नेहरू की दो गलतियों के कारण कश्मीर को उठाना पड़ा नुकसान : अमित शाह

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लोकसभा में बिल पर चर्चा करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह

नई दिल्ली (महानाद) : केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जम्मू और कश्मीर से संबंधित दो विधेयकों पर चर्चा के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर दो बड़ी गलतियां करने का आरोप लगाया। लोकसभा में जम्मू-कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक पर बहस के दौरान जवाहरलाल नेहरू पर अमित शाह की टिप्पणी करने पर विपक्ष के नेताओं ने सदन से वॉकआउट कर दिया।

आपको बता दें कि केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने अपने भाषण में जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद और आतंकवादी घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि पूर्व पीएम पंडित जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्री काल में उनके लिए हुए निर्णयों से दो बड़ी गलतियां हुईं, जिसके कारण कश्मीर को कई वर्षों तक नुकसान उठाना पड़ा।

पहली गलती – जब हमारी सेना जीत रही थी तब युद्धविराम (सीजफायर) की घोषणा करना। यदि यह सीजफायर तीन दिन बाद होता तो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर आज भारत का हिस्सा होता।

दूसरी गलती – अपने आंतरिक मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में ले जाना।

शाह ने कहा कि कई सदस्यों ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की चिंता का जिक्र किया। वो चिंतित भी थे। उन्होंने सीधा-सीधा इसको आर्टिकल 370 को निरस्त करने से जोड़ा। मान्यवर किसी ने भी नहीं कहा था कि आर्टिकल 370 जाने के बाद आतंकवाद समाप्त हो जाएगा। इस पर एक विपक्षी सांसद ने कहा, आपने ही कहा था।

केंद्रीय मंत्री ने अमित शाह ने जबाव देते हुए कहा कि सुनिए, मैंने कहा था कि आतंकवाद का मूल आर्टिकल 370 के कारण खड़ी हुई अलगाववाद की भावना है। आर्टिकल 370 जाने से अलगाववाद में बहुत बड़ी कमी आने वाली है और इसके कारण आतंकवादी भावनाओं में कमी आएगी। रिकॉर्ड की बात है। 1994 से 2004 के बीच आतंकवाद की कुल 40,164 घटनाएं हुईं। 2004-14 मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी के शासन का समय था, आतंकवाद की घटनाएं 7,217 हुईं और नरेंद्र मोदी सरकार में 2014-23 में सिर्फ दो हजार हुईं। कुल 70 फीसदी की कमी आई है। इसलिए मैं ठीक ही कहता था कि अलगाववाद की भावना का मूल, उसका उद्भव स्थान, अनुच्छेद 370 है।

अमित शाह ने कहा कि 1980 के दशक के बाद आतंकवाद का दौर आया और वह बड़ा भयावह दृश्य था। जो लोग इस जमीन को अपना देश समझकर रहते थे, उन्हें बाहर निकाल दिया गया और किसी ने उनकी परवाह नहीं की। जिन लोगों पर इसे रोकने की ज़िम्मेदारी थी वे इंग्लैंड में छुट्टियों का आनंद ले रहे थे।

शाह ने कहा कि जब कश्मीरी पंडितों को विस्थापित किया गया, तो वे अपने देश में शरणार्थी के रूप में रहने को मजबूर हो गए। वर्तमान आंकड़ों के अनुसार लगभग 46,631 परिवार और 1,57,968 लोग अपने ही देश में विस्थापित हो गए। यह विधेयक उन्हें अधिकार दिलाने के लिए है, यह विधेयक उन्हें प्रतिनिधित्व देने के लिए है। उन्होंने कहा कि ये विधेयक उन लोगों को अधिकार देने का प्रयास है जो अलग-अलग सालों में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध के कारण विस्थापित हुए।

शाह ने कहा कि पाकिस्तान ने 1947 में कश्मीर पर हमला किया जिसमें लगभग 31,789 परिवार विस्थापित हुए। 1965 और 1971 के युद्धों के दौरान 10,065 परिवार विस्थापित हुए। 1947, 1965 और 1969 के इन तीन युद्धों के दौरान कुल 41,844 परिवार विस्थापित हुए। यह बिल उन लोगों को अधिकार देने का, उन लोगों को प्रतिनिधित्व देने का एक प्रयास है।

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