियों की बढ़त देख तो कुछ प्रमोशन पर कसमसा उठते हैं। कुछ को बात का बतंगड़ बनाने की पैदायशी खुजली होती है। कुछ साहब और सहकर्मियों को एक दूसरे के खिलाफ भड़काकर अपनी खुजली लोकप्रिय बनकर शांत करते हैं।

दो वर्षाे से कोरोना की आमद पर खुजली का महत्व थोड़ा कम जरूर हुआ है, परंतु इससे खुजली का भविष्य खतरे में पड़ गया हो, यह कहना बेईमानी है। सुनने में तो आ रहा है कि छोटी-बड़ी सभी बीमारियों ने एक आम सभा की, जिसकी अध्यक्षता खुजली महाशय ने किया। इसमें कोरोना की बढ़ती रफ्तार पर आक्रोश व्यक्त किया कि आखिर पहली दूसरी लहर आई, हम खामोश रहे। इस टाॉपिक पर खुजली आगबबूला हो गया और मुरादाबादी लहजे में बोला- ये कोरोना अपने को समझ क्या रिया है। हम सब उल्लू हैं क्या? इसे मिलकर भगाओ। यह तो अपनी बनी बनाई मार्केट खतम कर रिया है। अब तीसरी लहर की टांग तोड़नी है साथियों। इतना सुनते ही पंडाल में उपस्थित सभी बीमारियों की तालियों से गूँज उठा।

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