पंचतत्व में विलीन हुए प्रख्यात पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा

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सी एम पपनैं
नई दिल्ली (महानाद) : पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में, वैश्विक फलक पर पहचाने गए, प्रख्यात पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा का कोरोना विषाणु संक्रमण से 94 वर्ष की उम्र में, 21 मई 2021 को आज दोपहर 12 बजे, एम्स ऋषिकेश में निधन हो गया। ऋषिकेश के पूर्णानंद घाट पर, राजकीय सम्मान के साथ, दिन में उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। बहुगुणा के निधन की खबर सुन, उत्तराखंड सहित देश के जनमानस के मध्य शोक की लहर व्याप्त हो गई है।

विगत 23 अप्रैल से, अस्वस्थ चल रहे, पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा को बुखार, खांसी की शिकायत के कारण 8 मई को एम्स ऋषिकेश में भर्ती कराया गया था। कोरोना विषाणु संक्रमण जांच में वे पाॅजिटिव पाए गए थे। उनके फेफड़ों में कोरोना संक्रमण पाया गया था। फेफड़ों के साथ-साथ खून व किडनी में भी संक्रमण था। पैरो में सूजन के बाद डाक्टरों ने उन्हें मंगलवार को कोरोना आईसीयू वार्ड मे भर्ती कर दिया था। ब्लड शुगर लेबल व ब्लड प्रेशर बढ़ा हुआ था। सांस लेने मे दिक्कत पैदा होने लगी थी। एनआरबीएम मास्क से आक्सीजन दी जा रही थी। उम्र के हिसाब से कड़ी निगरानी में रख, उन्हे सावधानीपूर्वक दवाऐं दी जा रही थी। सुंदरलाल बहुगुणा पूर्व में हृदय रोग, डायबिटीज व हाईपरटेंशन के रोगी भी रहे थे। 20 वर्ष पूर्व उनके हार्ट में दो स्टंट लग चुके थे। तभी से वे निरंतर दवाई ले रहे थे।

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सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी 1927 को, उत्तराखंड टिहरी जिले के, भागीरथी नदी किनारे बसे गांव, मरोडा के अंबादत्त बहुगुणा के घर हुआ था। बचपन मे ही श्रीदेव सुमन के सम्पर्क में आने के बाद, सुंदरलाल बहुगुणा के जीवन की दिशा ही बदल गई थी। वे देश की आजादी की लड़ाई मे कूद पड़े थे।

देश को मिली आजादी के बाद, स्वतंत्रता सेनानी सुंदरलाल बहुगुणा, पर्यावरण संरक्षण में जुट गए थे। उन्होंने जीवन का एक मात्र लक्ष्य बनाया था, पर्यावरण सुरक्षा। पर्यावरण संरक्षण को लेकर कई बार उन्होंने पद यात्राऐं की। गांव मे आश्रम खोला। सत्तर के दशक मे पर्यावरण सुरक्षा को लेकर आंदोलन चलाया, जिसने पूरे देश पर अपना व्यापक असर छोड़ा। चिपको आंदोलन उसी का एक हिस्सा था। आंदोलन की सफलता के बाद चिपको आंदोलन के महानायक कहलाए गए। उन्होंने और भी अनेको आंदोलनों की अगुवाई की, जिनमे छुआछूत का मुद्दा, महिलाओं के हक की आवाज, टिहरी बांध निर्माण का विरोध, शराब विरोधी आंदोलन इत्यादि मुख्य रहे। टिहरी राजशाही का विरोध करने पर उन्हे जेल जाना पड़ा था। 1971 में उत्तराखंड में शराब की दुकानों को खोलने के विरोध मे वे 16 दिन अनशन पर बैठे थे।

1980 के शुरुआत में, हिमालय क्षेत्र के गांवो की, पांच हजार किमी. की पद यात्रा की। लोगों को पर्यावरण सुरक्षा का संदेश दिया। सुंदरलाल बहुगुणा के कहने पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा 15 वर्षो तक पेड़ काटने पर रोक लगा दी गई थी। टिहरी बांध निर्माण के दौरान विरोध स्वरूप सिर मुंडवा 84 दिन का उपवास रखा। उनका घर भी टिहरी जलाशय मे डूब गया था।

गांधी के अनुयायी, हिमालय रक्षक, चिपको आंदोलन के महानायक, सुंदरलाल बहुगुणा पद्म विभूषण व वैकल्पिक नोबल पुरुष्कार के साथ-साथ दर्जनों देश-विदेश के सम्मानित पुरस्कारों से नवाजे गए थे।

उत्तराखंड की राज्यपाल बेबीरानी मौर्य, मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत, उनके मंत्रिमंडल सदस्यों, विधायकों, उत्तराखंड की देशभर मंे स्थापित अनगिनत सामाजिक व सांस्कृतिक संगठनों द्वारा सु-विख्यात पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया गया है। उनके जल, जंगल, मिट्टी के संरक्षण को अविस्मरणीय योगदान के रूप मे याद किया जा रहा है। सम्पूर्ण देश व विश्व के लिए सुंदरलाल बहुगुणा का निधन एक अपूर्णीय क्षति है।

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